51 शक्तिपीठों में से एक हैं मां ताराचंडी, यहां गिरी थी सती की दाई आंख; नवरात्रि पर जुटेंगे पांच लाख श्रद्धालु



ब्रजेश पाठक, सासाराम (रोहतास)। आज से चैत्र नवरात्र प्रारंभ है। इसको लेकर मां दुर्गा के दरबार में भक्तों की भीड़ उमड़ी रही है। नवरात्रि पर सासराम के मां ताराचंडी के मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता है।
जिला मुख्यालय सासाराम से पांच किलोमीटर पूरब कैमूर पहाड़ी की गुफा में मां ताराचंडी का शक्तिपीठ है। मान्यता है कि यहां नवरात्रि पर सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।

इस पीठ के बारे में किंवदंती है कि सती के तीन नेत्रों में से श्री विष्णु के चक्र से खंडित होकर दायां नेत्र यहीं पर गिरा था, जो तारा शक्तिपीठ के नाम से विख्यात हुआ। मंदिर के मुख्य पुजारी प्रदीप गिरी और महामंत्री महेंद्र साहू बताते हैं कि वासंतिक नवरात्र, शारदीय नवरात्र और सावन में यहां मेला भी लगता है।
पुजारी आगे कहते हैं कि इस नवरात्र में पांच लाख से अधिक श्रद्धालुओं को दर्शन-पूजन करने की संभावना है। यहां लगभग 10 हजार अखंड दीप पूरे नवरात्र श्रद्धालु जलाते हैं। इसके लिए बाहर के राज्यों से भी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। अखंड दीप के साथ अपनी मन्नत भी मांगते हैं।

इतिहासकार डॉ. श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि सासाराम में मां तारा कैमूर पहाड़ी की प्राकृतिक गुफा में विराजमान हैं। देवी प्रतिमा के बगल में बारहवीं सदी के खरवार वंशी राजा महानायक प्रताप धवलदेव ने यहां एक बड़ा शिलालेख लिखवाया है।
उन्होंने बताया कि मां तारा की प्रतिमा में चार हाथ हैं। दाहिने हाथ में खड्ग और कैंची है। जबकि बायें में मुंड और कमल है। शव पर बायां पैर आगे है। कद छोटा है, लम्बोदर और नील वर्ण है। मंदिर परिसर की प्रतिमाएं सभी गुप्त कालीन या परवर्ती गुप्त कालीन हैं।

यहां खरवार राजा द्वारा शिलालेख लिखवाने का आशय यह रहा है कि ताराचंडी देवी की प्रसिद्धि उसी समय फैल चुकी थी। कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इस पीठ का नाम तारा रखा था। दरअसल, यहीं पर परशुराम ने मां तारा की पूजा की थी।

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