बॉलीवुड की सबसे अधिक सराही गई फिल्मों में से एक ‘लंच बॉक्स’ ने मुंबई के डब्बावालों की लोगों के जेहन में अमिट पहचान बनाई. मुंबई के लिए डब्बावाले वैसे ही हैं जैसे कि मुंबई की लाइफलाइन मानी जाने वाली लोकल ट्रेन्स. मौसम कैसा भी हो 5,000 डब्बावालों की मजबूत फोर्स सुनिश्चित करती है कि मुंबई समय पर खाना खाए.
कोरोना महामारी की वजह से लागू किए गए लॉकडाउन से पहले ये डब्बावाले मुंबई और आसपास के जिलों में दफ्तर जाने वाले लगभग 2 लाख लोगों को लंच बॉक्स (डब्बा) पहुंचाते थे. इनका काम किसी व्यक्ति के घर से डब्बे को लेकर उस व्यक्ति के दफ्तर तक पहुंचाना होता है. डब्बा कई हाथों से होकर गुजरेगा, लेकिन लंच पर सही व्यक्ति तक पहुंच जाएगा. हमेशा बिना किसी देरी और बिना किसी चूक के.
ये डब्बा वाले सफेद कुर्ते की अपनी पोशाक और पारंपरिक गांधी टोपी से पहचाने जाते हैं. साइकिल पर चलने वाले ये डब्बा वाले लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही काम से बाहर हैं.
डब्बावालों का फोटो कोलाज जिन्होंने लॉकडाउन में चौकीदारी और मजदूरी जैसे अस्थायी काम किए.
विष्णु कालडोके, मुंबई में डब्बावाला के तौर पर जीवन के 20 साल गुजार चुके हैं. उन्होंने आजतक/इंडिया टुडे को बताया कि कैसे मुंबई जेवन डब्बा वाहतूक मंडल और नूतन मुंबई टिफिन बॉक्स सप्लायर्स चैरिटी ट्रस्ट के सहयोगी और वो खुद सरकार के समक्ष नुमाइंदगी करने के लिए इधर-उधर भाग रहे हैं. इसलिए कि डब्बावाले फिर से काम शुरू कर सकें.
मुंबई के ग्रांट रोड स्थित डब्बावालों के जोनल दफ्तर के बाहर साइकिल की सफाई करते हुए विष्णु कालडोके (फोटो: विद्या/इंडिया टुडे)
विष्णु संगठनों के प्रवक्ता भी हैं. पिछले हफ्ते, महाराष्ट्र सरकार की ओर से ऐलान किया गया था कि डब्बावालों को अंततः ट्रेनों में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी. डब्बावाले इसे लेकर बेहद उत्साहित थे लेकिन विष्णु जैसे लोग अब भी संशय में हैं.
फिर से लोकल ट्रेनों का इस्तेमाल
डब्बावालों ने एक नया शब्द सीखा है– QR कोड. ट्रेन में प्रवेश करने से पहले उन्हें एक QR कोड की आवश्यकता होगी. उन्होंने अब तक जो पाया है, वह यह है कि QR कोड के लिए लंबा इंतजार करना होगा जिससे उन्हें रेलवे स्टेशन तक पहुंच मिल सकेगी.
विष्णु ने कहा, "जैसा कि मुझे बताया गया है कि QR कोड के लिए नगरपालिका कार्यालय के समक्ष 1,78,000 प्रतीक्षारत आवेदन हैं. हम रेलवे पुलिस कार्यालय और मंडल रेल आयुक्त के कार्यालय जा चुके हैं और वे सभी कहते हैं कि महाराष्ट्र सरकार को रेलवे के को GR जारी करना है, जिससे हमें ट्रेनों में एंट्री की इजाजत दी जा सके.”
अधिकतर डब्बावालों का कहना है कि उनसे ग्राहक लगातार पूछताछ कर रहे हैं, लेकिन उन्हें यह पता लगाना है कि कितने ग्राहक किस क्षेत्र से संबंधित हैं? जिससे वो तय कर सकें कि कितने डब्बावाले काम पर लौट सकते हैं. डब्बावाले इन सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कोर कमेटी की बैठक कर रहे हैं.
लाखों लोगों को खाना खिलाने वाले खुद संकट में
डब्बावाला एक महीने में लगभग 15,000 रुपये कमा लेता था, सिस्टम से नए जुड़ने वाले को भी उतना ही मिलता है जितना वर्षों के अनुभव वाले डब्बा वाले को. लेकिन मार्च के बाद से बेरोजगार हुए ज्यादातर डब्बावाले अपने गृहनगरों को लौट गए. जब ये साफ हो गया था कि 21 दिन के लिए लगाया गया लॉकडाउन आगे भी लंबा चलेगा तो उनके पास इसके अलावा कोई चारा भी नहीं था. कुछ ने मजदूर या चौकीदार के तौर पर काम किया जिससे कि कम से कम परिवारों को दो वक्त की रोटी तो खिलाई जा सके. 5,000 डब्बावालों में से बहुत थोड़ों को ही अब काम पर लाया जाएगा. धीरे-धीरे, जैसे कि शहर सामान्य पटरी पर लौटता आएगा, इनकी संख्या भी बढ़ाई जाती रहेगी.
जंग खा रही हैं साइकिलें, रखरखाव की जरूरत
कई डब्बावालों शहर के संकरे इलाकों में लंच बॉक्स लेने और देने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते रहे हैं. इनमें से अधिकतर ऐसी साइकिलें या तो डब्बावालों के मंडल के दफ्तरों के बाहर खड़ी हैं या रेलवे स्टेशनों पर, चक्र या तो इन डब्बावालों के कार्यालयों में रखे जाते हैं या रेलवे स्टेशनों धूल फांक रही हैं. ग्रांट रोड रेलवे स्टेशन के ठीक बाहर डब्बावालों के जोनल कार्यालय में लगभग 50 के आसपास साइकिलें जंग खा चुकी हैं और जिन्हें तुरंत मरम्मत की आवश्यकता है.
विष्णु कहते हैं, "हमारी अधिकतर साइकिलों में जंग लग गई है. इन्हें या तो मरम्मत की जरूरत है या हमें नई साइकिलें खरीदनी पड़ेंगी. लेकिन मौजूदा स्थिति में हमारी कोई आमदनी नहीं है, इसलिए नई साइकिल खरीदना हमारे लिए मुश्किल होगा." अगस्त में, मुंबई डब्बावाला एसोसिएशन (एमडीए) ने लोगों से साइकिल दान करने की अपील की, क्योंकि उनके खुद के लिए जंग खाई साइकिलों की मरम्मत के लिए भुगतान नामुमकिन हो गया था.
ग्राहकों की सुरक्षा सबसे ऊपर
डब्बावालों ने लॉकडाउन की घोषणा से काफी पहले ही अपना कम बंद कर दिया था. क्योंकि वो ये कतई नहीं चाहते थे कि कोई वायरस के फैलने के लिए उन पर उंगली उठाए. मुंबई डब्बावाला संगठन के अध्यक्ष उल्हास शांताराम मुके के मुताबिक उन्होंने रेलवे प्रशासन और बीएमसी के साथ बैठकें की हैं. इस दौरान चर्चा की गई कि कैसे डब्बा सिस्टम को दोबारा शुरू किया जा सकता है.
मुके ने दोहराया कि ग्लव्स, सैनेटाइजर्स और मास्क का इस्तेमाल कितना अहम है. उन्होंने कहा, "चूंकि हमें लंच बॉक्स लेने के लिए हाउसिंग सोसाइटियों का दौरा करना है और फिर उन्हें दफ्तरों तक पहुंचाना है, इसलिए फिजिकल डिस्टेंसिंग के मानदंडों का पूरी तरह पालन किया जाएगा."