बाजार नहीं मिलने से घटता जा रहा वर्मी कंपोस्ट बनाने वालों का उत्साह

सुपौल। सरकार और विभाग का मानना है कि रासायनिक खाद के अंधाधुंध प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति पर प्रभाव पड़ता है। किसानों का भी मानना है कि रासायनिक खाद के प्रयोग से धीरे-धीरे जमीन उसर होती जाती है और उसकी उत्पादक क्षमता घट जाती है। सरकार भी इस दिशा में लोगों को जागरूक कर रही है। सरकार रासायनिक खाद के बदले किसानों से अधिक से अधिक जैविक खाद के प्रयोग की अपील कर रही है। किन्तु जैविक खाद की अनुपलब्धता के कारण किसानों को रासायनिक खाद का ही आसरा है।

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अनुदान व जागरूकता भी बेकार
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जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार और विभाग ने पहल की। विभागीय स्तर से भी पशुपालकों व किसानों को वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। वर्मी पिट के निर्माण के लिए सरकारी स्तर पर अनुदान भी दिए गए। साथ ही विभाग द्वारा कृमि भी उपलब्ध कराए गए। शुरूआती दौर में किसानों व पशुपालकों ने वर्मी कंपोस्ट बनाने में रुचि दिखाई किन्तु खपत नहीं होने व बाजार की व्यवस्था नहीं होने के कारण धीरे-धीरे उनका मोह भंग होता चला गया। कुछ खाद विक्रेताओं ने जैविक खाद के रूप में वर्मी कंपोस्ट भी मंगवाया किन्तु डिमांड नहीं रहने के कारण खाद विक्रेता भी वर्मी कंपोस्ट से मुंह मोड़ चले।
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शिथिल पड़ी व्यवस्था, किसानों ने मुंह मोड़ा
जिले में काम कर रही कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए किसानों व पशुपालकों को जागरूक करने में भूमिका निभाई। स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा जैविक खेती से होने वाले फायदे भी गिनाए गए। इतना तक कहा गया कि प्रयोग के तौर पर ही सही थोड़ी जैविक खेती कर लें और उत्पादन में अंतर देख ले। कुछ किसानों ने प्रयोग के तौर पर जैविक खेती की और उपलब्धि से खुश भी नजर आए। किन्तु जैविक खाद यानि वर्मी कंपोस्ट की अनुपलब्धता व शिथिल पड़ी व्यवस्था के कारण थक-हार कर किसान फिर से रासायनिक खाद की ओर बढ़ चले।
Posted By: Jagran
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