कोविड-19 के जिन मरीजों को एक नोवेल एंटीबॉडी दी गई, उन्हें सामान्य तरीके से उपचार करा रहे मरीजों की तुलना में अस्पताल में भर्ती करने या आपात चिकित्सा सहायता मुहैया करने की कम जरूरत पड़ी है। एक नये अध्ययन में यह दावा किया गया है।
इस समय चल रहे दूसरे चरण के चिकित्सकीय परीक्षण के अंतरिम नतीजों को न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसीन में प्रकाशित किया गया है। इसके तहत 'एलवाई-सीओवी 555' (संक्रमण मुक्त हो चुके कोविड-19 मरीज के रक्त से प्राप्त मोनोक्लोनल एंटीबॉडी) की तीन अलग-अलग खुराक की जांच की गई।
अध्ययन के दौरान प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से संकेत मिला कि 2,800 मिलीग्राम एंटीबॉडी हल्के से मध्यम लक्षण वाले कोविड-19 के मरीज को देने से उसके शरीर में वायरस का प्रभाव कम हो जाता है और इसके साथ-साथ अस्पताल में भर्ती और आपात चिकित्सा सेवा की जरूरत पड़ने की जरूरत भी कम हो जाती है।
अमेरिका स्थित सीडर-सिनाई मेडिकल सेंटर में कार्यरत और अनुंसधान पत्र के सह-लेखक पीटर चेन ने कहा, 'मेरे लिए, सबसे अधिक महत्वपूर्ण खोज कोविड-19 के मरीज का अस्पताल में भर्ती होने की संभावना का कम होना है।'
चेन ने कहा, 'मोनोक्लोनल एंटीबॉडी में कोविड-19 के मरीजों में संक्रमण की गंभीरता को कम करने की क्षमता है, जिससे ज्यादातर लोग अपने घर पर ही इस रोग से उबर सकते हैं।'
अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कोरोना वायरस से चिपक जाता है और उसे अपनी प्रतिकृति बनाने से रोकता है। उन्होंने बताया कि 'एलवाई-सीओवी 555' नोवेल कोरोना वायरस के स्पाइक नामक प्रोटीन से जुड़ता है, जिसकी जरूरत वायरस को मानव शरीर में प्रवेश करने के लिए होती है।
अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि एंटीबॉडी वायरस की अपनी प्रतिकृति बनाने की क्षमता को कमजोर कर देता है, जिससे मरीज को इस संक्रमण के खिलाफ अपने शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए समय मिल जाता है। चेन ने कहा, 'हम वायरस को शुरुआती दौर में नुकसान पहुंचाने से रोकते हैं।'
अध्ययन के मुताबिक अनुसंधान में 300 मरीजों को शामिल किया गया। इनमें से 100 मरीजों को एंटीबॉडी दी गई, जबकि करीब 150 मरीजों को प्रायोगिक औषधि दी गई।