सुपौल, ब्रह्मानंद सिंह: वर्षों से चली आ रही दहेज कुप्रथा आज भी नासूर बनी हुई है। समाज के लगातार आधुनिक होने के बावजूद इस कुप्रथा की मौजूदगी जस की तस है। इस कुप्रथा के प्रति समाज की सोच व नजरिया में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है।
इसी का नतीजा है कि दहेज पर प्रतिबंध के बावजूद इस पर विराम नहीं लग पा रहा है। आलम यह है कि लगभग हर महीने एक से अधिक विवाहिता की जान दहेज के लिए जा रही है। सुपौल जिले में मौजूदा साल 15 विवाहिताओं की जान दहेज के लिए चली गई।
पिछले साल यानि 2021 में दहेज हत्या के मामले में काफी कमी आई थी, लेकिन मौजूदा साल में इसके आंकड़ों में वृद्धि दिखना सभ्य समाज के लिए चिंता का विषय है। यहां यह भी प्रासंगिक है कि कोई भी कानून तब तक प्रभावी नहीं हो सकता जब तक उसे समाज का समर्थन नहीं मिले। दहेज प्रथा जड़ से खत्म हो इसके लिए जरूरी है कि समाज के लोग पहले खुद को बदलें।
आधुनिक समाज के लिए कलंक बन चुके दहेज का किस कदर बोलबाला है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्ष 2022 में इस जिले में 78 मामले दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत दर्ज किए गए हैं। वहीं, 2021 में 69 मामले दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत दर्ज किए गए हैं। मालूम हो कि 02 अक्टूबर 2017 को जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाल विवाह और दहेज प्रथा को अभियान के तौर पर लिया तो दहेज के मामले में काफी कमी आई थी।
वर्ष 2021 में इस जिले में दहेज हत्या के 05 मामले प्रतिवेदित हुए थे, जो उक्त अभियान का असर बताया जा रहा था। दरअसल, शराबबंदी की सफलता के बाद इसे अभियान के तौर पर लिए जाने का फैसला लिया गया। शराबबंदी की सफलता के लिए 21 जनवरी 2017 को मानव शृंखला बनाई गई थी और दहेज प्रथा और बाल विवाह उन्मूलन के लिए 21 जनवरी 2018 को मानव शृंखला बनाई गई थी, लेकिन अब फिर से दहेज हत्या के आंकड़ों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।
दहेज प्रथा और बाल विवाह उन्मूलन अभियान की सफलता के लिए शुरुआती समय में ग्राउंड लेवल से निगरानी किए जाने की बात कही गई थी। पंचायतों में मुखिया, प्रखंड स्तर पर बीडीओ अनुमंडल स्तर पर अनुमंडल पदाधिकारी और जिला स्तर पर सदर एसडीओ इसकी निगरानी करते हैं। पंचायतों में किशोर-किशोरियों के समूह का भी गठन किया गया है। यह समूह किशोर-किशोरियों को बाल विवाह और दहेज प्रथा के उन्मूलन के प्रति जागरूक करता है। इसमें तीन किशोरी और एक किशोर होते हैं, लेकिन मौजूदा समय में इस जिले में दहेज हत्या के बढ़ते आंकड़े ढाक के तीन पात का पर्याय बना हुआ है।
वर्ष --- हत्या
2014 --- 21
2015 --- 14
2016 --- 10
2017 --- 16
2018 --- 08
2019 --- 10
2020 --- 15
2021 --- 05
2022 --- 15
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