कोविड काल में डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल बढ़ने के कारण देश में कमजोर आँखों के मामले बढ़ गए

नई दिल्ली: भारत में कमजोर आंखों के बढ़ते मामलों के बोझ को कम करने के महत्व पर जोर डालते हुए, ऑल इंडिया ऑप्थेल्मोलॉजी सोसाइटी (एआईओएस)- All India Ophthalmology Society (AIOS) ने एक इंटरेक्टिव वेबिनार का आयोजन किया। इस सत्र का उद्देश्य आँखों के मरीजों में कमी लाने और समस्या की रोकथाम के तरीकों के बारे में चर्चा करना था।

एनपीसीबी ने बेहतर आँखों के लिए वर्तमान के 0.3 प्रतिशत के टार्गेट को 2025 तक 0.25 प्रतिशत तक बढ़ाने का दावा किया है। हालांकि, विभिन्न स्टेकहोल्डर्स के प्रयासों के साथ ही इसे लागू किया जा सकता है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, विजन 2020, साइटसेवर्स, ओआरबीआईएस इंटरनेशनल समेत नेत्र स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े हुए विभिन्न संगठन इसमें मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
देश के विभिन्न ऑप्थेल्मोलॉजिस्ट ने अंधेपन और कमजोर आँखों के क्षेत्र से संबंधित अपने-अपने काम प्रस्तुत किए।
एआईओएस ने के अवसर पर एक ऑप्थेल्मिक फोटोग्राफी प्रतियोगिता का भी आयोजन किया था, जिसके परिणाम जल्द ही घोषित किए जाएंगे।
विश्व स्तर पर, आँखों की किसी न किसी समस्या से ग्रस्त लगभग 2.2 मिलियन की आबादी को इसमें संबोधित किया गया। जबकि कमजोर आँखों वाली लगभग 1 मिलियन आबादी, जिनमें समस्या की रोकथाम की जा सकती थी, का कोई जिक्र ही नहीं है। हालांकि, काला मोतिया के 65.2 मिलियन मरीजों और मोतियाबिंद के 7 मिलियन मरीजों के बाद संबोधित न की जाने वाली आबादी की संख्या लगभग 123.7 मिलियन थी। दरअसल, बढ़ती उम्र और संबंधित बीमारियाँ भी डायबेटिक रेटिनोपैथी और एआरएमडी के मामलों में वृद्धि का कारण बनी हुई हैं।
सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के चेयरमैन और एआईओएस अध्यक्ष, डॉ. महिपाल सिंह सचदेव ने बताया कि,
'इतनी बड़ी संख्या को देखते हुए, आँखों की देखभाल को अधिक महत्व देते हुए हेल्थकेयर सिस्टम में जन केंद्रित नेत्र देखभाल दृष्टिकोण की आवश्यकता है। हालांकि, आँखों की अन्य समस्याओं की संख्या में गिरावट आई है, लेकिन 66.2 प्रतिशत मामलों के साथ काला मोतिया बुजुर्ग आबादी में अभी भी अंधेपन का एक मुख्य कारण बना हुआ है, जो कुल मामलों में से 71 प्रतिशत मामलों में कमजोर आँखों का कारण बना हुआ है। देश को काला मोतिया से मुक्त कराने के लिए 2025 तक एक बेहतर रणनीति की सख्त आवश्यकता है।'
कोविड काल में डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल बढ़ने के कारण देश में कमजोर आँखों के मामले बढ़ गए हैं। बदलती जीवनशैली और हर उम्र के लोगों द्वारा डिजिटल स्क्रीन के अधिक इस्तेमाल के साथ, कमजोर आँखों के मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। जबकि इन समस्याओं की रोकथाम संभव है।
विश्व स्तर पर, मोतियाबिंद को अंधेपन का नंबर-1 कारण माना जाता है, जिसकी रोकथाम संभव होने के साथ इलाज भी संभव है। कोविड- 19 की महामारी, सभी बीमारियों के इलाज में बाधा बनी हुई है, जिसमें नेत्र देखभाल भी शामिल है। काला मोतिया और मोतियाबिंद से ग्रस्त मरीज कोरोना संक्रमण के डर से सर्जरी कराने से बच रहे हैं, जिसके कारण मरीजों की संख्या 90 प्रतिशत पार कर चुकी है।
ऑप्थ आरपी सेंटर की प्रोफेसर और एआईओएस की महासचिव डॉ. नम्रता शर्मा ने बताया कि,
'हालांकि, कमजोर आँखों और रोकथाम योग्य अंधेपन की रोकथाम के आगे विभिन्न चुनौतियाँ आ रही हैं, लेकिन देश में इसके बोझ को कम करने के लिए एक बेहतर दृष्टिकोण की आवश्यकता है। समय पर कदम न उठाने और अन्य स्रोतों की उपलब्धता न होने के कारण 2025 तक ये आंकड़े दोगुने हो सकते हैं। एडवांस टेक्नोलॉजी जैसे कि लेजर टेक्नोलॉजी मिनिमली इनवेसिव और ऑटोमेटेट होती है, जो काला मोतिया के इलाज में बेहतर परिणामों के साथ तेज रिकवरी भी प्रदान करती है।'

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