अंदर की बुराई को दूर करने के लिए सत्संग का मार्ग अपनाएं : संजीव कृष्ण

संवाद सूत्र, आलमनगर (मधेपुरा) : प्रखंड के नगर पंचायत में संकट मोचन महावीर मंदिर परिसर में रामनवमी के शुभ अवसर पर आयोजित नौ दिवसीय राम कथा के तीसरे दिन की कथा में बालकांड का वर्णन किया गया। कथा के दौरान आचार्य संजीव कृष्ण महाराज ने अपने मुखारविद से उपस्थित श्रद्धालुओं को रामचरितमानस के बालकांड में वर्णित भगवान शिव व पार्वती के विवाह के प्रसंग के बाद भगवान राम के जन्मोत्सव की कथा का वर्णन किया। जब महाराज ने अपने मुख से भए प्रगट कृपाला दीन दयाला और अवध में आनंद भयो गया तब श्रोता खुशी व उमंग से झूम उठे। वहीं कथा वाचक ने जब-जब होई धर्म की हानि, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी, तब-तब धरि प्रभु मनुज शरीरा, हरहि कृपा निज सज्जन पीरा आदि चौपाई सुना कर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। कथावाचक ने प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने जेल में वासुदेव के यहां अवतार लेकर संतों व भक्तों का सम्मान बढ़ाया। उन्होंने कहा कि अपने अंदर बुराई विद्यामान न रहे इसके लिए संतों का सत्संग का मार्ग अपनाएं। उन्होंने कहा कि जब भक्ति मार्ग में भक्त लीन रहते हैं तब प्रभु का दर्शन होता हैं। जब कंस ने सभी मर्यादाएं तोड़ दी तो प्रभु श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और पृथ्वी पर राक्षस आतातायी बढ़ने लगा था तो नर रूप में भगवान राम जन्म लिए थे। उन्होंने कहा चौरासी लाख योनियों के भटकने के बाद जीव को मानव रूपी तन की प्राप्ति होती है। मगर अज्ञानी मनुष्य इसकी महत्व को नहीं पहचान पाता है। मनुष्य लोभ, मोह, अहंकार, मिथ्या, छल-प्रपंच आदि पाप कर्मों में अपने शरीर को नष्ट कर देते हैं। उन्होंने कहा कथा सुनने मात्र से बैकुण्ठ अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होती है। राम कथा का यज्ञ करने से इलाका का वातवरण शुद्ध होता है। देवता के प्रसन्न होने से देवत्व की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि कलियुग में कथा का श्रवण करना सबसे पुण्यकारी काम माना गया है। कथा का श्रवण करने का अवसर भी लोगों को प्रभु की इच्छा से मिलती है। उन्होंने कहा कि जो पुण्य हमें गंगा स्नान, काशीवास, जीवन पर्यत तीर्थों पर भ्रमण करने से प्राप्त होता है। इसलिए इस देह को उपयोग व्यर्थ कामों मे न करके जनकल्याण व ईश्वर भक्ति में समर्पित कर दें।


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