हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवाचौथ का व्रत किया जाता है. इस दिन शादीशुदा महिलाएं पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए व्रत रखती हैं. ये सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पित की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ के लिए ये व्रत रखा जाता है. दिनभर वो पूरी श्रद्धा से अपने पति की लंबी उम्र और जीवन में तरक्की के लिए प्रार्थना करती हैं. लेकिन क्या आपने ध्यान दिया है कि जब करवा चौथ का व्रत तोड़ा जाता है तो उस वक्त छलनी की मदद से पहले चांद को फिर पति को देखा जाता है. करवाचौथ के व्रत में महिलाएं छलनी से चांद को देखती हैं, इसके बाद पति के जल ग्रहण कर अपना व्रत पूरा करती हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर करवाचौथ व्रत में छलनी से ही चांद क्यों देखा जाता है? इस परंपरा के बारे में जानने की कोशिश करते हैं.
छलनी से ही क्यों देखा जाता है चांद दरअसल करवा चौथ की कथा में कहा गया है कि, एक बहन थी जिसके भाईयों ने स्नेहवश उसे भोजन कराने के लिए छल से चांद दिखाया. इसके लिए उन्होंने छलनी की ओठ में दीपक जलाया जो आकाश में चांद की छवि जैसा नजर आया, इससा उसका व्रत बंग हो द.ा और इस भूल को सुधारने के लिए उनकी बहन ने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और दब दोबारा करवा चौछ का समय आया तो उन्होंने पूरे विधि विधान से इसका व्रत रखा. इस तरह उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति हुआ और इस बार कन्या ने हाथ में छलनी लेकर चंद्र दर्शन किए थे.
चांद देखने का रहस्य कहते हैं कि छल से बचने के लिए छलनी का इस्तेमाल किया जाता है. दरअसल छलनी के जरिए बहुत बारीकी से चांद को देखा जाता है और तभी व्रत खोला जाता है.