रंजीत कुमार पांडेय, डुमरांव (बक्सर)। इसे वैदिक परंपरा का निर्वहन कहें या आदर्श जीवन आचरण को आत्मसात करने का संकल्प। गुरुवार को अनुमंडल क्षेत्र के नावानगर प्रखंड अंतर्गत मणियां गांव में चली आ रही पुरानी परंपरा के तहत बसंत पंचमी के दिन 11 लड़कियों को यज्ञोपवीत संस्कार कराया गया।
यह अनोखी परंपरा मणियां गांव स्थित दयानंद आर्य हाई स्कूल में प्रति वर्ष आयोजित होती है। इस स्कूल में पढ़ने वाली छात्राएं स्वेच्छा से जनेऊ धारण करती हैं। यहां जनेऊ धारण करने वाली छात्राएं रुढ़िवादी परंपरा को खत्म करने के साथ ही चरित्र निर्माण की शपथ लेती हैं। इस मुहिम में लड़कियों को परिवार और समाज से भी भरपूर सहयोग मिल रहा है।
जनेऊ संस्कार के दौरान वैदिक मंत्रोच्चारण से विद्यालय परिसर और आसपास का इलाका गुंजायमान हुआ। आचार्य हरिनारायण आर्य और सिद्धेश्वर शर्मा के नेतृत्व में इस बार ज्योति कुमारी, स्नेहा कुमारी, रेखा कुमारी, किरण कुमारी, वंदना कुमारी, गुड़ियांं कुमारी, कल्याणी कुमारी और छात्र बबलू कुमार सहित अन्य कई छात्राओं को यज्ञोपवीत संस्कार किया गया। इस मौके पर उपस्थित आचार्यों, प्रबुद्ध जनों और छात्राओं ने आगे भी यह प्रक्रिया अनवरत जारी रखने का संकल्प लिया।
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मणियां उच्च विद्यालय के संस्थापक और इलाके के छपरा गांव निवासी स्व. विश्वनाथ सिंह ने सन् 1972 ई. में इस परंपरा को शुरू किया था। उन्होंने सर्वप्रथम अपनी पुत्रियों को ही वैदिक संस्कार के तहत जनेऊ धारण कराया था। उसी समय से लड़कियों का यज्ञोपवीत संस्कार कराने की यह परंपरा जारी है। स्व. सिंह आर्य समाजी थे। मणियां के ग्रामीणों में दीनानाथ सिंह, वकील सिंह, कुमारी मीरा, कुमारी उषा, नित्यानंद सिंह, बबन सिंह और कमलेश सिंह का कहना है कि गुरुजी का इसके पीछे मुख्य उद्देश्य था कि नारी शक्ति को श्रेष्ठ कराने से समाज का कल्याण हो सकता है।
आचार्य हरिनारायण आर्य का कहना है, कि शिक्षा के प्रति समर्पित और नारी सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध स्व. आचार्य विश्वनाथ सिंह के बताए गए रास्ते का अनुसरण करते हुए यहां मूर्ति स्थापना का चलन नहीं है। इसकी जगह तीन दिवसीय सारस्वत यज्ञ के अंतिम दिन बसंत पंचमी को विद्यालय की छात्र-छात्राएं हवनकुंड के समक्ष बैठकर यज्ञोपवीत के रूप में आचार्य से श्रेष्ठ आचरण, आदर्श जीवन और सद्चरित्र का संस्कार ग्रहण करती हैं।
समाज में बेटियों का अपमान जहर के समान है, जिसके रहते हमारा कोई भी विकास सार्थक फल नहीं दे सकता है। ऐसे में भारतीय संस्कृति को ठुकरा कर हम महिला सशक्तिकरण की वास्तविकता को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। - आचार्य सिद्धेश्वर शर्मा