साल 2010 में मुझे एक सप्ताह के लिये एक वर्कशॉप के सिलसिले में अफ़्रीकी देश नामीबिया में जाने का मौका मिला था और वहां पर मुझे नामीबिया के हिम्बा जनजाति के लोगो से मिलने का अवसर मिला , तो कुछ जानकारी इन आदिम जनजातीय समूह के बिषय मे है।
आप सभी को यह जान कर ताज्जुब होगा कि “ .नामीबिया की हिम्बा जनजाति की औरते जिंदगी में सिर्फ एक बार नहाती हैं” .
अफ्रीका की दुनिया न केवल रोमांचक है बल्कि आज भी सबसे पुरानी जनजाति की सभ्यताओ को अपने में आत्मसात किये हुये है | अफ्रीका के अलग अलग देशो में अलग अलग जनजातिओ का समूह निवास करता है और आज भी पांच हज़ार साल पुराने अपने रीति रिवाजो को फॉलो कर रहा है उन्ही जनजातियों में से एक नामीबिया की हिम्बा जनजाति है जो की आज भी अपने पुराने रीति रिवाजो को फॉलो कर रही है| .
हिम्बा जनजाति, अफ्रीका के नॉर्थ-वेस्ट नामीबिया के कुनैन प्रांत में रहती है | नामीबिया में हिम्बा जनजाति की कुल संख्या लगभग 20 हजार से 50 हजार के आस पास हैं। हिम्बा जनजाति की महिलाओं को अफ्रीका की सबसे खूबसूरत महिलाएं कहा जाता है। इस जनजाति की महिलाएं जिंदगी में सिर्फ एक बार नहाती हैं, वो भी सिर्फ तब जब उनकी शादी होती है।
हिम्बा जनजाति की महिलाओं की त्वचा का रंग भी लाल होता है, इसके पीछे भी एक बड़ा कारण है। हिम्बा जनजाति की महिलाएं नहाने की जगह खास जड़ी-बूटियों को पानी में उबालकर उसके धुंए से अपनी बॉडी को फ्रेश रखती हैं ताकि उनसे बदबू ना आए। हिम्बा जनजाति की ये महिलाएं हाथ धोने तक के लिए पानी का इस्तेमाल नहीं करती, यहां तक कि उन्हें पानी को हाथ लगाना तक गवारा नहीं है | इस ट्राइब की महिलाएं अपनी स्किन को धूप से बचाने के लिए खास तरह के लोशन का इस्तेमाल करती हैं। यह लोशन जानवर की चर्बी और हेमाटाइट (लोहे की तरह एक खनिज तत्व) की धूल से तैयार किया जाता है। हेमाटाइट की धूल की वजह से उनके त्वचा का रंग लाल हो जाता है। ये खास लोशन उन्हें कीड़ों के काटने से भी बचाता है। इन महिलाओं को रेड मैन के नाम से भी जाना जाता है | हिम्बा महिलाएं केवल लुंगी पहनती हैं और अपने शरीर को गहरे गेरुए रंग से ढंक लेती हैं, लेकिन उनके शरीर का ऊपरी भाग खुला रहता है ।
हिम्बा खानाबदोश लोग हैं। रेगिस्तान की कठोर जलवायु में रहने के अभ्यस्त होते है, और बाहरी दुनिया से अपने आप को अलग रखते है |
हिम्बा जनजाति के लोग ज्यादातर दलिया खाते हैं. चाहे वो ब्रेकफास्ट हो, लंच हो या डिनर. तीनों वक्त ये लोग दलिया ही खाते हैं. ये दलिया मक्का या बाजरा के आटे के बना होता है. ये लोग बाजरा को महांगू कहते हैं जो नामीबिया में आसानी से उपलब्ध हो जाती है. वहीं शादी समारोह या किसी खास मौकों पर ये लोग मीट खाना पसंद करते हैं.
अफ्रीका के अन्य आदिवासी समाज की तरह हिम्बा के लोग भी गाय पर निर्भर हैं।, अगर समूह में किसी के पास गाय नहीं है, तो उसे सम्मान की नजरों से नहीं देखा जाता है। हिम्बा महिलाएं शादी के बाद भी एक से ज्यादा पुरुषों के साथ संबंध बना सकती हैं। सिर्फ महिलाएं ही नहीं, बल्कि जनजाति के पुरुषों पर भी यह नियम लागू होता है।
हिम्बा जनजाति में आर्थिक निर्णय का अधिकार केवल यहां कि महिलाओं के ही पास होता है और परिवार में किसी भी तरह के खर्च पर महिलाओं की स्थिति निर्णायक होती है। । हिम्बा जनजाति के लोगो का हेयरस्टाइल भी अजीब और अनोखा है। यहां के पुरूष सिर पर केवल एक चोटी बनाकर रखते है वो भी सींगनुमा होती है। हालांकि यहां कि शादीशुदा पुरूष अपने सिर पर पगड़ी पहनते हैं। इससे भी ज्यादा हैरानी वाली बात यह है कि यहा जिन पुरूषो की शादी हो जाती है वे शादी के बाद अपने सिर से कभी भी पगड़ी नही उतारते है।
हिम्बा जनजाति के लोगों के देवता मुकुरू हैं. वो अपने ईष्ट देवता से बात करने के लिए पवित्र अग्रि का प्रयोग करते हैं. इन लोगों का मानना है कि जब आग जलती है तो उसकी आवाज स्वर्ग तक उनके ईष्ट देवता मुकुरू के पास जाती है. इस दौरान ये लोग खड़े होकर अपने देवता से प्रार्थना करते हैं. जब आग बुझ जाती है तो इनकी प्रार्थना समाप्त हो जाती है. हिम्बा ने अपनी पारंपरिक मान्यताओं को बरकरार रखा हैं, जिसमें पवित्र अग्नि से जुड़े अनुष्ठान भी शामिल हैं । हिम्बा धर्म स्वयं एकेश्वरवादी है, जिसमें सर्वोच्च देवता मुकरू हैं। साथ ही पैतृक आत्माओं द्वारा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है। प्रत्येक हिम्बा परिवार पवित्र पुश्तैनी आग के साथ झोपड़ी में एक वेदी बनाता है, जहां प्रत्येक 7-8 दिनों में पूर्वजों और मुकुरू की पूजा की जाती है। हिम्बा के विश्वास का एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व ओमती या काली जादू टोना का अस्तित्व है, जो कि हिम्बा के अनुसार, बुरे लोगों से संपन्न हैं जो दूसरों को नुकसान पहुंचाने में सक्षम हैं या अंधेरे विचारों को भी प्रेरित करते हैं।
हिम्बा मवेशी पालते है, जिनमे गायो के साथ साथ बकरी और भेड़ भी होते हैं। गायों कi दूध निकालने की जिम्मेदारी महिलाओ पर होती है | साथ ही, महिलाएं बच्चों की देखभाल करती हैं (एक महिला दूसरे के बच्चों की देखभाल कर सकती है)। इसके अलावा, महिलाएं अक्सर पुरुषों की तुलना में कड़ी मेहनत करती हैं: वे गांव में, नदियों से , तालाब से पानी ले आती हैं।
हिम्बा जनजाति युवा पेड़ों और ताड़ के पत्तों से शंकु के आकार की झोपड़ियों का निर्माण करती है,
हिम्बा जनजाति एक बुजुर्ग की अध्यक्षता वाले कबीले में रहती है | शादी के बाद, पत्नी अपने पति के पास जाती है और नए कबीले के नियमों को स्वीकार करती है। महिलाएं बहुत जल्दी सुबह सबेरे उठ जाती हैं, भोर में, गायों को दूध निकालती हैं, जिसे के बाद गायो को पुरुष चराने ले जाते है जैसे ही भूमि घास रहित होती है हो जाती है, हिम्बा जनजाति के पुरुष अपनी पत्नी और बच्चों को गांव में छोड़कर, गाय के झुंडों के साथ घास के दूसरे मैदानों की तरफ चले जाते है जिससे गायो को चारे की कमी ना होने पाये ।
हिम्बा जनजाति में हर जन्म से जुड़ा होता है एक गीत। हिम्बाओं के जन्म के पहले से ही उनका जीवन गीत तय हो जाता है। यही गीत उनके जीवन का आधार है। हर हिम्बा की खास पहचान। जैसे हमारी पहचान हमारा वोटर कार्ड या की हमारा पासपोर्ट होता है वैसे ही हिम्बावो की पहचान उनका संगीतमय जीवन गीत होता है |
जब स्त्री को को बच्चा पैदा करने का का विचार आता है तब वह एकांत में किसी पेड़ के नीचे जाकर बैठ जाती है और वहाँ बैठ कर सृष्टि से एक गीत की अपेक्षा करती है। अपने कल्पित संतान के जीवन का राग चाहिए उसे इस गीत में, इसके लिए वह तप करती है। उसका यह तप तब तक चलता है जब तक उसके कानों में उस नए जीवन का गीत गूंजने न लगे जिसे वह अपने कोख में धारण करना चाहती है। नए जीवन का विचार एक गीत का रूप ले लेता है तब वह आबादी में लौट आती है।
लौटकर वह उस पुरुष के पास जाती है जिसे उसने शिशु का पिता होना चुना है। वह उस पुरुष को वही गीत सिखाती है जो वह सुनकर आई है। जब पुरुष गीत सीख जाता है, तब जोड़ा संसर्ग करता है। संसर्ग के समय दोनों वही गीत गाते हैं। यह नए जीवन का पहला स्वागत गान है।
स्त्री जब गर्भवती हो जाती है तब वह निधारित गीत समुदाय में अपने आसपास की बड़ी और बुज़ुर्ग महिलाओं को सिखाती है। ये महिलाएँ इस गीत को प्रसव के समय बच्चे के स्वागत में गाती हैं। यह गीत ही वह पहचान है जिससे महीनों पहले विचार में जन्मा जीवन अपने नये शरीर की पहचान कर सके। बच्चे का जन्म होता है, यह गीत उस बच्चे से जुड़ जाता है।
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, अन्य ग्रामीणों को बच्चे का गीत सिखाया जाता है। समुदाय में यह गीत ही अब उस बच्चे की पहचान है। खेलते-कूदते यदि बच्चा कभी गिर जाता है या कभी उसे चोट लगती है तो उठाने वाला चोटिल बच्चे को उसका गीत गाकर सुनाता है। हर अच्छे-बुरे मौक़े पर यह गीत बच्चे के साथ होता है। इस गीत के साथ ही वह बड़ा होता है। जब कभी वह कुछ अच्छा करता है तब उसके सम्मान में सभी उसके लिए उसका गीत गाते है। उसकी शादी होती है तो उत्सव का सबसे बड़ा आकर्षण उसका गीत ही होता है।
जीवन के अंतिम समय में जब कोई हिम्बा अपने मृत्युशैया पर होता है तब भी सब उसके लिए उसका गीत गाते है। वह अपने गीत के साथ ही विदा लेता है। गीत और जीवन, दोनों का चक्र पूरा होता है।
अतः नामीबिया में हिम्बा जनजाति की जो 20 हजार से 50 हजार के आस पास की आबादी है उनमे से प्रत्येक हिम्बा की यूनिक जीवन गीत ही उनकी अलग अलग पहचान है | जो की उनके माँ बाप द्वारा उनके जन्म के लिये बनाया गया होता है और वही उनकी पहचान होती है जो की उनके जन्म से लेकर उनके मृत्यु तक उनके साथ जुडी होती है |
इस जनजाति में जीवन का अस्तित्व जन्म के दिन से नहीं माना जाता। उस दिन को भी नहीं माना जाता जब कोई स्त्री माता रूप में किसी पुरुष का अंश धारण करती है। ये जीवन का अस्तित्व तब से गिनते हैं जब एक स्त्री के मन में यह विचार आता है कि उसे माँ बनना है।
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