बक्सर : धान का कटोरा कहे जाने वाले इस जिला में किसानों की समस्या कम होने का नाम नही ले रही है। शुरुआत में धान की रोपाई के वक्त पानी की समस्या तो धान कटने के बाद पराली का क्या करें, इस चिता में किसान परेशान हो रहे हैं। यदि खेतों में जलाएं तो राज्य सरकार से कोई अनुदान प्राप्त नही होगा। लेकिन किसान हजारों रुपये लगा कर खेतों से पराली को इकट्ठा करें अन्यथा सरकारी कृषि अनुदान से वंचित रहें। जिला कृषि विभाग पराली प्रबंधन में पूरी तरह पिछड़ा हुआ है। विभाग के पास ़िफलहाल किसानों को जागरूक करने के अलावा कोई योजना नही है। ऐसे में किसान गेंहू की बुवाई कराए या पराली को इकट्ठा करें, इसी समस्या से किसान अभी परेशान हो रहे है।
गौरतलब हो कि खेतों में फसलों के अवशेष जलाने से प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है। हरियाणा व पंजाब सहित अन्य जगहों पर पराली जलाने से देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण उच्च स्तर पर पहुंच चुका है। जिससे इसे जलाने से रोकने के लिए हरियाणा व पंजाब सरकार किसानों को पराली प्रबंधन के लिए योजना बना रखी है। वहां किसान धान काटने के बाद खेतों में पराली जलाते नही है। विभिन्न प्रकार की आधुनिक तकनीक की मशीनों से पराली को खेतों से हटाया जाता है। इधर, कृषि विभाग के पास ना कोई मशीन है और ना कोई योजना। केवल किसानों को सलाह दी जा रही है कि खेतों में डी कम्पो•ार दवा का छिड़काव करें। जब किसान गेंहू बोने के लिए धान की बिक्री कर पैसे का जुगाड़ कर रहे है। ऐसे में पुआल इकट्ठा करने व दवा का छिड़काव करने के लिए मजदूरों को लगाए या फिर चार पांच दिन का विलंब कर खेतों में गेहूं की बुवाई करें, जिससे लागत के अनुरूप उत्पादन होने पर संशय बना रहेगा। ठोरी पांडेयपुर के किसान शिवशंकर तिवारी, शशि कांत तिवारी, पत्रकोना के अखिलेश तिवारी, कनझरुआ के लाल बाबू मिश्रा, खेखसी के करुनानिधान ओझा व जलवासी के किसान टुनटुन दुबे का कहना है कि पराली प्रबन्धन के लिए कृषि विभाग को उपयुक्त योजना बनानी चाहिए।
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