शिवजी ने कार्तिकेय को सुनाई थी रुद्राक्ष की उत्पत्ति की कथा, आप भी पढ़ें

शिवजी ने कार्तिकेय को सुनाई थी रुद्राक्ष की उत्पत्ति की कथा, आप भी पढ़ें

रुद्राक्ष के बारे में हम सभी कुछ न कुछ जानते हैं लेकिन ऐसी कई बातें हैं जो शायद लोगों को नहीं पता हैं। इन्हीं में से एक है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई। तो चलिए ज्योतिषाचार्य पं. दयानंद शास्त्री से इस बारे में विस्तार से जानते हैं। उन्होंने बताया कि स्कंध पुराण में भगवान शिव से कार्तिकेय जी ने रुद्राक्ष की महिमा और उत्पत्ति के बारे में प्रश्न किया। तब स्वयं शिवशंभू ने कहा, "हे षडानन कार्तिकेय! सुनो, मैं संक्षेप में बताता हूं। पूर्व काल में दैत्यों का राजा त्रिपुर था।
लेकिन त्रिपुर को हम त्रिदेवों से कई वर प्राप्त थे। यही कारण था कि युद्ध में लम्बा समय लगा। एक हजार दिव्य वर्षों तक लगातार क्रोद्धमय युद्ध करने से व योगाग्नि के तेज के कारण अत्यंत विह्वल हुए मेरे नेत्रों से व्याकुल हो आंसू गिरने लगे। योगमाया की अद्भुत इच्छा से निकले वो आंसू जब धरती पर गिरे तो उन्होंने एक वृक्ष का रूप ले लिया। मेरे आंसू वृक्ष के रूप में उत्त्पन्न हुए। ये रुद्राक्ष के नाम से विख्यात हो गए। ये षडानन रुद्राक्ष को धारण करने से महापुण्य होता है। इसमें जरा भी संदेह नहीं है कि रुद्राक्षों का दिव्य तेज आपको कैसे दुखों से मुक्ति दिला सकता है और जीवन को सुखमय बना सकता है। इससे शिव की कृपा मिलती है।
रुद्राक्ष को राशि, ग्रह और नक्षत्र के अनुसार धारण किया जाता है। अगर इस तरह इसे धारण किया जाए तो उसके फलों में कई गुणा वृद्धि हो जाती है। ग्रह दोषों तथा अन्य समस्याओं से मुक्ति हेतु रुद्राक्ष बेहद आवश्यक और उपयोगी है। जन्म कुंडली के अनुरूप अगर व्यक्ति सही और दोषमुक्त रुद्राक्ष धारण करता है तो वो अमृत के समान होता है।
रुद्राक्ष धारण एक सरल एवं सस्ता उपाय है। अगर व्यक्ति रुद्राक्ष को धारण करता है तो उसकी इच्छाओं की पूर्ति होती है। इससे कोई नुकसान भी नहीं होता है। यह किसी न किसी रूप में व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति कराता है।
कई बार ऐसा होता है कि कुंडली में शुभ-योग मौजूद होते हैं और उसके बाद भी उन योगों से संबंधित ग्रहों के रत्न धारण करना लग्नानुसार उचित नहीं होता है। ऐसे में इन योगों के अचित एवं शुभ प्रभाव में वृद्धि के लिए इन ग्रहों से संबंधित रुद्राक्ष धारण करना फलदायक होता है।
यह रुद्राक्ष व्यक्ति के इन योगों में अपनी उपस्थित दर्ज कराते हैं और उनके प्रभावों को कई गुणा बढ़ा देते हैं। गजकेसरी योग के लिए दो और पांच मुखी, लक्ष्मी योग के लिए दो और तीन मुखी रुद्राक्ष लाभकारी माना गया है। अंक ज्योतिष के अनुसार, जातक अपने मूलांक, भाग्यांक और नामांक के हिसाब से रुद्राक्ष धारण करता है। अंकों में ग्रहों का निवास माना जाता है। हर अंक किसी न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करते हैं।

अन्य समाचार