पौराणिक कथाओं के अनुसार आप भी जानिए आखिर कौन है भगवान विश्वकर्मा, और हिंदू मान्यताओं के अनुसार इनका क्या है महत्व.

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में देवताओं के महल और अस्त्र-शस्त्र विश्वकर्मा भगवान ने ही बनाया था. इन्हें निर्माण का देवता कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान कृष्ण की द्वारिका नगरी, शिव जी का त्रिशूल, पांडवों की इंद्रप्रस्थ नगरी, पुष्पक विमान, इंद्र का व्रज, सोने की लंका को भी विश्वकर्मा भगवान ने बनाया था. अत: इसी श्रद्धा भाव से किसी कार्य के निर्माण और सृजन से जुड़े हुए लोग विश्वकर्मा भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं.

इस दिन पूजा करने से व्यापारियों को विशेष फल की प्राप्ति होती है. लेकिन इस वर्ष यह विश्वकर्मा पूजा 16 सितंबर को पड़ रही है. ऐसे में एक सवाल तो यह भी बनता है कि आखिर हर वर्ष विश्वकर्मा पूजा एक ही दिन यानी 17 सितंबर को ही क्यों मनाई जाती है. इसके पीछे कारण क्या है. इस जयंती को लेकर कई मान्यताएं प्रसिद्ध हैं.
मान्यता है कि अश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था. मान्यता है कि 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था. विश्वकर्मा भगवान को दुनिया का पहला वास्तुकार या इंजीनियर भी कहा जाता है. यही कारण है कि फैक्ट्रियों और कंपनियों में विश्वकर्मा पूजा की जाती है.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में देवताओं के महल और अस्त्र-शस्त्र विश्वकर्मा भगवान ने ही बनाया था. लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म कैसे हुआ था. इस लेख में हम आपको यही बता रहे हैं कि विश्वकर्मा जी का जन्म कैसे हुआ था.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब सृष्टि की शुरुआत थी तब भगवान विष्णु प्रकट हुए थे. वो क्षीर सागर में शेषशय्या पर थे. उस समय विष्णु जी की नाभि से कमल निकला था. इसी कमल से ब्रह्मा जी जिनके चार मुख थे, प्रकट हुए थे. ब्रह्मा जी के पुत्र का नाम वास्तुदेव था. वास्तुदेव, धर्म की वस्तु नामक स्त्री से जन्मे सातवें पुत्र थे.
इनका पत्नी का नाम अंगिरसी था. इन्हीं से वास्तुदेव का पुत्र हुआ जिनका नाम ऋषि विश्वकर्मा था. मान्यता है कि अपने पिता वास्तुदेव की तरह ही ऋषि विश्वकर्मा भी वास्तुकला के आचार्य बनें. भगवान विश्वकर्मा अपने पिता की तरह ही वास्तुकला के महान विद्वान बने.

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