पुष्य नक्षत्र भी रवि और सोम पुष्य होंगे। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ-हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि अधिक मास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु जी हैं, इसीलिए इस पूरे समय में भगवान विष्णु जी के मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है।
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि अधिकमास को कुछ जगहों पर मलमास के नाम से भी जानते हैं। इसके अलावा इस महीने को पुरुषोत्तम के नाम से भी जानते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मालिनमास होने के कारण कोई भी देवता इस माह में पूजा नहीं करवाना चाहता था।
इस माह का देवता कोई भी नहीं बनना चाहता था। तब मलमास ने स्वयं भगवान विष्णु से निवेदन किया था। तब भगवान विष्णु ने मलमास को अपना नाम पुरुषोत्तम दिया था। तभी से इस माह को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जानते हैं।
जब धरती के घूमने के कारण दो वर्षों के बीच करीब 11 दिनों का फासला हो जाता है तो तीन साल में करीब एक महीन के बराबर का अंत आ जाता है। इसी अंतर के कारण हर तीन साल में एक चंद्र मास आता है।
हर तीन साल में बढ़ने वाले इस माह को ही अधिकमास या मलमास कहा जाता है। भारतीय हिंदू कैलेंडर मे सूर्य और चंद्र की गणनाओं के आधार पर चलता है। अधिकमास दरअसल चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घंटे के अंतर से आता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार हर सूर्य वर्ष 365 दिन और 6 घंटे का माना जाता है।
हिंदू धर्म में जहां मलमास का विशेष महत्व है, वहीं ज्योतिष शास्त्र के लिहाज से भी इसे काफी विशेष माना जाता है। इस वर्ष जो मलमास आने वाला है, उसे काफी शुभ माना जा रहा है। ज्योतिष विद्वानों का मानना है कि ऐसा शुभ संयोग मलमाल में 160 वर्ष बाद बन रहा है और इसके बाद ऐसा शुभ मलमास 2039 में आएगा।17 सितंबर को श्राद्ध खत्म होने के बाद 18 सितंबर से अधिकमास शुरू होंगे।
अधिकमास 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 17 अक्टूबर से नवरात्रि मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल आश्विन मास में अधिकमास है। जिसका अर्थ है कि इस साल दो आश्विन मास होंगे। आश्विन मास में नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहारों को मनाया जाता है। इस साल अधिकमास में कई शुभ संयोग बन रहे हैं। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, अधिकमास में 15 दिन शुभ संयोग बन रहे हैं।
वहीं चंद्र वर्ष 365 दिनों का माना जाता है। यानी दोनों में करीब 11 दिनों का अंतर होता है, जो तीन वर्ष में एक माह के लगभग हो जाता है। इसी कारण इसे अधिकमास कहा जाता है।