अरवल। राम के नाम के दौलत के बदौलत ही यश मिलता है। तन और धन का जितना सदुपयोग हो सके, उतना करो, पता नहीं कब ये दोनों समाप्त हो जाएंगे। जिसकी जैसी भावना होती है, उसी रूप में उसे राम नजर आते हैं। बुरे लोगों को राम में काल दिखता है तो अच्छे लोगों को राम में अपने अंदर इष्ट नजर आते हैं। जब इस धरती पर पाप बढ़ जाता है तब परमात्मा किसी न किसी रूप में प्रकट होते हैं और पापों का नाश करते हैं। परमात्मा एक हैं और सत्संग से तीर्थ का फल मिलता है। उक्त बातें हुलासगंज स्थित गोपुरम के मठाधीश स्वामी रंग रामानुजाचार्य जी महाराज ने प्रखंड क्षेत्र के चकिया गांव में आयोजित रामकथा के तीसरे दिन श्रद्धालुओं को कथा का रसपान कराते हुए कही।उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु के भक्तों पर कभी विनाशी शक्ति काम नहीं करती। जब द्रौपदी पर दुर्योधन, दुशासन जैसी विनाशी शक्ति आई, तब भगवान् ने साड़ी बनकर द्रौपदी की रक्षा की। जब गजेंद्र पर ग्राह जैसी विनाशी शक्ति आई, तब भगवान गरुड़ को छोड़कर गज को बचाने चले आए। उसी प्रकार जब भक्त पहलाद पर हिरणकश्यपु जैसी विनाशी शक्ति आई, तो भगवान नरसिंहावतार लेकर भक्त प्रह्लाद को बचाया। उन्होंने भक्त प्रहलाद पर विशेष चर्चा करते हुए कहा कि सनकादि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए जा रहे थे। जय विजय भगवान विष्णु के द्वारपाल थे। वे दोनों सनकादियों को भगवान के दर्शन से वंचित कर दिये ।सनकादियों ने द्वारपाल जय विजय को श्राप दे दिया कि तुम दोनों भूतल पर तीन जन्म तक दानव बनकर रहोगे। श्रापवश जय और विजय दिति के गर्भ से उत्पन्न हुए वे दोनों का स्वभाव दानवी था। एक का नाम हिरण्याक्ष और दूसरे का नाम हिरणकश्यपु था । पृथ्वी को रसातल से लाते समय भगवान विष्णु वराह अवतार में हिरण्याक्ष का वध कर दिया। हिरण्यकश्यपु कुपित होकर अपने परिवार व सहयोगीयों से कहा कि आप सब धर्म विरुद्ध कार्य करें। और स्वयं हिरण्यकश्यिपु तपस्या करने के लिए चले गए । उस समय हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु गर्भवती थी । इंद्र अपना सेना लेकर हिरणकश्यिपु के किला पर चढ़ गये और गर्भवती कयाधु को खींच कर ले चले। मार्ग में नारद जी मिल गए। उन्होंने इंद्र से कहा कि कयाधु को छोड़ दें। नारद जी के कहने पर इंद्र ने कयाधु को छोड़ दिया । नारद जी कयाधु को अपने आश्रम पर ले गये । वहां ले जाकर उसे ब्रह्म, जीव, माया, कर्म , ज्ञान और भक्ति तत्व का समुचित उपदेश किया ।श्री नारद जी ने कयाधु से कहा कि भगवान विष्णु के भक्ति बिना जीव का कल्याण नहीं होता। इस उपदेश का प्रभाव कयाधु के गर्भस्थ शिशु पर पड़ा। उन्होंने कहा कि जब बालक गर्भ में रहता है तब बालक की माता जिस तरह के वातावरण में रहती है, उसका प्रभाव उस बच्चे पर पड़ता है। गर्भावस्था में महिलाओं को चाहिए कि वह रामायण, गीता, सुख सागर, भागवत आदि धर्म ग्रंथों को पढ़ें। गर्भावस्था में सिनेमा, टीवी, धारावाहिक, लड़ाई, झगड़ा, क्रोध ऐसे वातावरण से दूर रहें। ऐसा करने पर बच्चा गुणवान उत्पन्न होता है।
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Posted By: Jagran
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