जहां बात दिन में मिल रही सूरज की रोशनी इतनी पर्याप्त है कि अंाखों पर किसी भी तरह का असर नहीं पड़ता। कहने का मतलब साफ है कि हमारे शरीर का एक बायोलाजिकल क्लाक सूरज और चांद की रोशनी से नियंत्रित होता रहा है जो कि इन दिनों कृत्रिम रोशनी के कारण गड़बड़ा रहा है। अपने स्वास्थ्य को नियंत्रित रखने के लिए बायोलाजिकल क्लाक का सही होना और अंधेरे में सोना आवश्यक है।
मूड में बदलाव: कम रोशनी या नीली रोशनी में पढ़ने या सोने से मूड में कई किस्म के बदलाव होते हैं। संभवतः यह सकारात्मक नहीं है। जैसा कि पहले ही कहा गया है कि कम रोशनी तनाव और अवसाद का जरिया बनते हैं। इसी प्रकार कम रोशनी जलाए रखने से, उसमें पढ़ने से मूड में नकारात्मक परिवर्तन आते हैं। झेंप होती है, चिड़चिड़ापन भर जाता है। इतना ही नहीं दूसरों की छोटी छोटी बातें भी परेशान करती हैं। साथ ही हमारा स्वभाव झगड़ालू जैसा हो जाता है।
तनाव बढ़ता है : अगर आप रात के समय कंप्यूटर में काम करते हैं या फिर कम बिजली में पढ़ते हैं तो इससे तनाव का स्तर बढ़ जाता है। असल में रात के समय प्राकृतिक रूप से अंधेरा हो रहा होता है जबकि हम कृत्रिम रोशनी में पढ़ने की कोशिश करते हैं।
बायोलाजिकल क्लाक इशारा करता है कि यह हमारे सोने का समय है जबकि कृत्रिम रोशनी हमें सोने नहीं देती। ऐसे में काम का बोझ और प्राकृतिक समय आपस में टकरा रहे होते हैं। परिणामस्वरूप हमंे तनाव का एहसास होने लगता है। निरंतर इस तरह की जीवनशैली से हमें अवसाद भी हो सकता है।
कैंसर: ठीक ठीक वजह के बारे में तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह सुनिश्चित है कि यदि हम रात को सोते समय रोशनी जलाकर रखते हैं तो इसका रिश्ता कैंसर जैसी घातक बीमारी से है। इस सम्बंध में 10 साल तक हुए एक अध्ययन से इस बात की पुष्टि हुई है कि सोने के माहौल में यदि रोशनी हो तो ब्रेस्ट कैंसर होने की आशंका में 22 फीसदी की बढ़ोत्तरी होती है। जबकि अंधेरे में सोने वाली महिला को इस तरह का कोई रिस्क नहीं होता।