बेगूसराय : राष्ट्रवाद पर किसी का एकाधिकार नहीं है। यह सभी के लिए बराबर है। गलत इतिहास से आज कई विवाद उपजे हैं, मैकाले की शिक्षा नीति का ही प्रभाव है कि आज तथाकथित बुद्धिजीवी सरकार का विरोध करते-करते राष्ट्र का विरोध करने लगे हैं। उक्त बातें गुरुवार को जीडी कॉलेज छात्र संघ के एक सेमिनार में भाग लेने पहुंचे इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय दिल्ली के व्याख्याता व जेएनयू अड्डा पुस्तक के लेखक डॉ. सीपी सिंह ने कहीं।
उन्होंने कहा कि आप माने या ना माने भारत हिदू राष्ट्र ही है। जब धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हो चुका है तो फिर इस पर प्रश्न उठाना ही अनुचित है। सनातन धर्म की यह परंपरा रही है कि यह दुनिया के हर धर्म, समुदाय के लोगों को सीने से लगाया है। जब पूरी दुनिया में यहूदियों पर जुल्म हुआ तब भारत ने उसे पनाह दी। पारसी का अपना देश ईरान है, मगर सबसे अधिक पारसी भारत में रहते हैं। पैगम्बर मुहम्मद साहब के वंशजों को भी सनातन धर्म के राजाओं ने अपनी पनाह में रखा। हम सबको उसके रूप में स्वीकार करते आए हैं, यही हमारी सभ्यता और संस्कृति है। परंतु, इस्लाम धर्म गैर मुस्लिमों को कभी उसका अधिकार देने को तैयार नहीं है। डॉ. सिंह पत्रकारों से बात करने के पश्चात दिनकर कला भवन में आयोजित सेमिनार में शरीक हुए। जहां उन्होंने सुभाषचंद्र बोस की जीवनी पर विस्तार से प्रकाश डाला। सेमिनार को महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अवधेश प्रसाद सिंह, इग्नू के नोडल प्रभारी प्रो. कमलेश कुमार, सांसद प्रतिनिधि अमरेंद्र कुमार, छात्र संघ अध्यक्ष पुरषोत्तम कुमार एवं महासचिव बादल कुमार आदि ने भी संबोधित किया।
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Posted By: Jagran
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