सहरसा। तीसरे चरण में हुए मतदान के साथ ही विधानसभा चुनाव समाप्त हो गया है। चुनाव के दौरान विकास, रोजगार मुद्दा बना रहा। महागठबंधन और राजग दोनों ही गठबंधन की ओर से इस घोषणा पत्र जारी किया गया। चुनाव सभाओं में रोजगार के मुद्दे पर युवाओं का जोश देखते ही बनता था। कोरोना के दौरान बाहरी प्रदेश से मजदूरों के घर लौटने के बाद स्थानीय स्तर पर रोजगार की कमी हर किसी को खला था। हरहाल इस इलाके की बात करें तो ऐतिहासिक धरोहरों का संवर्द्धन इलाके में रोजगार के नए अवसर पैदा कर सकता है। चुनाव समाप्त होने के बाद नए प्रतिनिधि के समक्ष इसके विकास की चुनौती रहेगी।
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कौन से धरोहर हैं महत्वपूर्ण
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यूं तो सीमांचल,कोशी और मिथिलांचल के धरोहर स्थल ऐतिहासिक की ²ष्टिकोण से महत्वपूर्ण माने जाते हैं लेकिन सहरसा जिला में महिषी स्थित पाल कालीन उग्रतारा स्थान,सातवीं शताब्दी के प्रकांड मीमांसक पं.मण्डन मिश्र की भूमि,आचार्य वन,आओनाईनवर वंश के शासक द्वारा 15 वीं शताब्दी में निर्मित कन्दाहा का सूर्य मंदिर एवं गुप्त काल का नाकुच स्थित शिव मंदिर, आरापट्टी स्थित कचनारी टीला के अतिरिक्त संत बाबा कारू खिरहरी का मंदिर इतिहासकारों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। इसके अतिरिक्त गुप्तकालीन काठो का शिवमंदिर,चैनपुर का शिवालय व अन्य प्राचीन मूर्ति भी इस जिले के ऐतिहासिक स्थलों में चर्चित हैं। इन सबसे अधिक गोरहो के मौर्यकालीन टीले की चर्चा तो हर इतिहासकारों द्वारा की जाती रही है।
दुर्भाग्य से इनमें से महज कन्दाहा सूर्य मंदिर को ही आजतक प्रदेश कला संस्कृति विभाग द्वारा संरक्षण सूची में स्थान मिल पाया है। जबकि महिषी के उग्रतारा स्थान एवं पं.मंडन मिश्र की जन्म भूमि को संरक्षित करने की प्रक्रिया जिला प्रशासन की उदासीनता के कारण वर्ष 2015 से लंबित है। गोरहो स्थित मौर्य कालीन टीले की वैज्ञानिक उत्खन्न को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 1982 में पारित आदेश के बावजूद आज वो ऐतिहासिक स्थल न तो केन्द्र की संरक्षण सूची में शामिल हो सकी है और न ही प्रदेश के। वहीं महिषी के मंडन धाम के उत्खन्न का प्रस्ताव भी वर्ष 2010 से ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास लंबित है। ऐसे में इस क्षेत्र को वैश्विक पहचान दिलाने में सक्षम इन धरोहरों के प्रति जनप्रतिनिधियों की उदासीनता की चर्चा यहां के लोगों में है।
इस संबंध में अमित आनन्द,राजेन्द्र झा,मदन झा,लोचन मिश्र जैसे इतिहास के जानकारों का कहना है कि इन ऐतिहासिक स्थलों के विकास से क्षेत्र का विकास के साथ साथ रोजगार के भी अवसर पैदा किए जा सकते हैं।
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