कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार

कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार

लगता है संसद नहीं मछली का बाजार
दिन दिन बढ़ता जा रहा गुंडों का अधिकार
नासमझो के सामने समझदार की हार
जहां नियम संयम बिना चलता कारोबार
मारपीट धरपकड़ से होता गलत प्रचार
बल के आगे बुद्धि जब हो जाती लाचार
चल पाएगी किस तरह वहां कोई सरकार
समझ ना आता कुछ क्यों बदल गया संसार
जहां नेह सद्भाव गुण जो जीवन आधार
खोते जाते मान नित जैसे हो बेकार
तानाशाही जीतती लोकतंत्र की हार
ऐसे में संभव कहां जनता का उद्धार
हरएक सदन में आए दिन मची हुई तकरार
दुख वर्धक होता सदा ही हिंसक व्यवहार
नीति पूर्ण संवाद ही है वास्तविक उपचार
-प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध

अन्य समाचार