Nawada: टुकुर-टुकुर मुंह देख रहल हे मजदूर और किसान, बतावो राज्य के मुखिया जी ई कइसन समाधान



संवाद सहयोगी, वारिसलीगंज।  टुकुर- टुकुर मुंह देख रहल हे मजदूर और किसान, बतावो राज्य के मुखिया जी ई कइसन समाधान। उक्त कविता पर उपस्थित सैकड़ों श्रोताओं ने जोरदार ताली बजाकर समर्थन किया।
मौका था देश-देशान्तर मगहिया दालान के सफलतम 100वां ऑनलाइन कार्यक्रम का। शेखपुरा जिले के मगही साहित्यकार ब्रजेश सुमन ने यह कविता पाठ किया।

स्थानीय बायपास स्थित जेपीएस आईटीआई के प्रांगण में रविवार को आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी सह कवि सम्मेलन के दौरान कविता पाठ किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. मिथिलेश ने की। जबकि मंच संचालन कृष्ण कुमार भट्टा के द्वारा किया गया। इस दौरान नवादा, नालंदा, शेखपुरा, जमुई, लखीसराय तथा गया जिले के करीब एक सौ से अधिक हिंदी एवं मगही भाषा के कवि व साहित्यकार उपस्थित होकर अपनी रचना का पाठ किया।
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कार्यक्रम का आयोजन कवि मिथिलेश ने किया। जबकि प्रायोजक की भूमिका अपसढ़ पंचायत की मुखिया राजकुमार सिंह तथा सेवा निवृत्त शिक्षक सह मगही कवि नागेंद्र शर्मा बंधु ने निभाई।
कार्यक्रम के दौरान अपना वक्तव्य देते हुए वयोवृद्ध कवि मगधेश मिथिलेश ने कहा कि कोरोना संक्रमण काल के दौरान देश-देशान्तर मगहिया दालान के ऑनलाइन कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया था।

जो अनवरत जारी रहकर सभी कवि साहित्यकारों के सहयोग से अपना 100वां कार्यक्रम सफलता पूर्वक पूरा किया। ततपश्चात साहित्यिक संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का कार्यक्रम आयोजित हुआ।
उन्होंने कार्यक्रम के आयोजन में हर प्रकार के सहयोग के लिए कविगण के अलावे मुखिया राजकुमार सिंह तथा नागेन्द्र शर्मा को धन्यवाद दिया।

सम्मानित हुए चार दर्जन कवि लेखक व पत्रकार
कार्यक्रम के दौरान जेपीएस आईटीआई के निदेशक सह अपसढ़ मुखिया राजकुमार सिंह के द्वारा चार दर्जन से अधिक आगंतुक कवि लेखकों एवं पत्रकारों को पुष्प गुच्छ, शाल एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम से जुड़े कवियों ने राज्य सरकार से मगही भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की। साथ ही मगही एवं भोजपुरी भाषा के कवि लेखकों को अपनी रचनाओं को अश्लीलता एवं फूहड़ता से दूर रखकर राज्य की गरिमा को बचाने का आवाहन किया।

कार्यक्रम के आयोजक कवि मिथिलेश लिखित खण्ड काव्य की दो रचनाओं शबरी बिनु सबरे न काज तथा माउंटेन मैन दशरथ मांझी का लोकार्पण उपस्थित कवि साहित्यकारों ने किया।
कहा गया कि मगही भाषा के विकास के लिए रचनाओं की जरूरत है। सभी कवि लेखकों से अपनी अपनी रचनाओं को प्रकाशित करवाने पर जोर दिया गया।
लोकार्पण कार्यक्रम में कवि मिथिलेश, डा. गोविंद तिवारी, केके भट्टा, डा. मिथिलेश, उदय भारती, पूर्व जिप सदस्य राजीव कुमार सिन्हा, ओंकार कश्यप, डा. किरण, पूर्व सीओ श्याम सुंदर दुबे, मुखिया राजकुमार सिंह आदि लोग शामिल रहे।

कार्यक्रम के दौरान विविध रंगों की कविताओं से कार्यक्रम गुलजार होता रहा। इस दौरान बसंत ऋतु से जुड़े कविताओं के अलावा विरह वेदना, नारी की पीड़ा, सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार, भेाजपुरी व मगही गीतों में अश्लीलता एवं फूहड़ता को विषय बना कवियों ने उपस्थित श्रोताओं के भरपूर मनोरंजन किया।
इस मौके पर शम्भू विश्वकर्मा ने मगहिया दालान को कोरोना काल की उपलब्धि बताते हुए कविता पाठ किया। जबकि नालंदा के जयराम देवसपुरी ने खिचड़ी खा-खा के बुतरुअन जुआन हो रहन कविता पढ़कर आज की गिरती शिक्षा व्यवस्था पर प्रहार किया।

भागवत प्रसाद ने फगुआ के विविध रंगों को अपनी कविता में पिरोया। झारखंड से पहुंचे गोपाल प्रसाद ने हम ही मगहिया शीर्षक से कविता पढ़ी।
इस दौरान हिसुआ उदय भारती, लखीसराय के राजेन्द्र प्रसाद, शेखपुरा की प्रो. डा. किरण कुमारी, ममता कुमारी, अनिलानंद, काशीचक के परमानंद, कोलकाता के कवि पारस, नवलेश कुमार, अशोक समदर्शी, अशोक प्रियदर्शी, अनिल यादव, सकल यादव, डा. रंजीत, शैलेन्द्र शर्मा आदि ने अपनी रचनाओं को सुनकर उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।



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