एनएफएचएस (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण) की रिपोर्ट के मुताबिक जिला में 42.8 फीसदी बच्चे ही जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कर पाते हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में एक घंटे के भीतर स्तनपान करने वाले बच्चों का आंकड़ा 42.6 फीसदी हैं। ऐसे में स्तनपान को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। सिविल सर्जन डा. अकरम अली ने बताया जन्म के शुरूआती दो घंटों तक शिशु अधिक सक्रिय रहते हैं। इसलिए शुरूआती एक घंटे के भीतर ही स्तनपान शुरू कराने की सलाह दी जाती है। इससे शिशु सक्रिय रूप से स्तनपान कर पाते हैं। साथ ही 6 माह तक केवल स्तनपान कराया जाना चाहिए। उन्हें स्तनपान के अलावा दूसरी कोई चीज जैसे पानी सहित नहीं दिया जाना चाहिए। स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए मीडिया के विभिन्न माध्यमों व आशा, आंगनबाड़ी सेविकाओं की मदद से स्वास्थ्य विभाग लोगों को लगातार जागरूक कर रहा है। सीजेरियन प्रसव में भी एक घंटे के अंदर स्तनपान
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स्टेट रिसोर्स यूनिट के बाल स्वास्थ्य टीम लीड डॉ. पंकज मिश्रा ने बताया जन्म के शुरूआती एक घंटे के भीतर शिशुओं के लिए स्तनपान अमृत समान होता है। यह अवधि दो मायनों में अधिक महत्वपूर्ण है। पहला यह कि शुरुआती दो घंटे तक शिशु सर्वाधिक सक्रिय अवस्था में होता है। इस दौरान स्तनपान की शुरुआत कराने से शिशु आसानी से स्तनपान कर पाता है। सामान्य एवं सिजेरियन प्रसव दोनों स्थितियों में एक घंटे के अंदर ही स्तनपान कराने की सलाह दी जाती है। इससे शिशु के रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है, जिससे बच्चे का निमोनिया एवं डायरिया जैसे गंभीर रोगों में भी बचाव होता है। स्तनपान से जुड़ी भ्रांतियों से रहें दूर
शुरुआती समय में एक चम्मच से अधिक दूध नहीं बनता है। यह दूध गाढ़ा एवं पीला होता है जिसे क्लोसट्रूम कहा जाता है। इसके सेवन करने से शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है, लेकिन अभी भी लोगों में इसे लेकर भ्रांतियां है। कुछ लोग इसे गंदा या बेकार दूध समझकर शिशु को नहीं देने की सलाह देते हैं। दूसरी तरफ शुरूआती समय में कम दूध बनने के कारण कुछ लोग यह भी मान लेते हैं कि मां का दूध नहीं बन रहा है। यह मानकर बच्चे को बाहर का दूध पिलाना शुरू कर देते हैं, जबकि यह केवल सामाजिक भ्रांति है। बच्चे के लिए यही गाढ़ा पीला दूध जरुरी होता है एवं मां का शुरूआती समय में कम दूध बनना भी एक प्राकृतिक प्रक्रिया ही है। क्या आप जानते हैं
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार वर्ष 2005-06 में बिहार में केवल 4 प्रतिशत बच्चे ही एक घंटे के अंदर स्तनपान कर पाते थे। जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर लगभग 35 प्रतिशत हो गई। 6 माह तक केवल स्तनपान नहीं करने वाले बच्चों में 6 माह तक केवल स्तनपान करने वाले बच्चों की तुलना में पहले 6 महीने में 14 गुना अधिक मृत्यु की संभावना होती है (लेंसेट, 2008 की रिपोर्ट के अनुसार) संक्रमण से होने वाले 88 प्रतिशत बाल मृत्यु दर में स्तनपान से बचाव होता है (लेंसेट, 2016 की रिपोर्ट के अनुसार) संपूर्ण स्तनपान से शिशुओं में 54 प्रतिशत डायरिया के मामलों में कमी आती है (लेंसेट, 2016 की रिपोर्ट के अनुसार) स्तनपान से शिशुओं में 32 प्रतिशत श्वसन संक्रमण के मामलों में कमी आती है (लेंसेट, 2016 की रिपोर्ट के अनुसार) शिशुओं में डायरिया के कारण अस्पताल में भर्ती होने के 72 प्रतिशत मामलों में स्तनपान बचाव करता है (लेंसेट, 2016 की रिपोर्ट के अनुसार) शिशुओं में श्वसन संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती होने के 57 प्रतिशत मामलों में स्तनपान बचाव करता है (लेंसेट, 2016 की रिपोर्ट के अनुसार) बेहतर स्तनपान एक साल में विश्व स्तर पर 8.20 लाख बच्चों की जान बचाता है (लेंसेट, 2016 की रिपोर्ट के अनुसार)
Posted By: Jagran
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