माइक्रोवेव ओवन खाद्य पदार्थों के भीतर के रासायनिक और आणविक बंधन को तोड़ डालती है और उनकी मौलिक जीवनीय और जैव रासायनिक संरचना को बिगाड़ देती है।
ऐसे खाद्य पदार्थ शरीर की सामान्य स्थूल और सूक्ष्म गतिविधियों को प्रभावित करते हैं। आकस्मिक रूप से अत्यधिक ऊर्जा के संपर्क में आने से खाद्य पदार्थों में होने वाले आणविक आंदोलन से जो विघटन और विनाशकारी प्रभाव होते हैं,
* शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि माइक्रोवेव में पकाए या गर्म किए गए भोजन पदार्थ के स्वास्थ्यवर्द्धक गुण अत्यधिक कम हो जाते हैं। माइक्रोवेव ओवन में खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता 60 से 90 प्रतिशत तक कम हो जाती है और भोजन का संरचनात्मक विघटन तेज हो जाता है।
* व्यक्ति की बैक्टीरिया और विषाणुओं जनित रोगों से लड़ने की शक्ति क्षीण हो जाती है।
* मोतियाबिंद हो जाता है। चूंकि नेत्रों के कार्निया में रक्त वाहिनियां नहीं होती है अत: तापमान नियंत्रित करने की क्षमता नहीं होती, इसलिए कार्निया की कोशिकाएं तापमान तथा अन्य तनावों को वहन नहीं कर पाता है। सन् 1950 में हिर्श और पारकर ने माइक्रोवेव ओवन से होने वाला पहला मोतियाबिंद प्रकरण खोजा था। उसके पश्चात् अन्य उपकरणों से निकले इसी तरह के विकिरण से होने वाले मोतियाबिंद के प्रकरण अन्यों ने भी देखें।
* जन्मजात शारीरिक विकलांगता तथा अन्य गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
* माइक्रोवेव की किरणें दूध और दालों में कैंसरकारक एजेंट्स की रचना करती है।
* माइक्रोवेव किए गए खाद्य पदार्थों के उपयोग से व्यक्ति के रक्त में कैंसरस कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती हैं।
* माइक्रोवेव की किरणें खाद्य पदार्थों में ऐसे परिवर्तन कर देती हैं, जिसके कारण पाचन संबंधी विकार हो जाते हैं।
* माइक्रोवेव किए गए खाद्य पदार्थ में हुए रासायनिक परिवर्तनों के कारण मानव शरीर के लिंफेटिक सिस्टम का कार्य कमजोर पड़ जाता है। परिणामस्वरूप कैंसर की वृद्धि को रोकने में सक्षम शरीर की क्षमता प्रभावित होती है।
* माइक्रोवेव ओवन में अत्यंत कम समय में ही कच्चे, पकाए हुए अथवा फ्रीज की हुई सब्जियों के मौलिक तत्व टूट जाते हैं और फ्री रेडिकल बन जाते हैं। परिणामत: कोशिकाओं की बाहरी दीवार कमजोर हो जाती है। त्वचा में झुर्रियां और शरीर में बुढ़ापा जल्दी आता है। यहां तक कि त्वचा का कैंसर भी संभव है। माइक्रोवेव किए गए खाद्य पदार्थों के उपयोग से व्यक्ति में पेट और आंतों में कैंसरस तत्वों की वृद्धि हो सकती है। अमेरिका में कोलन कैंसर की तीव्र गति से बढ़ी हुई दर के लिए वैज्ञानिक माइक्रोवेव ओवन को दोषी मानते हैं।
* माइक्रोवेव किए गए खाद्य पदार्थों के उपयोग से विटामिन बी, सी, इ एवं आवश्यक खनिज और लाइपोट्रॉपिक्स को उपयोग करने की शरीर की क्षमता कम हो जाती है।
* माइक्रोवेव ओवन में गर्म किए गए मांसाहारी व्यंजन में डी-नाइट्रोसोडीइथेनोलामाइन नामक कैंसरकारी र सायन उत्पन्न होता है।
* यदि माइक्रोवेव ओवन में पकाए भोजन को रोज खाया जाए तो वह मस्तिष्क के उत्तकों में दीर्घावधि और स्थायी नुकसान करता है।
* माइक्रोवेव ओवन में पकाए गए भोजन के अनजाने उत्पादों की चयापचय क्रिया करना मानव शरीर के लिए संभव नहीं होता और वे विजातीय पदार्थ शरीर में एकत्रित होते रहते हैं।
* यदि माइक्रोवेव ओवन में पकाए भोजन को रोज खाया जाए तो स्त्री और पुरुष के हारमोंस निर्माण पर असर पड़ता है।
* माइक्रोवेव ओवन में पकाई गई सब्जियों में विद्यमान खनिज कैंसरकारी फ्री रेडिकल्स में परिवर्तित हो जाते हैं।
* यदि माइक्रोवेव ओवन में पकाए गए भोजन को रोज खाया जाए तो व्यक्ति की स्मरणशक्ति, बौद्धिक क्षमता और एकाग्रता कमजोर हो जाती है तथा भावनात्मक अस्थिरता बढ़ जाती है।
* कई देशों में माता के दूध को फ्रीज में सुरक्षित रखा जाता है और जरूरत पड़ने पर पिलाने से पूर्व उसे गर्म किया जाता है। पिडियाट्रिक शोध में ज्ञात हुआ कि दूध को माइक्रोवेव ओवन में गर्म करने पर लाइसोजाइम नामक अत्यंत महत्वपूर्ण रोगाणुनाशक एंजाइम की सक्रियता कम हो जाती है। एंटीबॉडीज कम हो जाती है तथा घातक बैक्टेरिया बढ़ जाते हैं। दूध को 72 डिग्री तक गर्म करने पर 96 प्रतिशत इम्यूनोग्लूबिन ए एंटीबॉडीज नष्ट हो जाती है जो शरीर में प्रवेश करने वाले सूक्ष्म जीवाणु से लड़ते हैं।
* लेसेंट के एक अन्य शोध के अनुसार शिशु के भोजन को 10 मिनट तक माइक्रोवेव करने पर उसमें मौजूद एमिनो एसिड की संरचना बदल जाती है।