बिहार की परंपरा: काठ का दूल्हा और दुल्हन बना आम का पेड़, पहले कराते हैं शादी फिर फल खाते हैं परिवार के लोग



रंजीत कुमार पांडेय, डुमरांव (बक्सर)। विविध प्राचीन संस्कृति और परंपराओं वाले अपने देश में पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से बाग-बगीचों में फलदार पेड़ों की शादी कराने की प्रथा आज भी कायम है।
बाग-बगीचों में लगाए गए पेड़-पौधों का फल बिना शादी किए नहीं खाते हैं। दरअसल, नई दुल्हन आम के पेड़ की शादी काठ के दूल्हे से कराने की परंपरा यहां पूर्वजों के जमाने से चली आ रही है।
बाग-बगीचों में फलदार पेड़ों के लिए काठ का दूल्हा तैयार किया जाता है और शादी के बाद उसे पेड़ के पास ही रख दिया जाता है।

बगीचे के सभी पेड़ों को एक डोर से बांध दिया जाता है। शादी में बकायदा पंडित जी वैदिक मंत्रोच्चारण करते हैं। गांव के लोग बाराती बनकर काठ के दूल्हे के साथ आते हैं।
बारात की पूरी खातिरदारी की जाती है और सात फेरे की रस्म पेड़ के मालिक अपनी पत्नी के संग निभाते हैं। शादी से पहले द्वारचार आदि की रस्में निभाई जाती हैं।
महिलाएं मांगलिक गीतों के साथ काठ के दूल्हे के शरीर पर हल्दी का लेप लगाकर उसे शादी के लिए तैयार करती हैं। सिन्दूरदान और कन्यादान की रस्म होती है और अंत में इस आयोजन में शामिल होने वाले लोग पौधरोपण का संकल्प लेते हैं।
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आज भी गांवों में जब तक बाग-बगीचे में आम के पेड़ों की शादी नहीं हो जाती तब तक परिवार के लोग फल ग्रहण नहीं करते हैं। फल को खाने से पहले पूरे रीति-रिवाज के साथ उसे दुल्हन मानकर शादी कराते हैं।
पं. संजय ओझा बताते हैं कि आम फलों का राजा है। दुल्हन आम का विवाह काठ के दूल्हे के साथ कराने का सदियों पुराना चलन है।
पेड़ पर पहली बार फल आने पर यह रस्म कराई जाती है। बहुत पहले पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से हमारे मनीषियों ने यह प्रचलन शुरू किया था कि विवाह की रस्म होने के बाद ही परिवार के लोग बगीचों में लगाए गए आम के फल का सेवन कर सकते हैं।

आज भी हमारे समाज में वो परंपरा चली जा रही है। पं. अभयानंद पांडेय ने कहा कि जनमानस को पौधरोपण और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए पेड़ों की शादी का आयोजन कराया जाता है।
अनुमंडल के कोरानसराय गांव निवासी छोटे तिवारी, चौगाईं प्रखंड के ठोरी पांडेयपुर गांव निवासी श्याम बिहारी सिंह और ठाकुर सिंह के डेरा निवासी बबन यादव सहित अन्य कई लोग अपने लगाए गए बाग-बगीचों में पहली बार फल आने के बाद आम के पेड़ों की शादी गत दिनों करा चुके हैं।

छोटे तिवारी बताते हैं कि उन्होंने अपनी जमीन में विभिन्न प्रजातियों के आम के पौधे लगाए हैं। बाग लगाते समय यह संकल्प लिया था कि पुरानी परंपराओं के तहत जब बाग में खूब फल-फूल आने लगेंगे तो पेड़ों का विवाह कराएंगे।
इसी के तहत उन्होंने गत दिनों शुभ मुहूर्त में आम के पेड़ों की शादी काठ के दूल्हे के साथ वैदिक रीति-रिवाज के साथ कराई।
ग्रामीण देवीदयाल सिंह, अनिल तिवारी, भरत चौबे, दीप नारायण, दयाशंकर तिवारी, उमेश पांडेय, सीताराम सिंह औल सुरेंद्र यादव शहीद कई लोगों ने बताया कि बाग-बगीचों के पेड़ों की शादी की पुरानी परंपरा है।

हाल के दिनों में इस परंपरा से लोग दूर होते चले गए, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी फलदार पेड़ों के बड़े होने पर यह परंपरा निभाई जा रही है।
पर्यावरणविद् और सिद्धिपुर गांव निवासी श्रीनारायण तिवारी का कहना है कि बाग-बगीचों में पेड़ों की शादी कराने की परंपरा लोगों में स्वच्छ पर्यावरण के प्रति लगाव पैदा करती है। वस्तुत: इससे पेड़ परिवार में शामिल हो जाता है और उसकी देखभाल परिवार के सदस्यों की तरह होती है।

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