संवाद सूत्र, उदाकिशुनगंज (मधेपुरा) : एक वह दौर था, जब अनुमंडल क्षेत्र में अपराध, उग्रवाद और नक्सलवाद चरम पर था। लोगों का दिन में भी घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया था। चारों तरफ गोलियां की तरतराहट सुनाई देती थी। कभी बदमाशों के बीच तो कभी पुलिस और अपराधियों के बीच मुठभेड़ की खबर आती रहती थी। इन सब के बीच आमजन का जीना मुहाल हो गया था। अभी के राज्य के व्यवस्था को सुशासन के नाम से जाना जाता है। लेकिन अभी की सुशासन व्यवस्था पहले की सरकार की मनमानी व्यवस्था से कम नहीं है। यह बात दिगर है कि पहले की तरह अपराधियों, उग्रवादियों और नक्सलियों का खास संगठन नहीं रह गया है। यद्यपि अपराध कम नहीं हुए हैं। पुलिस वाले भी पहले की व्यवस्था को दुहराने में पीछे नहीं है।
ताजा मामला बिहारीगंज थाना क्षेत्र के जौतेली पंचायत का है। पंचायत के रामपुर डेहरू के डेयरी संचालक मनोहर मेहता हत्या बदमाशों ने 31 मार्च की अल सुबह गोली मारकर कर दी। इस मामले में मृतक स्वजन द्वारा केस किया गया है। इसमें पंचायत के मुखिया अफसाना बेगम और उसके पति सिकंदर अंसारी सहित पांच लोगों को आरोपित किया गया। मामले में पुलिस अबतक हत्यारे तक नहीं पहुंच पाई है। हत्या का उद्भेदन करने के बजाय स्वजन को ही पुलिस अपने दमन का शिकार बनाया। मामले में पुलिस ने चश्मदीद श्यामल किशोर मेहता और मृतक के मसोरे भाई की बेहरमी से पिटाई की। बिहार पुलिस ने चश्मदीद को अंग्रेजों की तरह यातनाएं दी। उसे करंट लगा कर इस तरह टार्चर किया गया कि उसका मानसिक संतुलन खो गया है। उसका इलाज पटना में चल रहा है। पुलिस के ज्यादती के खिलाफ लोग सड़क पर उतरे और आंदोलन की ज्वाला शांत नहीं पड़ी है। ठीक 24 साल पहले जौतेली पंचायत में हत्या की एक घटना घटित हुई थी। इसमें संतोष सिंह नामक युवक को पुलिस ने अपने सर्विस रिवाल्वर से मौत के घाट उतार दिया था। वाक्या 12 दिसंबर 1998 की है। पूर्णिया जिले के बड़हरा कोठी थाना के तत्कालीन थाना प्रभारी मुखलाल पासवान ने सुबह दूध लाने अपने पड़ोस के गांव में जा रहे संतोष सिंह को रोककर नाम पता पूछने के बाद उसी जगह ढेर कर दिया। जबकि संतोष पर कोई दोषारोपण नहीं था। बताया जाता है कि उस वक्त पुलिस किसी अपराधी के तलाश में निकली थी। अपनी वाहवाही के लिए निर्दोष संतोष को मौत के घाट उतार कर मुठभेड़ में मारे जाने की कहानी रची। पूर्णिया के बड़हरा पुलिस संतोष के शव को भी अपने साथ लेकर चली गई थी। जब तक ग्रामीणों को जानकारी होती, काफी देर हो चुका था। उसके बाद यह बात आग की तरह फैली। उस समय आक्रोशित लोगों ने बिहारीगंज थाने का घेराव किया गया। बिहारीगंज थाना के तत्कालीन थाना प्रभारी प्रमोद राय इस घटना को लेकर हक्का-बक्का बने थे। वजह कि उन्हें कोई जानकारी ही नहीं थी। उसके बाद उग्र प्रदर्शन, धरना, बाजार बंद व तरह तरह का आंदोलन होता रहा। तब जाकर वह मामला मानवाधिकार आयोग पहुंचा। मानवाधिकार आयोग भारत सरकार के सदस्य सीबीआइ के पूर्व निदेशक एनके सिंह, उत्तर प्रदेश के अवकाश प्राप्त आइजी व एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की जांच टीम जोतेली पहुंचकर हत्या के अनुसंधान में जुट गई। उसके बाद बिहारीगंज थाना प्रभारी प्रमोद राय व अन्य ग्रामीणों का बयान लिया गया। एक वर्ष के बाद संतोष हत्याकांड में स्वजन को न्याय मिला। उनके स्वजन को मुआवजे के तौर पर पांच लाख रुपये का चेक मिला। वहीं आरोपित थानेदार मुख लाल पासवान को कानूनी तौर पर 10 साल की सजा हुई थी। क्या मनोहर मेहता हत्याकांड में भी कुछ ऐसा होगा। इस बात की चर्चा हो रही है।