संवाद सूत्र, मधेपुरा : जेनेरिक दवाएं उपलब्ध नहीं होने से मरीजों को मंहगी कीमत पर दवाएं खरीदनी पड़ रही है। राज्य व केंद्र सरकार जेनेरिक दवा को बढ़ावा देने के लिए हर कोशिश कर रही है। हर जिलों में जेनरिक दवा की दुकान खोलने का एलान किया गया था। सदर हास्पिटल में इसके लिए जगह तक रखी हुई है, लेकिन निर्माण कार्य भी अब तक पूरा नहीं हो पाया है। इस वजह से अब तक जेनेरिक दवा की दुकान स्टार्ट नहीं की जा सकी है। स्तरीय और सस्ती दवा उपलब्ध कराने के मकसद से भारत सरकार ने 2008 में प्रधानमंत्री जन औषधि योजना शुरू की थी। 2016 में इसका नाम बदलकर प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) कर दिया गया। इसके तहत सरकारी हास्पिटलों में जन औषधि केंद्र खोलना था। दरअसल ब्रांडेड दवाइयों की कीमत की अपेक्षा जेनेरिक मेडिसिन काफी कम कीमतों पर मिल जाती है। कई दवाइयों की कीमत में 60 से 80 प्रतिशत तक फर्क होता है। इसीलिए समय-समय पर केंद्र व राज्य सरकार इसके लिए निर्देश जारी करती रहती है। यद्यपि इसका पालन न के बराबर होता है। लोगों को अब भी मार्केट से मंहगी दवाई ही खरीदनी पड़ती है। कोट जेनेरिक दवा कम कीमत पर मिल जाती है, लेकिन इसमें भी काफी परेशानियां है। सरकारी हास्पिटल में तो दवा के कंपोजिशन का नाम रहता है, लेकिन प्राइवेट अस्पतालों या नर्सिंग होम में दवाइयों का नाम ही रहता है। ऐसे में मरीज के स्वजन को वही दवा लेने की मजबूरी बन जाती है, जिसे चिकित्सक ने लिखा है। -राजेश कुमार, मधेपुरा
सरकार को हर व्यक्ति को जेनेरिक दवा मिलने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। इससे बीमारी में होने वाले खर्च से राहत मिलेगी। बीमारी में खर्च होने वाली राशि का ज्यादातर हिस्सा दवा लेने में भी खर्च होती है। जेनेरिक दवा उपलब्ध रहने से लोगों को काफी राहत मिलेगी। कई बीमारी के मरीजों को लगातार दवा खानी पड़ती है। -राहुल राज
जेनेरिक दवाइयों का दर ब्रांडेड कंपनियों की दवाइयों से काफी कम होता है। सरकार को दवाइयों के नामों की जगह दवाई का कंपोजिशन लिखने की अनिवार्यता की जानी चाहिए। ताकि मरीज अपनी अनुसार दवाई खरीद सकते है। अभी एक ही कंपोजिशन की दवाएं की दरों में काफी फर्क मिलता है। ब्रांडेड कंपनियों व जेनेरिक दवाईयों में तो जमीन आसमान का फर्क रहता ही है। ब्रांडेड कंपनियों के एक ही कंपोजिशन की दवाइयों की कीमतों में भी फर्क रहता है। -विष्णु खंडेलवाल, सिंहेश्वर
केंद्र व राज्य सरकार को जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए उचित कदम उठाना चाहिए। बीमारी ऐसी स्थिति है जिसमें लोगों को इलाज कराने के लिए लोगों को कर्ज भी लेना पड़ता है। इसको लेकर जागरूकता फैलाने की भी आवश्यकता है। लोगों को भी जागरूक होना पड़ेगा। वहीं नियम ऐसे हो कि चिकित्सक किसी कंपनी विशेष की दवाई लेने को बाध्य न कर सके। -निक्कू सिंह