शरद पूर्णिमा : आज की रात आपके जीवन के लिए है बेहद खास, कर लें ये काम, मौका न गवाएं

नयी दिल्ली। सनातन पंचांग के अनुसार अश्विन माह की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहतें हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार चन्द्रमा को औषधियों का देवता माना जाता है। इस दिन चांद अपनी 16 कलाओं से पूरा होकर अमृत की वर्षा करता है। वैज्ञानिकों ने भी इस पूर्णिमा को खास बताया है, जिसके पीछे कई सैद्धांतिक और वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं।

इस पूर्णिमा पर चावल और दूध से बनी खीर को चांदनी रात में रखकर प्रातः 4 बजे सेवन किया जाता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं।
शरद पूर्णिमा पर औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। यानी औषधियों का प्रभाव बढ़ जाता है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुर्नयौवन शक्ति प्राप्त होती थी।
चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। इस दिन खीर बनाने का वैज्ञानिक कारण यह है कि दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है।
इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। इससे पुर्नयौवन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह सनातन परंपरा पूर्ण रूप से विज्ञान पर आधारित है।

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