गत दिसम्बर महीने में कई दिनों तक लगातार हुई बे मौसम की बरसात ने प्रखंड के किसानों के अरमान पर पानी फेर दिया है । इस बारिश से किसानों की फसल क्षति को लेकर प्रशासन द्वारा कराए गए सर्वे पर सवाल खड़े हो गए हैं। डेढ़ माह पूर्व हुई बारिश से धान की फसल तो बर्बाद हुई ही सैकड़ों बीघा खेत भी परती रह गए हैं । जिसकी भरपाई निकट भविष्य में संभव नहीं है ।
किसानों की मानें तो अबतक नहरों में पानी नहीं मिलने से खेत परती रह जाते थे । इस बार धान की कटनी के वक्त ही बारिश से खेतों में गेहूं की बोअनी नहीं हो पाई, जिससे उसे परती छोड़ना मजबूरी बन गया । सिर्फ महुअरी , धनछुहा , कुरुर, , संसारडिहरी गांव में ही डेढ़ सौ बीघा से अधिक खेत परती है। इन खेतों में किसान ससमय बुआई कर प्रत्येक वर्ष 10 से 12 लाख रुपये का केवल चना का उत्पादन कर लिया करते हैं । कुरुर के मनोज यादव, मोहनपुर के रंग बहादुर सिंह व रासबिहारी सिंह ने बताया कि कुछ लोग गीले खेतों में चना व गेहूं बीज डाला भी तो अधिकतर बीज सड़ गए । सरकारी तंत्र के लोगों ने सत्यता से परे कार्यालय से ही बर्बादी नहीं होने का प्रतिवेदन सरकार को भेज दिया । कुरुर निवासी प्रगतिशील किसान योगेन्द्र सिंह ने बताया कि महुअरी मौजा में अकेले उनका 22 बीघा खेत परती रह गया है । इन खेतों में हर वर्ष न्यूनतम डेढ़ लाख रुपये का चना होता था । महुअरी के जनार्दन उपाध्याय को 12 बीघा खेत खाली रह गया । धनछुहा के मनोज सिंह व धीरेंद्र सिंह , मोहनपुर से हरिद्वार सिंह व नागेंद्र सिंह जैसे कई किसानों ने खेत परती छोड़ने में ही खुद की भलाई समझी । वहीं इमिरता देवी, कुंती देवी आशमा बेगम , राम केवल पासवान, रामजी राम ने अपनी ब्यथा साझा करते हुए बताया कि इस खेती पर ही सारा अरमान था । बिटिया की शादी तय की थी । बच्चों की पढ़ाई के अलावे अन्य खर्च भी इसी पर ही था ।
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कहते हैं अधिकारी :
कुछ जगहों पर इस बारिश से धान की फसल बर्बाद होने की सूचना है । परंतु खेतों को परती रह जाना मेरे संज्ञान में नहीं है ।
राजेश्वर राम
प्रभारी बीएओ
काराकाट
Posted By: Jagran
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