शाहपुर, दिलीप ओझा। Arrah Freedom Fihgter-1857 के स्वतंत्रता संग्राम में देवी ओझा ने अहम भूमिका निभाई थी। ओझा की वीरता के कायल स्वयं बाबू वीर कुंवर सिंह भी थे। ब्रिटिश अधिकारी देवी ओझा के नाम से भी खौफ खाते थे। चलिए जानते हैं कौन हैं वीर देवी ओझा, जिन्हें अंग्रेजों ने तोप से बांधकर उड़ा देने की सजा सुनाई थी।
1857 में स्वतंत्रता संग्राम की धमक पूरे देश में थी। इसी दौरान बीबीगंज व आरा की लड़ाई में देवी ओझा ने अहम भूमिका निभाई थी। अपने युद्ध और रणनीति कौशल, गुरिल्ला युद्ध और क्रांतिकारी गतिविधियों से ओझा ने ब्रितानी हुकूमत के अधिकारियों में खौफ पैदा कर दिया था।
देवी ओझा तत्कालीन शाहाबाद यानी वर्तमान भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड के सहजौली गांव के रहने वाले थे। बताया जाता है कि करीब 20 से 22 साल की उम्र में वह बाबू कुंवर सिंह की सेना में शामिल हो गए थे।
देवी ओझा की वीरता के कायल स्वयं बाबू वीर कुंवर सिंह भी थे। उन्होंने कौशल और वीरता को देखते हुए देवी ओझा को तब कारीसाथ छावनी का हेड बनाया था। देवी ओझा का खौफ और उनकी अंग्रेजों के प्रति आक्रोश की धमक महारानी विक्टोरिया तक पहुंची।
Bihar Crime: भोजपुर में हथियार के बल पर बैंक लूटने की कोशिश, प्रबंधक और चौकीदार की दिलेरी देख भागे बदमाश यह भी पढ़ें
भारत माता के इस सपूत ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते हुए गोरों को भारी क्षति पहुंचाई थी। इसके बाद अंग्रेजों ने इस महान क्रांतिकारी को तोप से बांधकर उड़ा देने का एलान किया गया था लेकिन, वीर योद्धा देवी ओझा कभी अंग्रेजों के हाथ ही नहीं लगे।
ओझा लगातार अंग्रेज सेना को नुकसान पहुंचा रहे थे। जिससे पटना कमिशनरी के तत्कालीन कमिश्नर ई. ए. सेमुअल्स काफी परेशान थे। यही कारण था कि नवंबर 1858 में महारानी विक्टोरिया के घोषणा पत्र में क्षमादान प्रकाशित होने के बावजूद 14 स्वतंत्रता सेनानियों को क्षमादान के लिए अयोग्य बताया गया था। इनमें 14 क्रांतिकारियों में देवी ओझा का भी नाम था।
प्रसिद्ध इतिहासकार के.के. दत्ता ने अपनी किताब 'बॉयोग्राफी आफ कुंवर सिंह एंड अमर सिंह' में इस घटना का जिक्र किया है। इस फरमान के बाद, अंग्रेजी सेना इन क्रांतिकारियों की तलाश में जोर-शोर से जुट गई। क्रांतिकारी भी काफी सतर्कतापूर्वक अपनी योजनाओं को अंजाम देने लगे।
देवी ओझा को पकड़ने के लिए अंग्रेजी फौज से कई बार गांव की घेराबंदी भी कराई गई लेकिन, देवी ओझा अंग्रेजों को बार-बार चकमा देकर निकल जाते थे। अंग्रेजी सेना, इस स्वतंत्रता सेनानी को काफी शिद्दत के साथ ढूंढती रह गई लेकिन, देवी ओझा कभी अंग्रेजो के हाथ नहीं लगे।
संजय गांधी कालेज के इतिहास विभाग के अवकाश प्राप्त विभागाध्यक्ष और सहजौली गांव के रहनेवाले डॉ. कपिल मुनी ओझा बताते हैं कि देवी ओझा के नाम मात्र से ही अंग्रेजों की फौज में खौफ पैदा हो जाता था। उन्हें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ने के कारण पहचान मिली। आज वे इतिहास के पन्नो में अमर हैं।