जागरण संवाददाता, बक्सर: भारतीय मनीषियों ने व्रत-त्योहारों के माध्यम से प्रकृति के प्रति मानव मात्र की कृतज्ञता व्यक्त कर व्यक्ति और समाज को पथभ्रष्ट होने से बचाया है। ऐसे ही त्योहारों में से एक है अक्षय तृतीया का त्योहार। इस दिन किसान स्नान दान, पुण्य कर्म आदि के साथ अगली फसल के लिए अपने खेतों का परंपरागत तरीके से भूमि पूजन भी करते हैं। हालांकि, इस वर्ष तृतीया तिथि शनिवार और रविवार दोनों दिन पड़ रही है और इसलिए यह त्योहार कब मनाया जाना है इसे लेकर लोगों के मन में असमंजस भी है।
विद्वानों का कहना है कि भारतीय कालगणना के अनुसार कुल चार अक्षय मुहूर्त बताए गए हैं, जो विजयादशमी, अक्षयनवमी, रामनवमी और अक्षय तृतीया हैं। अक्षय का शाब्दिक अर्थ है- जिसका कभी नाश यानी क्षय न हो। अक्षय तृतीया के दिन स्नान-दान, जप-तप, हवनादि कर्मों का भी शुभ और अनंत फल मिलता है।
आचार्य अमरेंद्र कुमार शास्त्री उर्फ साहेब पंडित ने बताया कि अक्षय तृतीया का महापर्व वैसाख मास की शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। हालांकि इस वर्ष तिथि को लेकर लोगों में कुछ असमंजस भी है। उन्होंने बताया कि तृतीया तिथि का आगमन शनिवार की सुबह 8:03 बजे ही हो जा रहा है। लेकिन उस दिन की तिथि कृत्तिका नक्षत्र युक्त है, सो परशुराम जयंती, छत्रपति शिवाजी जयंती और कृषि कार्य प्रारंभ करने के लिए इसका मुहूर्त प्रदोषकाल में है।
लेकिन रविवार की सुबह 8:06 बजे तक तृतीया तिथि है और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी है। सूर्योदय काल में तृतीया तिथि का मान होने और उपयुक्त नक्षत्र रोहिणी के मिलने से रविवार को ही तृतीया का व्रत करना सर्वोत्तम फलदायी होगा। साथ ही, कृषि कार्य और स्नान दान के लिए भी यह मुहूर्त दिनभर मान्य एवं शुभकारी होगा।
मान्यता के अनुसार किसान अक्षय तृतीया पर भूमि पूजन करते हैं। इस बाबत पुरैनिया के किसान वीरेंद्र तिवारी, बराढ़ी गांव के रामकुमार पांडेय, कोंच-बकसड़ा के बांके बिहारी मिश्र, नावानगर के रविन्द्र दुबे, बिहपुर के विजयशंकर पांडेय आदि ने बताया कि आगामी फसल के लिए रीति-रिवाज के अनुरूप खेत में वे अक्षय तृतीया पर अक्षत, गुड़, दही, अयपन, आम व परास का पत्ता, धान आदि से भूमि पूजन का कार्य करेंगे जिसकी सारी तैयारी पूरी कर ली गई है।
उन्होंने बताया कि भूमि पूजन करने के बाद घर वापस आने पर प्रसाद के रूप में वे मीठा का पारण करेंगे। रात की रसोई में भी मीठा पकवान आदि बनाकर ग्रहण करेंगे। इधर, ज्योतिषियों ने भी इस बार के मौसम को आगामी फसल के लिए सामान्य उत्पादन का योग बताया है।
वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि के प्रदोषकाल में परशुराम जयंती मनाने का प्रावधान रहा है। अतः अक्षय तृतीया तिथि में होने वाली परशुराम जयंती शनिवार को ही शाम को प्रदोष समय में मनाई जाएगी, क्योंकि रविवार के दिन प्रदोष काल के समय से पहले ही तृतीया तिथि समाप्त हो जा रही है।
वैसे तो अक्षय तृतीया पर कोई भी शुभ कार्य आरंभ करने से फल की प्राप्ति होती है परंतु, इस दिन सोना-चांदी खरीदना और जमीन-जायदाद के सौदे करना भी शुभ माना जाता है। व्यवसायियों को भी इस बार पूरी उम्मीद है कि बिक्री-अच्छी खासी रहेगी।