सिंघाड़ा, मखाना और जलकुंभी की खेती, किसानों के घर आएगी समृद्धि

दरभंगा। वषरें से बागमती और कमला-बलान की बाढ़ से तबाह कुशेश्वरस्थान के किसान जलीय खेती से समृद्धि लाएंगे। उन्नत और नई तकनीक के जरिये बाढ़ की तबाही का कलंक धोएंगे। पाच दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगमन और जलीय खेती को बढ़ावा देने की योजना से उम्मीद जगी है। उन्होंने कुशेश्वरस्थान के लिए तैयार जलीय कृषि माडल को देखा था। योजना के अनुसार यहा की परिस्थितियों के अनुरूप जलजमाव वाले क्षेत्रों में जलीय पौधे लगाए जाएंगे। इसके तहत कमलगट्टा, सिंघाड़ा और मखाने की खेती की जाएगी। किसानों को मखाना अनुसंधान केंद्र के माध्यम से ट्रेनिंग भी दी गई है। इसमें जाले कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानियों का भी सहयोग मिल रहा है।


समेकित कृषि की दी गई ट्रेनिंग जाले कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानियों ने किसानों को जलवायु अनुकूल समेकित कृषि की ट्रेनिंग दी है। कुशेश्वरस्थान व आसपास के करीब 30 किसानों को इससे जुड़ी ट्रेनिंग दी गई है। बताया गया है कि कैसे जलजमाव को हथियार बनाकर उन्नत खेती की जा सकती है। विज्ञानियों की टीम में जाले कृषि विज्ञान केंद्र के केंद्राधीक्षक डा. दिव्याशु शेखर, विज्ञानी डा. आरपी प्रसाद, आत्मा के परियोजना निदेशक पूणर्ेंदु झा व पूसा स्थित बोरलाग इंस्टीट्यूट आफ साउथ एशिया (बीसा) के विज्ञानी डा. आरके जाट ने अहम भूमिका निभाई है।
डा. दिव्याशु बताते हैं कि सरकार की योजना के अनुरूप कुशेश्वरस्थान के किसानों को प्रशिक्षित किया गया है। उन्हें खेती की नवीन तकनीक की ओर ले जाना है। सरकार की योजनाओं से किसानों को आच्छादित कर उन्हें आर्थिक उन्नति की राह पर लाना है। बाढ़ से आनेवाली बाधाओं को पार कर किसान आगे बढ़ सकें।
जलकुंभी से बनेगी खाद : कुशेश्वरस्थान पूर्वी और पश्चिमी प्रखंड की 23 में अधिसंख्य पंचायतें साल में कम से कम छह महीने जलजमाव की पीड़ा झेलती हैं। यहा की खेती बाढ़ और बारिश पर निर्भर करती है। खेतों और तालाबों में जलकुंभी फैली रहती है। जाले कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानियों ने 100 जीविका दीदी व किसानों को जलकुंभी से केंचुआ खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया है।
किसानों को बड़े बदलाव की उम्मीद : प्रशिक्षण प्राप्त किसान कुशेश्वरस्थान की गोठानी पंचायत के हथौड़ी निवासी रामसोहन राय बताते हैं कि जाले कृषि विज्ञान केंद्र से समेकित खेती का प्रशिक्षण मिला है। विज्ञानियों ने गावों में भी आकर किसानों को जलीय फसलों की खेती की जानकारी दी है। बाढ़ वाले क्षेत्र में जलकुंभी से खाद बनाना, सिंघाड़ा, मखाना और कमलगट्टे की खेती निश्चित बड़ा बदलाव लाएगी।

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