संवाद सूत्र, पुरैनी (मधेपुरा) : रंगों का त्योहार होली के आगमन की सुगबुगाहट होते ही लोगों पर इसका खुमार छाने लगा है। सुबह से लेकर शाम तक जगह-जगह होली के गीत गूंजने लगे हैं। लेकिन वर्तमान समय में होली के पुराने गीतों पर अब भोजपुरी गानों की आड़ में काफी अश्लीलता हावी हो गया है। प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाके में जहां होली पर आधारित जोगीरा की धुन अब भोजपुरी में सुनाई पड़ने लगी है।वहीं मुख्यालय में मारवाड़ी समाज के लोगों के घरों में शाम ढलने के बाद होली पर आधारित राजस्थानी गीतों का शोर होने लगा है। स्थानीय लोगों का मानना है कि बसंत पंचमी के बाद से ही होली की सुगंध जहां फिजाओं में तैरने लगती है। वहीं उस समय से ही होली के गीत गूंजने की परंपरा युग-युगांतर से चली आ रही है। वर्तमान समय पर हावी आधुनिकता के आगे पुरानी होली की हुड़दंगता अब गांवों में भी जहां नही के बराबर देखी जा रही है। वहीं होली के पुराने गीतों पर अश्लीलता हावी हो चुकी है। होली पर्व पर ग्रामीण इलाके के चौक-चौराहों पर होली की ग्रामीण गीत के साथ ढोल की थाप व झाल की आवाज अब सुनाई नहीं दे रही है। इसके बदले अब सिर्फ भोजपुरी के अश्लील एवं द्विअर्थी गीत सुनाई पड़ रही है। पहले की भांति अब जोगिरा स र र र गांव के युवाओं द्वारा नहीं गाया जा रहा है। अश्लील गीतों के आगे अब होली की उमंग गायब होने लगी है। आमलोगों का मानना है कि गीत-संगीत ही होली त्योहार का श्रृंगार है। गीत-संगीत के सहारे ही होली का रंग परवान पर पहुंचता है। जगह-जगह बज रहे होली की गीत से जहां त्योहार की समां अभी से बंधने लगी है। वहीं चहुंओर उमंग के बीच रंगों के त्योहार का माहौल भी बनता जा रहा है।
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