दरभंगा। प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के सपने को चिकित्सक पानी फेरने में लगे हैं। एक भी चिकित्सक जेनरिक दवा नहीं लिख रहे हैं। ऐसी स्थिति में मरीज महंगी दवा खरीदने को मजबूर है। जबकि, मरीजों को सस्ते दर पर दवाएं उपलब्ध कराने के लिए देशभर में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खुलवाया गया था। 2015 से जारी यह योजना गरीबों के लिए मजाक बनकर रह गया है। मरीज मेडिकल दवा दुकान से महंगी दवाएं खरीदने को मजबूर हैं। इसके पीछे कमीशन का खेल बताया जा रहा है। जेनरिक दवा काफी सस्ती है । ऐसी स्थिति में जनऔषधि केंद्र संचालक कमीशन देने में सक्षम नहीं है। यही कारण है कि जेनरिक की जगह महंगी दवाएं लिखी जा रही है। ऐसे में जन औषधि केंद्र का व्यवसाय ठप पड़ चुका है। गरीब मरीजों के लिए केंद्र सरकार की ओर से चलाए गए योजना को धरातल पर कैसे उतारा जाए इसे लेकर कोई अधिकारी भी गंभीर नहीं है। उत्तर बिहार का सबसे बड़े और चर्चित चिकित्सा संस्थान दरभंगा मेडिकल कालेज, अस्पताल और चिकित्सकों का हव माने जाने वाले बेंता व अल्लपट्टी के चिकित्सक सरकार के दबाव के बावजूद भी मरीजों को सस्ती दवाएं लिखने से परहेज कर रहे हैं। हालांकि, सिविल सर्जन और डीएमसीएच प्रशासन समय-समय पर चिकित्सकों को जेनेरिक दवाएं लिखने के आदेश देते रहते हें। लेकिन, यह कागजों पर ही रह जाता है। इसका न तो कभी समीक्षा होता है और न ही निरीक्षण व जांच। सरकार की सख्ती के बावजूद भी गरीब मरीज सस्ती दवा की जगह महंगी दवा खरीदने को विवश हैं।
----------- मेडिसीन वार्ड में खोली गई थी जेनरिक दवा की दो दुकानें :
प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के तहत दरभंगा मेडिकल कालेज, अस्पताल के मेडिसीन वार्ड में दो वर्ष पूर्व जेनरिक दवा की दो दुकानें खोली गई थी। लेकिन, चिकित्सकों ने मरीजों को जेनरिक दवा लिखना उचित नहीं समझा। हमेशा की तरह महंगी दवा ही लिखते रहे। ऐसी स्थिति मे जेनरिक दवा दुकानदार को परिवार चलाना मुश्किल हो गया। थकहार जेनरिक दवा दुकानदार ने हालात से समझौता कर लिया। मसलन, दुकान में जेनरिक की जगह महंगी दवा बेचने लगे। दुकानदार कहते हैं पुर्जा पर महंगी दवा ही लिखी जा रही है। ऐसी स्थिति में उसी दवा को बेच रहे हैं। बता दें कि पहली बार 2010 में डीएमसीएच के गायनिक और सर्जिकल वार्ड परिसर में सस्ती दवा दुकान खोलने का निर्णय लिया गया था। लेकिन, चिकित्सकों की मनमानी की वजह से सर्जिकल वार्ड परिसर में खोली गई दुकान मात्र डेढ़ साल में बंद हो गई। जबकि, गायनिक वार्ड में यह दुकान नहीं खुल पाई। बेंता चोक पर गरीब मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिए आधे दर्जन से ऊपर जेनरिक की दुकानें हैं। लेकिन, चिकित्सक के उदासी के कारण यह दुकानें भी बंद होने के कगार पर है।
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जेनरिक दवा से अनभिज्ञ हैं मरीज : जेनरिक दवा से अब भी मरीज अनभिज्ञ हैं। सस्ती दवा उनके लिए कितना लाभदायक है इसे लेकर कोई जागरूकता अभियान भी नहीं चलाया जाता है। चिकित्सक भी महंगी दवा को बेहतर और असरदार बताते हैं। डीएमसीएच के ओपीडी में इलाज कराने पहुंची सदर प्रखंड के शीला देवी ने बताया कि जेनरिक दवा क्या है यह हमे मालूम नहीं हैं। डाक्टर साहब जो दवा लिखें है वही खरीदेंगे। बता दें कि जेनेरिक दवा को इंटरनेशनल नान प्रापराइटी नेम मेडिसिन भी कहते हैं, जिनकी निर्माण सामग्री ब्रांडेड दवाओं के समान होती है। साथ ही ये दवाएं विश्व स्वास्थ्य संगठन की एसेंशियल ड्रग लिस्ट के मानदंडों के अनुरूप होती हैं। महंगी दवा और जेनेरिक दवा की कीमत में कम से कम पांच से दस गुना का अंतर होता है। इंटरनेशनल स्टैंडर्ड से बनी जेनेरिक दवाओं की क्वालिटी ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होती और ना ही ये कम असरदार होती है। जेनेरिक दवाओं की डोज उनके साइड-इफेक्ट्स सभी कुछ ब्रांडेड दवाओं जैसे ही होते हैं। ऐसे में कम दाम होने के पीछे कई कारण है। मसलन जेनरिक कंपनियों को अलग से रिसर्च और विकास के लिए प्रयोगशाला बनाने की जरुरत नही पड़ती है। इसके अलावा जेनेरिक दवा निर्माताओं के बीच प्रतिस्पर्धा होती है जिसके कारण भी दाम कम हो जाते हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि जेनरिक दवा बनाने वाली कंपनी विज्ञापन नही देती हैं, इस कारण लागत मूल्य बहुत कम हो जाती और मरीजों तक सस्ते दामों पर ये दवाएं उपललब्ध हो जाती है। ------------------