उदया तिथि अष्टमी व रोहिणी नक्षत्र में आज जन्मेंगे कान्हा, तैयारी पूरी
जासं, सिवान : कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार जिला मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों में शुक्रवार को मनाया जाएगा। इसके लिए घरों से लेकर मंदिरों में विशेष तैयारियां की गई है। विशेषकर घरों व राधा कृष्ण मंदिरों में बाल कृष्णा के लिए आकर्षक झूला एवं झांकी की तैयारी की गई है। वहीं पूजन के साथ-साथ भजन कीर्तन का भी आयोजन किया जाएगा। आंदर के पड़ेजी निवासी आचार्य पंडित उमाशंकर पांडेय ने बताया कि भगवान श्रीकृष्णा का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में अर्द्धरात्रि के समय हुआ था। कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को किया जाता है। ऐसे में शुक्रवार को सूर्योदय व अर्द्धरात्रि के समय अष्टमी तिथि होने से यह पूर्ण मान्य है।
19 को 5:35 मिनट पर सूर्योदय होगा
आचार्य ने बताया कि 19 को 5 बजकर 35 मिनट पर सूर्योदय होगा। अष्टमी तिथि का मान संपूर्ण दिन अर्द्धरात्रि के बाद 1:06 मिनट तक रहेगा। कृतिका नक्षत्र भी संपूर्ण शेष 4.58 बजे तक है। इस दिन ध्रव योग पूरे दिन और अर्द्धरात्रि के बाद 1:06 मिनट तक है। अर्द्धरात्रि के समय चंद्रमा की स्थिति वृषभ राशिगत है। सूर्योदय के समय अष्टमी और अर्द्धरात्रि को भी अष्टमी होने से कृष्ण जन्माष्टमी व व्रतोत्सव के लिए यह दिन मान्य रहेगा। व्रत रहने वाले शनिवार की सुबह पारण करेंगे। इस वर्ष जन्माष्टमी अत्यंत शुभकारी है। यह व्रत सर्वमान्य और पापों को नष्ट करने वाला व्रत बाल, कुमार, प्रौढ़, युवा, वृद्ध और इसी अवस्था वाले नर-नारियों के करने योग्य है। इससे पापों की निवृति और सुखादि की वृद्धि होती है।
ऐसे करे पूजन :
सुबह स्नान कर विष्णु अवतार भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष व्रत का संकल्प करें। इसके बाद पूरे दिन श्रद्धानुसार व्रत रखें। व्रत अपनी इच्छानुसार निर्जल या फिर फलाहार लेकर रहें। कान्हा के लिए भोग-प्रसाद आदि बनाएं। शाम को श्रीकृष्ण भगवान का भजन कीर्तन करें। रात में 12 बजे नार वाले खीरे में लड्डू गोपाल को बैठाकर कन्हैया का जन्म कराएं। नार वाले खीरे का तात्पर्य माता देवकी के गर्भ से लिया जाता है। इसके बाद भगवान को दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल से स्नान कराएं। सुंदर वस्त्र, मुकुट, माला पहनाकर पालने में बैठाएं। फिर धूप, दीप आदि जलाकर पीला चंदन, अक्षत, पुष्प, तुलसी, मिष्ठान, मेवा, पंजीरी, पंचामृत आदि का भोग लगाएं। श्रीकृष्ण मंत्र का जाप कर श्रद्धापूर्वक आरती करें। इसके बाद प्रसाद बांटे औश्र खुद भी प्रसाद खाकर व्रत तोड़े।