8 नंवबर यानि रविवार के दिन भारतीय महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का व्रत करेंगी। करवा चौथ के चार दिन बाद आने वाले यह व्रत कृष्णपक्ष की अष्टमी पड़ता है, जिसमें तारों को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण होता है। हालांकि कुछ महिलाएं चंद्रमा को देखकर भी व्रत खोल लेती हैं। यह निर्जला व्रत महिलाएं संतान प्राप्ति और उनकी लंबी उम्र व खुशहाली के लिए रखती हैं। चलिए आपको बताते हैं व्रत का शुभ मुहूर्त व पूजा विधि...
क्यों कहा जाता है अहोई आठें?
उत्तर भारत में प्रसिद्ध इस व्रत को अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह अष्टमी तिथि (माह का आठवां दिन) के दौरान होता है। करवा चौथ के समान अहोई अष्टमी के दिन भी महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 08 नवंबर को सुबह 07 बजकर 29 मिनट अष्टमी तिथि समाप्त: 09 नवंबर को सुबह 06 बजकर 50 मिनट पर पूजा का मुहूर्त: 5 बजकर 37 मिनट से शाम 06 बजकर 56 मिनट के बीच कुल अवधि: 1.27 मिनट
सभी परेशानियां होती है दूर
मान्यता है कि अहोई अष्टमी की पूजा करने से संतान की सभी परेशानियां खत्म हो जाती हैं और उनकी आयु बढ़ती है। इसमें महिलाएं अहोई माता का चित्र लगाकर पूजा-अर्चना करती हैं।
अहोई अष्टमी पूजा विधि-
. सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनकर मंदिर में माथा टेककर व्रत का संकल्प करें। . गेरू और चावल से मंदिर की दीवार पर अहोई माता और उनके सात पुत्रों की तस्वीर बनाएं या फोटो लगाएं। . अहोई माता के सामने एक पात्र में चावल, मूली, सिंघाड़ा या पानी फल रख दें और दीपक जलाएं। . एक लोटे में पानी भरकर उसके ऊपर करवा चौथ में इस्तेमाल किया गया करवा रखें और फिर दिवाली के दिन पूरे घर में इस पानी का छिड़काव करें।
. इसके बाद हाथ में गेहूं या चावल लेकर अहोई अष्टमी व्रत कथा पढ़े या सुनें। फिर अहोई माता की आरती करने के बाद उस चावल को पल्लू में बांध लें। . शाम को माता की पूजा करके भोग और लाल रंग के फूल चढ़ाएं। फिर व्रत कथा सुनने के बाद आरती करें। . आखिर में तारों या चंद्रमा को अर्घ्य देकर मां का ध्यान करें। याद रहे कि सारा पानी इस्तेमाल न करें बल्कि दिवाली के दिन यूज करें। . पूजा के बाद बड़ों का आशीर्वाद लेकर सभी को प्रसाद बांट दें और भोजन कर लें।