जागरण संवाददाता, गोपालगंज। बैकुंठपुर थाना क्षेत्र के दियारा में एक महिला की हत्या कर शव को फेंक दिया गया था। प्रभारी मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मानवेंद्र मिश्रा की अदालत ने पाया कि इस केस में बैकुंठपुर पुलिस ने खानापूर्ति की है।
अदालत ने टिप्पणी किया कि हत्या जैसे जघन्य मामलों में भी पुलिस असंवेदनशील है। प्रभारी सीजेएम की अदालत ने बैकुंठपुर थाना प्रभारी एवं केस के अनुसंधान को एक सप्ताह के अंदर कोर्ट में सदेह उपस्थित अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है।
जानकारी के अनुसार, एक जनवरी को 2022 को बैकुंठपुर थाना क्षेत्र के गम्हारी दियारा स्थित ईंख के खेत में एक महिला का शव मिला था। स्थानीय लोगों ने इसकी सूचना चौकीदार को दी थी।
चौकीदार महेंद्र रावत मौके पहुंचकर सत्यापन किया तो पाया कि कहीं और हत्या कर शव को छिपाने की नीयत से यहां फेंका गया है। शव को देखने से पता चला कि एक सप्ताह पहले की हत्या की गई होगी।
शव का एक हाथ नहीं था। चेहरा काला पड़ा हुआ था। चौकीदार के बयान पर बैकुंठपुर थाने में प्राथमिकी कराई गई थी। बैकुंठपुर कांड संख्या-02/2022 का अनुसंधानकर्ता दारोगा अरुण कुमार सिंह को बनाया गया था।
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इस मामले में अंतिम प्रतिवेदन को सूत्रहीन बताते हुए अदालत में समर्पित किया गया। अदालत ने पाया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महिला के गला पर लिगेचर मार्क है, जो बताता है कि गला किसी रस्सी या उसी जैसी चीज से कसा गया है, इससे दम घुटने की वजह से मौत हो गई।
मौत का समय दो से चार दिन पूर्व होने का उल्लेख रिपोर्ट में है। केस डायरी के अवलोकन में पाया गया कि पुलिस की ओर से मृतक महिला के शव का न तो फोटो लिया गया न ही घटनास्थल का वीडियो बनाया गया है। इसके अभाव में महिला की पहचान के लिए सूचना का प्रकाशन नहीं कराया जा सका।
प्रभारी सीजेएम मानवेंद्र मिश्रा की अदालत ने पूरे केस डायरी के अवलोकन में पाया कि इस मामले में पुलिस ने जिस प्रकार से अनुसंधान किया है, वह खानापूर्ति मात्र है।
पुलिस की ओर से कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए है, जिससे यह पता चले कि मृतका कौन थी। पुलिस ने आधार केंद्र से संपर्क कर फिंगर प्रिंट, रेटिना, अथवा अन्य वैज्ञानिक साक्ष्य संकलन करने में कोई अभिरुचि नहीं दिखाई।
एक सप्ताह अथवा कुछ दिन पूर्व अगल-बगल के मिलों के थानों से संपर्क कर यह पता लगाने का कि उनके थाने में किसी महिला के गुमशुदगी होने का रिपोर्ट दर्ज है या नहीं, इसका उल्लेख भी केस डायरी में नहीं है।
गन्ने के खेत में शव मिला, जो मुख्य सड़क से काफी अंदर दियारा में है। ऐसे में एक व्यक्ति अकेले शव को ठिकाने लगाने नहीं आ सकता है।
ऐसी स्थिति में स्वान दस्ता भी नहीं बुलाया गया। घटनास्थल से घटना के समय के एक सप्ताह पूर्व तक मोबाइल नंबर का डाटा एकत्रित कर गहन विश्लेषण किया जाता तो निश्चित रूप से कुछ परिणाम निकल सकता था।
कोर्ट ने कहा कि आधुनिक युग में भी पुलिस अपने विधिक कर्तव्यों के प्रति हत्या जैसे जघन्य मामलों में भी कितनी असंवेदनशील है, इस केस का अनुसंधान इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
प्रभारी सीजेएम मानवेंद्र मिश्रा की अदालत ने पुलिस की असंवेदनशीलता को गंभीरता से लेते हुए बैकुंठपुर थाना प्रभारी एवं इस केस के अनुसंधानकर्ता को आदेश दिया कि सदेह उपस्थित होकर बताएं कि आखिर किन परिस्थिति में अज्ञात महिला के शव की पहचान के लिए फोटोग्राफी नहीं करवाई गई?
किन-किन जिलों के थानों से महिला के शव मिलने की जानकारी साझा की गई? अगर ऐसा किया गया है तो इसका उल्लेख केस डायरी में क्यों नहीं है?
महिला के शरीर पर जो वस्त्र पाए गए हैं, क्या उन्हें भविष्य में पहचान के लिए कहीं सुरक्षित रखा गया है? क्या कुछ डीएनए सैंपल सुरक्षित रखे गए हैं? अगर ऐसा है तो इसका उल्लेख केस डायरी में क्यों नहीं है?
इस आदेश का पत्र प्राप्ति की तिथि से एक सप्ताह के अंदर अपना पक्ष बैकुंठपुर थाना प्रभारी एवं अनुसंधानकर्ता को रखने को कहा गया। ऐसा नहीं करने पर न्यायालय एकपक्षीय कार्रवाई के लिए स्वतंत्र होगी।