Karwa Chauth 2020 : सोलह श्रृंगार का है महत्व, मिलता है माता का आशीर्वाद

इस बार 4 नवंबर को है कार्तिक मास के कृष्ण की चतुर्थी तिथि और इसी दिन मनाया जाएगा करवा चौथ का पर्व जो विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना के लिए रखती हैं. चूंकि यह व्रत विशेष तौर पर सुहागिनों का पर्व है इसीलिए इस दिन सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है. यही कारण है कि इस दिन महिलाएं पूरा श्रृंगार करती है.हाथों में मेहंदी, पैरो में बिछिया, गले में मंगलसूत्र व माथे पर बिंदिया. दुल्हन की तरह सजती हैं इस दिन महिलाएं. और मांगती हैं करवा माता से अखंडे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद. दरअसल, इस दिन सोलह श्रृंगार का बहुत ही महत्व बताया गया है. लेकिन क्यो.? जानिए

करवा चौथ पर 16 श्रृंगार का महत्व सोलह श्रृंगार का अर्थ है सिर से लेकर पैर तक सुहाग की अलग-अलग निशानियां. हिंदूं धर्म में हर विवाहिता के लिए इसे ज़रुरी माना गया है. प्राचीन काल में महिलाएं इसे अखंड सौभाग्य का प्रतीक मानती थी और आज भी यही परंपरा कायम है. इससे भाग्य और प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी होती है. इसीलिए कहा जाता है कि सोलह श्रृंगार करने के बाद ही करवा चौथ की पूजा करनी चाहिए। इससे करवा माता प्रसन्न होती है. सोलह श्रृंगार में
सिंदूर बिंदी मंगल सूत्र मांग टीका काजल नथनी कर्णफूल मेंहदी चूड़ी लाल रंग के वस्त्र बिछिया पायल कमरबंद अंगूठी बाजूबंद गजरा
करवा चौथ में थाली का भी है विशेष महत्व इस पर्व में दोपहर के समय करवा माता की पूजा की जाती है. इस दौरान कुमकुम, हल्दी, सींक, सुहाग की सामान, करवा माता का चित्र व कथा पुस्तक का होना भी ज़रुरी है. दिन में विधि विधान से करना माता की पूजा कर कहानी सुननी चाहिए. बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना चाहिए. उन्हें वस्त्र इत्यादि भेंट करना चाहिए.
रात के समय करें चंद्र दर्शन वहीं दिन में करवा माता की पूजा के बाद रात के समय चंद्र देव के दर्शन अत्यंत ज़रुरी है. चंद्रमा की पूजा के बाद चांद को अर्घ्य दें, छलनी में से चांद को देखें और फिर अपने पति का चेहरा छलनी में से देखकर यह व्रत संपन्न किया जाता है.

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