19 अप्रैल 1917 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा चंपारण सत्याग्रह शुरू किया गया था। धीरे-धीरे चंपारण सत्याग्रह की धमक सुखद परिणाम के साथ पूरे देश में फैल गई। एक शताब्दी के बाद अब उसी चंपारण सत्याग्रह के ऐतिहासिक अध्यायों को लोकगायिकी में सहेजा जा रहा है। इतिहास के पन्नों में दर्ज बापू की चंपारण यात्रा को लोकगीतों में ढाल सहेजने का काम कोई और नहीं, बल्कि भिखारी ठाकुर, अटल बिहारी वाजपेयी व भोजपुरीरत्न से सम्मानित रोहतास की बेटी व प्रसिद्ध लोकगायिका मनीषा श्रीवास्तव कर रही है। भोजपुरी लोकगायकी में गांधी की यात्रा को ढूंढने व चंपारण सत्याग्रह के ऐतिहासिक पलों को सुना सुनाकर मनीषा आज पूरे देश में ख्याति बटोर रही है। न सिर्फ लोक में गांधी'विषय पर अपनी गायिकी से बिहार का मान बढ़ा रही है, बल्कि देश के प्रति बापू के योगदान को याद दिला लोगों के बीच उसे फिर से जीवंत कर रही है। चंपारण सत्याग्रह से जुड़े उन स्थलों पर जाकर आजादी के गीत सुना रही हैं, जहां-जहां गांधीजी विचरण किए थे। गांधी संकल्प यात्रा में अबतक भितिहारवा, बेतिया, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, गया, बोधगया, जहानाबाद, जमुई, राजगीर, नालंदा, शेखपुरा, मुंगेर, आरा, अरवल, बिहटा, बख्तियारपुर में चंपारण यात्रा के गीतों से लोगों को बापू की देशभक्ति से रूबरू करा चुकी है। भारत सरकार द्वारा आयोजित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली, कृषि दर्शन सोनपुर मेला व आईआईसी सेंटर नई दिल्ली में लोक के गांधी जैसे कार्यक्रमों में प्रस्तुति दे चुकी है। बिहार सरकार द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय पितृपक्ष मेला गया, श्रावणी मेला व हरिहरक्षेत्र मेला में भी अपनी मखमली आवाज से गांधी के पर गायन के साथ भोजपुरी संस्कृति, सभ्यता व माटी की खुशबू बिखेर परचम लहरा चुकी है। भिखारी ठाकुर, महेंद्र मिसिर, भोलानाथ गहमरी, मोती बीए व रसूल मियां के गीतों पर काम कर चुकी मनीषा द्वारा गाए गए गीत चरखा के टूटे नाही तार चारखवा चालू रहे को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि मिल चुकी है। गायकी में मनीषा की है अंतरराष्ट्रीय पहचान:
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साफ-सुथरी, पारिवारिक व पारंपरिक गीतों को ले मनीषा श्रीवास्तव की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान है। मनीषा की दसवीं तक की पढ़ाई गर्ल्स स्कूल रोहतास के करगहर से हुई। वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी आरा से अर्थशास्त्र में स्नातक किया। संगीत के प्रति बचपन से लगाव रखने वाली मनीषा ने अपने प्राचार्य दादा ललित प्रसाद श्रीवास्तव से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा ली। फिर 2013 में इलाहाबाद से संगीत में प्रभाकर किया। राजनीति से संबंध रखने वाले पटना के सुमित श्रीवास्तव से 2016 में शादी के बाद भी अपनी गायकी को जारी रखा। सांसद आरके सिंहा का सानिध्य भी मिला। सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा अबतक मनीषा को एक दर्जन से अधिक सम्मान मिल चुके हैं। जिसमें पीठाधीश्वर सम्मान , श्रीजगदीश्वर सम्मान मॉरीशस, लोक सम्मान, भिखारी ठाकुर, अटल बिहार बाजपेयी व भोजपुरी लोक गायकी सम्मान देहरादून मुख्य रूप से शामिल है। झूमर- कजरी को दे रही डिजिटल रूप:
मनीषा श्रीवास्तव भोजपुरी की पहली लोक गायिका है, जो सोहर, झूमर, कजरी, ठुमरी, पूर्वी, विदेशिया, बारहमासा, रोपनी, संस्कार, श्रृंगार, विरह, खेलवना, धोबिया व गंवई तथा विवाह गीतों को डिजिटल रूप में ढाल उसकी प्रस्तुति दे रही है। लोकगायिकी में गांधी को ढूंढने का काम कर रही है। दूरदर्शन द्वारा भी विलुप्त हो रही गंवई लोककला को बचाने की मुहिम चला रही है।
सरकारी कार्यक्रमों में मनीषा के गीतों की खूब प्रशंसा हो रही है। छोड़ दी प्लास्टिक-पन्नी, अब त झोलवा उठाईल..एक अभियान गीत बन चुका है। बेटी बचाओ अभियान पर गीत खिलने दो खुशबू पहचानों, कलियों को मुस्कुराने दो को राज्य सरकार भी प्रशंसा कर चुकी है। मनीषा बताती है, यह मेरे लिए काफी सुखद पल है कि सरकारी कार्यक्रमों व अभियानों में मुझे आमंत्रित किया जा रहा है। आज बिहार के अलावा अन्य रा•ा्यों के कार्यक्रमों के लिए भी बुलावा आ रहा है।
Posted By: Jagran
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