हर साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाई जाती हैं देश की आजादी में महात्मा गांधी के अभूतपूर्व योगदान को कोई नहीं भूल सकता हैं वे सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले महात्मा थे। देश दुनिया में आज भी उनके विचार जीवित हैं हिंदू धर्म से उनका संबंध था। मगर सभी धर्मों का वे सम्मान करते थे। वे राम नाम का जाप करते थे। गांधी जी धर्म परिवर्तन के विरोध में थे। उन्होंने धर्म परिवर्तन के सभी तर्कों और प्रयासों को अस्वीकृत किया। तो आज हम आपको बताने जा रहे है धर्म को लेकर उनके विचार क्या थे, तो आइए जानते हैं।
महात्मा गांधी जी के मुताबिक परमात्मा का कोई धर्म नहीं होता हैं जो लोग दूसरों के दुख दर्द को समझते हैं असली धार्मिक वही हैं महात्मा गांधी सर्वधर्म समभाव पर विश्वास करते थे। धर्म के लिए लोग अपनी पूरी उम्र जीते हैं उनका धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित था। गांधी जी के लिए सत्य ही उनका भगवान था। उनके अनुसार अहिंसा भगवान को पाने का सबसे बेहतर साधन हैं। धर्म जीवन की तुलना में अधिक हैं
अपना धर्म ही परम सत्य हैं जो लोग कहते है कि धर्म का राजनीति से कोई लेना देना नहीं हैं वह यह नहीं जानते है की धर्म है क्या। वही सभी सिद्धांतों को सभी धर्मों के इस तार्किक युग में तर्क की अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा और सार्वभौमिक स्वीकृति प्राप्त करनी होगी। किसी मनुष्य का धर्म उसके और उसके बनाने वाले के बीच का मामला है और किसी का नहीं। वो धर्म नहीं है जो व्यावहारिक मामलों पर ध्यान नहीं देता और उन्हें हल करने में कोई मदद नहीं करता हैं।