संवाद सूत्र, सिंहेश्वर (मधेपुरा) : सनातन धर्म के विभिन्न पक्षों और उनमें निहित प्रज्ञा को उजागर करने के लिए वर्ल्ड योग कम्यूनिटी न्यूयार्क द्वारा आयोजित आनलाइन ग्लोबल कांन्फ्रेंस आन हिंदुज्म पर बीएनएमयू की प्रोवीसी ने अपना व्याख्यान दिया। एसोसिएशन आफ इंडियन फिलोसफर इंटरनेशनल और शांथिगिरी रिसर्च फाउंडेशन के सहयोग से आयोजित कांन्फ्रेंस में प्रोवीसी प्रो. आभा सिंह ने भारतीय ज्ञान परंपरा और उसकी उपादेयता पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि हिंदू ज्ञान परंपरा में विरोधियों के मत को नकारा नहीं बल्कि अपने मत की स्थापना से पहले विरोधियों के मत को पूर्व पक्ष के रूप में समुचित स्थान दिया है। प्रो. सिंह ने कहा कि हिन्दु परंपरा एकवादी नहीं बल्कि बहुलवादी रही है। इसी कारण भारत में वैदिक परंपरा के साथ बुद्ध और जैन परंपरा का विकास बिना किसी रूकावट के हुआ।
उन्होंने कहा कि हिंदू परंपरा में मौखिक शिक्षा प्रमुख रही, लेकिन लिपि का विकास भी काफी हुआ। इसका प्रमाण है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के अशोक शिलालेख तीन लिपियों में लिखा गया है। प्रोवीसी ने कहा कि हिंदू ज्ञान परंपरा का चरम उत्कर्ष ही है कि वैदिक सूक्ति वसुधैव कुटूंबकम, सर्वे संतु सुखिन को आज भी संपूर्ण जगत में सराहा जा रहा है। हिंदू परंपरा में विकसित पाणिनी का अष्टाध्यायी ग्रंथ व्याकरण की दृष्टि से सटिक है।
आज इस ग्रंथ का अध्ययन संसार के कंप्यूटर वैज्ञानिक कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति और न्याय शास्त्र पर भी ऐस ग्रंथों की रचना हुई है जो आज भी समीचीन है। उन्होंने कहा कि हिंदू परंपरा में चार वेद, छह अंग, दस ग्रंथ, 14 विद्या, 64 कला और 18 शिल्पांका विकास हुआ। भारतीय शिल्प विद्या आज के व्यवसायिक पाठ्यक्रमों को मार्गदर्शन दे रहा है। उन्होंने कहा कि गणित, खगोल शास्त्र, आयुर्विज्ञान, शल्य चिकित्सा, खनन, धातु विद्या के क्षेत्र में भी प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा का योगदान अतुलनीय रहा है। प्रोवीसर ने संपूर्ण ज्ञानक विकास में गुरु शिष्य परंपरा की भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि भारतीय परंपरा में शिक्षा ही वह धन है जो संपूर्ण संसार में व्यक्ति का सम्मान दिलाने में सक्षम है। मौके पर भारतीय दार्शनिक अनुसंधान के पूर्व अध्यक्ष सह अखिल के भारतीय दर्शन परिषद के अध्यक्ष प्रो. एसआर भट्ट, सचिव प्रा. एस पनीर सिल्वम व अन्य ने भी अपनी बातें कही।