संवाद सूत्र, सिंहेश्वर (मधेपुरा) : देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने वाले वीर सपूतों के बलिदानों को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने देश की आन-बान और शान के लिए हंसते-हंसते अपने प्राण की बाजी लगा दी थी। इनमें स्वतंत्रता सेनानी स्व कार्तिक प्रसाद सिंह की बहादुरी के कई किस्से हैं। बिहार के मधेपुरा में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन की चर्चा हो और यहां स्वतंत्रता सेनानी कार्तिक बाबू का नाम न आए, ऐसा संभव नहीं। आजादी के दीवाने क्रांतिकारियों के साथ कार्तिक बाबू ने मात्र 16 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था। यहीं नहीं देश की आजादी की लड़ाई में जेपी के साथ मिल कर कार्तिक प्रसाद सिंह ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। मूल रूप से मधेपुरा जिले के सिंहेश्वर प्रखंड स्थित लालपुर सरोपट्टी पंचायत के सरोपट्टी के कार्तिक प्रसाद सिंह ने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था। इंटर की पढ़ाई करने के दौरान ही वह स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आ गए। इसके बाद जयप्रकाश नारायण के साथ कई आंदोलन में उन्होंने साथ ही भाग लिया। बताया जाता है कि तकरीबन 16 साल की उम्र में ही वह सब कुछ छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए थे। उन्हें भारत में ब्रिटिश सरकार ने फरारी घोषित कर दिया था। फरारी की अवस्था में अक्सर वे नेपाल के घने जंगलों में रहा करते थे। कार्तिक प्रसाद 1942 के अगस्त क्रांति में काफी सक्रिय रहे। देश की आजादी के बाद कार्तिक बाबू मानव सेवा करने का जिम्मा उठाया और अपने मित्र जयप्रकाश नारायण व उनकी धर्म पत्नी के नाम से जय प्रभा कुष्ठ सेवा सदन की स्थापना सिंहेश्वर में की। वहां अपने हाथ से कुष्ठ रोगियों की घाव का साफ सफाई करते हुए दवाई मलहम व पट्टी करने लगे। पिता से प्रेरित हो कर कार्तिक प्रसाद ने आजादी के आंदोलन की लड़ाई में भाग लिया था।
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कारावास में अंग्रेजों ने कार्तिक प्रसाद को दी शारीरिक व मानसिक यातनाएं
कारावास में अंग्रेजों ने कार्तिक बाबू को खून यातनाएं दी। इसी दौरान उनके घर की कुर्की जब्ती भी की गई। उन्हें सुपौल के बसबिट्टी गांव से गिरफ्तार किया गया था। पहले कुछ दिन सुपौल जेल में रखने के बाद इन्हें पटना जेल भेज दिया गया, जहां अंग्रजों ने उनके साथियों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए उन्हें प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। एक माह तक इन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। इस दौरान जेल में वे बुरी तरह बीमार भी हो गए। तब मरणासन्न अवस्था में इन्हें हथकड़ी और बेड़ी लगाकर पीएमसीएच में भर्ती कराया गया था। इसके बाद कोतवाली थाना की हाजत, बांकीपुर, मधेपुरा, सहरसा जेल में रखने के बाद आखिर में भागलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।
जेपी के साथ कार्तिक सिंह को भी भेजना था कालापानी नेपाल में जयप्रकाश नारायण के साथ कार्तिक प्रसाद सिंह को भी हनुमान नगर जेल मे रखा गया था। तब नेपाल के तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद सिंह के सहयोग से जेल ब्रेक कर बाहर निकले। उस समय की अंग्रेजी हुकूमत इन सबों को काला पानी भेजने वाली थी।
कार्तिक प्रसाद सिंह का जन्म मधेपुरा अनुमंडल के सरोपट्टी ग्राम में 1904 में हुआ था। उनके पिता का नाम रंजीत सिंह था। वह जमींदार थे। कार्तिक बाबू की धर्मपत्नी का नाम मनोरमा देवी था। उनको तीन पुत्र बीरेंद्र नारायण सिंह, डा. भूपेंद्र नारायण सिंह व ई देवेंद्र नारायण सिंह था।