अभिषेक कुमार सिंह। Internet Shutdown एक वक्त था जब तकनीक की ओर हम तभी देखते थे, जब किसी जरूरी और जटिल काम में मशीनी सहयोग की जरूरत होती थी। वह दौर ज्यादातर मामलों में मेहनत के कार्यो से संबंधित था, लेकिन कंप्यूटर-इंटरनेट आदि तकनीकी इंतजामों ने ये परिभाषाएं काफी बदल दीं। अब सिर्फ कामकाज नहीं, बल्कि मनोरंजन और समय काटने के प्रबंधों के तौर पर भी तकनीकी उपकरणों और माध्यमों की जरूरत है। यह जरूरत कितनी अहम, उपयोगी और बड़ी है-इसका एक अहसास दुनिया को हाल में कुछ हद तक तब हुआ, जब फेसबुक, उसके अन्य सहयोगी इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म यानी वाट्सएप और इंस्टाग्राम छह घंटों के लिए ठप पड़ गए।
इंटरनेट मीडिया के ये मंच चूंकि मनोरंजन के अलावा कामकाजी दुनिया को सजीव बनाए रखने के टूल के तौर पर भी विकसित हो गए हैं, इसलिए इनका ठप होना पूरे विश्व के लिए एक अहम खबर बन गई। यह चिंता भी मुखर हुई कि क्या इंटरनेट के इन संचार माध्यमों पर हमारी इतनी अधिक निर्भरता कहीं से भी ठीक है। कहीं ऐसा तो नहीं कि फेसबुक जिसे एक तकनीकी व्यवधान बता रहा है, उसके पीछे कोई बड़ी साजिश काम कर रही है?
सर्वर ने बिगाड़ी फेसबुक की चाल : जैसे-जैसे इंटरनेट का साम्राज्य विस्तृत होता जा रहा है, भारी बोझ के कारण अचानक किसी दिन उसके ढह जाने की आशंकाएं भी उसी मात्र में बढ़ती जा रही हैं। यदि फेसबुक और उससे संबंधित अन्य इंटरनेट मीडिया मंचों की बात करें तो इनका बंद होना कोई अनोखी घटना नहीं है। इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ है, जब सर्वर बैठ जाने के चलते फेसबुक आदि पर लोग कई घंटों तक कोई कामकाज नहीं कर सके। दो साल पहले तीन जुलाई, 2019 को फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सएप आठ घंटों के लिए ठप पड़ गए थे। इनके कई फीचर काम नहीं कर रहे थे। फेसबुक ने कहा था कि उसे समस्या के बारे में पता है और उसे दुरुस्त कर लिया जाएगा। आठ घंटों की मेहनत के बाद समस्या सुलझा ली गई, लेकिन यह रहस्य ही बना रहा कि आखिर एक साथ इंटरनेट मीडिया के सभी प्लेटफार्म क्यों ध्वस्त होते नजर आए।
अब से करीब छह महीने पहले भी वाट्सएप, इंस्टाग्राम और फेसबुक पूरी दुनिया में 42 मिनट तक ठप रहे थे। तब रात 11.05 मिनट पर शुरू हुई यह समस्या करीब 11:47 बजे तक बनी रही थी। आम तौर पर वेबसाइटों और एप पर ऐसी दिक्कतें तभी आती हैं, जब इसके यूजर बड़े पैमाने पर एक साथ इन्हें इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में सवाल उठा कि कहीं इन पर कोई साइबर हमला तो नहीं हुआ है? या जासूसी के मकसद से खुद फेसबुक ने तो ऐसा नहीं किया है? ध्यान रहे कि इंस्टाग्राम और वाट्सएप का मालिकाना हक अब फेसबुक के पास है और इन पर वह मनचाहा नियंत्रण कर सकता है। यह देखते हुए कि भारत में फेसबुक, वाट्सएप और इंस्टाग्राम के प्रयोगकर्ताओं की संख्या करोड़ों में है, ऐसे में हमारे लिए यह जरूरी हो जाता है कि इसमें आ रहे व्यवधान के कारणों की तह में जाया जाए।
फेसबुक ठप होने की ताजा घटना के सिलसिले में साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी एक वजह बार्डर गेटवे प्रोटोकाल हो सकती है। असल में इंटरनेट के संचालन में बार्डर गेटवे प्रोटोकाल की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। यह प्रोटोकाल ही इंटरनेट पर मौजूद सभी नेटवर्को को एक-दूसरे के साथ जोड़ता है। चूंकि इंटरनेट खुद में एक तरह का तकनीकी जाल है, ऐसे में बार्डर गेटवे प्रोटोकाल इस जाल में मौजूद किसी भी वेबसाइट को निर्देश मिलते ही तेजी से खोलने (ओपन) का रास्ता खोजता है।
दावा है कि पिछले दिनों इस प्रोटोकाल में कोई समस्या पैदा हो गई, जिससे यह फेसबुक आदि के नेटवर्क का रास्ता (पाथ) नहीं खोज पा रहा था। इससे फेसबुक और उसके अन्य सहयोगी मंच बंद हो गए। इस गड़बड़ी का एक पहलू यह भी है कि हाल में फेसबुक ने कई तकनीकी बदलाव (इंटरनल ट्रैफिक राउटिंग चेंज) भी किए थे। इससे फेसबुक के डोमेन नेम सिस्टम सर्वर ने काम करना बंद कर दिया था। यह सिस्टम इंटरनेट की डायरेक्टरी के तौर पर काम करता है, जहां हर एक वेबसाइट का पता आइपी एड्रेस के रूप में दर्ज होता है। ऐसे में जब कोई भी व्यक्ति किसी वेबसाइट को खोलने के लिए उसका नाम (डोमेन नेम जैसे कि जागरण.काम) टाइप करता है तो यह सर्वर डोमेन नेम को तुरंत आइपी एड्रेस में बदल देता है। फेसबुक ने हाल में जो तकनीकी बदलाव किए थे, दावा है कि उनकी वजह से इस सर्वर ने कुछ समय के लिए काम करना बंद कर दिया था। यह घटना फेसबुक और अन्य इंटरनेट मीडिया मंचों के बंद होने की वजह बन गई।
कहीं कोई साजिश तो नहीं : हालांकि कुछ लोग फेसबुक ठप पड़ने की घटना के पीछे किसी साजिश की आशंका भी जता रहे हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि फेसबुक का अब पूरा ध्यान कमाई पर है और उसे अपने उपयोगकर्ताओं (यूजर्स) के हितों से कोई ज्यादा लेनादेना नहीं है। ऐसे में यह घटना किसी साजिश का संकेत हो सकती है। इससे जुड़ी आशंका को फेसबुक की एक पूर्व कर्मचारी फ्रांसेस होगन के एक इंटरव्यू से संबद्ध किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि फ्रांसेस असल में व्हिसल ब्लोअर हैं। उन्होंने एक अमेरिकी न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में आरोप लगाया है कि फेसबुक असल में जनता को नुकसान पहुंचाने का काम कर रहा है। यूजर्स की निजता और उनके डाटा की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के बजाय लाभ कमाने की होड़ में लगा हुआ है।
फ्रांसेस के बारे में माना जाता है कि वह अक्सर फेसबुक के ऐसे कारनामों को उजागर करने के लिए उसकी आंतरिक जांच की रिपोर्ट को मीडिया में लीक करती रही हैं। उनकी ऐसी ही एक रिपोर्ट इधर वाल स्ट्रीट जर्नल में 'द फेसबुक फाइल्स' नाम से प्रकाशित हुई है। कहा जा रहा है कि उपयोगकर्ताओं की डिजिटल प्राइवेसी और साइबर सिक्योरिटी के मामले में अपनी नाकामी छिपाने के मकसद से फेसबुक ने हालिया शटडाउन को अंजाम दिया था। हालांकि इससे फेसबुक को भारी नुकसान भी हुआ। उसके शेयरों में करीब पांच फीसद की गिरावट आई और छह घंटों में उसका कारोबार थमने से कंपनी और उसके संस्थापक-सीईओ मार्क जकरबर्ग को लगभग 52 हजार करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा, पर सिर्फ फेसबुक को हुए नुकसान की ही बात क्यों की जाए।
बात तो उन करोड़ों फेसबुक, वाट्सएप और इंस्टाग्राम उपभोक्ताओं को हुए नुकसान की भी होनी चाहिए। आखिर ये सारे इंटरनेट मीडिया के मंच जिन उपभोक्ताओं के बल पर चल रहे हैं, उनकी निजता के हनन से लेकर उन्हें चंद कंपनियों के उत्पादों का मानसिक रूप से गुलाम बनाने का काम कर रहे हैं। इसलिए असली नुकसान तो इनके यूजर्स को हो रहा है, लेकिन इसकी कहीं कोई चर्चा नहीं है। असल में जिन तरीकों के बल पर इंटरनेट आज हम तक पहुंच रहा है, वह काफी आधुनिक होने के बावजूद इतना मजबूत नहीं हुआ है कि किसी भी हाल में उसके काम करते रहने का भरोसा जग सके। एक समस्या तो यही बताई जा रही है कि जिस तरह से दुनिया में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ रही है और जिस प्रकार सर्वरों पर बोझ बढ़ रहा है, उस हाल में इंटरनेट का साम्राज्य कभी भी ढह सकता है।
असल में बीते तीन दशकों में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या और विभिन्न कामकाज के लिए हमारी इस तकनीक पर निर्भरता-दोनों में भारी इजाफा हुआ है। एक गणना है कि करीब ढाई दशक पहले 1995 में दुनिया की आबादी का सिर्फ एक फीसद हिस्सा इंटरनेट से जुड़ा हुआ था, लेकिन अब दुनिया की साढ़े चार से पांच अरब आबादी इंटरनेट की सक्रिय उपभोक्ता है। दुनिया की 60 फीसद आबादी किसी न किसी रूप में इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही है। हालांकि इसमें डिजिटल खाई जैसा एक असंतुलन भी कायम है। जैसे यूरोप-अमेरिका में 70 से 95 फीसद आबादी इंटरनेट का प्रयोग करती है, जबकि एशियाई और अफ्रीकी देशों में यह प्रतिशत काफी कम है। हालांकि भारत जैसे विकासशील देश में करीब 56 करोड़ लोग, जबकि पड़ोसी चीन में 85 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगे हैं, लेकिन फिर भी पूरी दुनिया में खरीद-बिक्री, पढ़ाई, परीक्षा, टीकाकरण, सरकारी योजनाओं का पंजीकरण सहित और भी बहुत से काम इंटरनेट से हो रहे हैं।
ऐसे में अगर किसी वजह से इंटरनेट की सांसें थमती हैं तो नजारा सच में काफी भयावह हो सकता है। इसे आज की दुनिया के लिए एक अशुभ घटना के तौर पर देखे जाने की बात भी सामने आई है। चार साल पहले 2017 में अमेरिकी विश्वविद्यालय स्टैनफोर्ड के शोधकर्ता और मनोवैज्ञानिक जेफ हैनकाक ने विश्वविद्यालय के छात्रों के सामने इंटरनेट शटडाउन की स्थितियां रखी थीं तो निष्कर्ष यह निकला कि ऐसे हालात में उन्हें कुछ अशुभ घटित होने जैसा अहसास होगा। मानो किसी ने हमारे सिर पर बम फोड़ दिया हो, क्योंकि दुनिया से पूरी तरह कट जाने के बाद हर एक व्यक्ति को यह अहसास हो सकता है कि वह किसी निर्जन द्वीप पर अकेला फंस गया है और निरुपाय हो गया है। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि आखिर वह कौन सा तरीका होगा, जो इंटरनेट शटडाउन को रोक सकता है। विशेषज्ञों की राय में इंटरनेट पर निर्भर हो चुकी दुनिया को पीछे लौटाना अब मुमकिन नहीं है।
ऐसे में एकमात्र रास्ता यही है कि इंटरनेट के संचालन में आ रही बाधाओं को दूर करने के तरीके खोजे जाएं। जैसे सर्वरों की संख्या बढ़ाई जाए। जिन दूरदराज और दुर्गम इलाकों में आप्टिकल फाइबर लाइनें नहीं पहुंच सकतीं, वहां सैटेलाइट या हीलियम गुब्बारों की मदद से इंटरनेट पहुंचाया जाए। समुद्र की तलहटी में मजबूत केबल्स बिछाई जाएं, जिन्हें जहाजों के लंगर की मार से बचान के जतन भी किए जाएं। अगर समस्या तकनीकी प्रबंधों के संजाल से पैदा हो रही है तो उनका समाधान भी तकनीक में ही छिपा है।
[एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध]