जहानाबाद। महिलाएं अबला नहीं होती बल्कि यह इस कदर सबल होती है कि खुद अपनी तकदीर ही नहीं बल्कि गांव की पहचान भी बदल सकती है। यह उस जमाने की बात है जब सरकार की ओर से आज की तरह न तो ओडीएफ के लिए पहल की जा रही थी और न ही समाज ही इस प्रकार जागरूक था। इसके बावजूद कलानौर की महिलाओं ने संगठन बना अपने गांव की पहचान बदल दी। इसकी शुरुआत शौचालय के निर्माण से की गई। उनलोगों ने जन जागरूकता का पंख लगाकर विकास का सफर तय की। खास बात यह थी कि इस जन जागरूकता की वाहक यहां की महिलाएं बनी। गांव की ही पूनम ने वहां की महिलाओं को नारी सशक्तीकरण का ऐसा एहसास कराया कि अशिक्षा और पिछड़ेपन के लिए जाना जाने वाला यह गांव अब जिले में विकास का मॉडल बन गया है। मॉडल भी ऐसा जिसपर न सिर्फ इस गांव के लोग बल्कि जिला प्रशासन भी गर्व महसूस करता है। यही कारण है कि इस गांव के मॉडल को देखने के लिए नारी सशक्तीकरण पर काम कर रहे यूके सहित अन्य देश के प्रतिनिधि भी यहां आ चुके हैं। उनलोगों ने यहां की महिलाओं के कार्यों को सराहा । दरअसल वर्ष 2009 के पहले इस गांव में विकास की किरणें नहीं पहुंची थी। महिलाएं बेचारी बनकर गुजर बसर कर रही थी। टेहटा से गांव जाने के लिए पगडंडी ही सहारा था। बरसात के दिनों में तो पैदल जाना भी मुश्किल हो जाता था। गांव में सड़क तथा बिजली की भी समस्या थी। ग्रामीणों को किसी रहनुमा का इंतजार था। इसी बीच आठ अप्रैल 2009 को नारी सशक्तीकरण पर काम कर रही इंदु देवी नामक एक महिला वहां आई और उन्होंने उज्ज्वल ग्राम संगठन का निर्माण किया। इंदु द्वारा उस गांव की पूनम देवी को इस संगठन की जिम्मेदारी सौंपी गई। इंदु और पूनम ने गांव की महिलाओं को इस संगठन से जोड़ा। धीरे-धीरे यह काफी बड़ा संगठन खड़ा हो गया। महिलाओं की टीम ने गांव की दशा बदलने के लिए सबसे पहले खुले में शौच से मुक्ति का संकल्प लिया। घर-घर जाकर शौचालय का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया। इतना ही नहीं इन महिलाओं ने चंदे के माध्यम से शौचालय के निर्माण के लिए पैसे का भी इंतजाम किया। फिर क्या था उस गांव में शौचालय बनाने की होड़ सी मच गई। उस समय उन महिलाओं द्वारा सैंकड़ों शौचालय का निर्माण कराया गया। महिलाओं के इस कार्य की चर्चा इस गांव से निकलकर जिला मुख्यालय तक पहुंची। वर्ष 2012 में तत्कालीन जिलाधिकारी बाला मुरूगन डी पैदल वहां पहुंचे। वे उन महिलाओं के जज्बे को देखकर अभिभूत हो गए और गांव में ही कलानौर को सड़क से जोड़ने की घोषणा कर दी। आज यह गांव न सिर्फ सड़क मार्ग से जुड़ा है बल्कि अन्य सभी आदर्श स्थितियों को प्राप्त कर चुका है। दूसरे जिलाधिकारी आदित्य कुमार दास ने भी वहां जाकर उन महिलाओं के जज्बे को सलाम किया। हालांकि पुरुष प्रधान इस समाज में महिलाओं का यह कदम कुछ दिनों तक हास्य का पात्र बना रहा। लेकिन उन महिलाओं पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। वर्तमान समय में वहां की महिलाएं आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। उन्हें छोटे- मोटे कार्यों के लिए सूदखोरों के दरवाजे पर जाने की जरूरत नहीं पड़ रही है। पूनम बताती हैं कि अब तो मामूली व्याज पर पैसे लेकर महिलाएं व्यवसाय भी कर चुकी हैं। उज्ज्वल ग्राम संगठन के तहत वर्तमान में यहां तकरीबन एक दर्जन समूह कार्यरत हैं। वह अन्य कार्यों के साथ-साथ आर्थिक मदद के लिए बैंकिग व्यवस्था के तर्ज पर पैसा संग्रह करता है और जरूरतमंदों को मामूली व्याज पर उपलब्ध कराता है। पूनम के नेतृत्व में इस गांव की दर्जनों महिलाएं इस संगठन से जुड़कर विकास की नई पटकथा लिख चुकी हैं। महिलाओं के इस जज्बे को हर लोग सलाम कर रहे हैं। इंदु देवी बताती हैं कि जब उन्होंने महिलाओं की टोली बनाकर कुछ करने की योजना बनाई थी तो शुरुआती दौर में लोगों ने काफी मजाक उड़ाया लेकिन आज वहां की महिलाएं प्रेरणास्त्रोत बन गई हैं।
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Posted By: Jagran
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