आज 34 साल की हो रहीं राधिका आप्टे की पहली फिल्म देखना कैसा अनुभव है?

राधिका आप्टे पहली बार सिल्वर स्क्रीन पर साल 2005 में शाहिद कपूर और अमृता राव की मुख्य भूमिकाओं वाली फिल्म 'वाह! लाइफ हो तो ऐसी' में नजर आई थीं. इससे पहले करीब दो साल तक थिएटर कर चुकीं राधिका उस समय कॉलेज में पढ़ाई कर रही थीं और तब उन्होंने यह फिल्म यूं ही मजे के लिए कर ली थी. 'वाह! लाइफ हो तो ऐसी' में उनका रोल इतना छोटा था कि उनकी अभिनय की झलक मिलना तो दूर, वे फिल्म में हैं या नहीं, इस बात का पता भी तब चलता है जब आप केवल उन्हें ही खोज रहे होते हैं. इसलिए इस स्तंभ में 'वाह! लाइफ... ' के बजाय साल 2010 में आई उनकी दूसरी हिंदी फिल्म 'द वेटिंग रूम' की बात करना ज्यादा मुनासिब होगा.

टीवी के लिए बेहद लोकप्रिय हॉरर सीरियल 'श्श्श्श... कोई है' रचने वाले मंजीत प्रेमनाथ ने 'द वेटिंग रूम' का निर्देशन किया था. मंजीत से जुड़ी एक दुखद जानकारी यह है कि कई फिल्मों में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम करने वाले और डर-रोमांच रचने में माहिर इस फिल्मकार की मौत महज 37 साल की उम्र में हो गई थी. इस तरह राधिका आप्टे उनकी फिल्म की पहली और आखिरी नायिका भी कही जा सकती हैं. हालांकि इसके पहले वे कुछेक बंगाली और मराठी फिल्मों में भी काम कर चुकी थीं, लेकिन लोगों की नजरों में आने का मौका उन्हें 'द वेटिंग रूम' से ही मिला.
सस्पेंस थ्रिलर जॉनर की इस औसत मनोरंजक फिल्म के चार मुख्य किरदारों में से एक राधिका, फिल्म में ज्यादातर वक्त डरी-सहमी नजर आती हैं. हालांकि उस वक्त वे डरते हुए उतनी सहज नहीं लगतीं जितना आप बाद में उन्हें 'फोबिया' में देखते हैं. फिर भी परदे पर डर को उभारने का काम सबसे अच्छे तरीके से वे ही करती हैं. बाकी किरदारों के लिए जहां एक खास एंगल, साउंड या लाइट इफेक्ट की जरूरत होती है, वहां राधिका आप्टे हर तरफ से उतनी ही डरी हुई दिखती हैं. शायद इसीलिए इस फिल्म की समीक्षा करते हुए तब एक अखबार ने उन पर टिप्पणी की थी कि उनके पास एक 'स्टैंडर्ड एक्सप्रेशन' था. हालांकि आज राधिका इतने विविध किरदार निभा चुकी हैं कि उनकी कुछ भूमिकाओं को अभिनय का स्टैंडर्ड भी कहा जा सकता है.
द वेटिंग रूम में जिस राधिका आप्टे को आप देखते हैं, वह न तो चेहरे से बहुत खूबसूरत है और न ही शरीर से. हीरोइनों वाली स्टाइल तो छोड़िए, आम लड़कियों वाली नजाकत से भी बेहद दूर नजर आने वाली इस लड़की में हालांकि आपको कुछ रहस्यमयी सा जरूर लगता है. यही एक्स-फैक्टर आपको उन्हें सिरे से नकारने से रोकता है. फिर भी उनका लुक देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि थोड़े से बदलावों के बाद जो ग्रेसफुल चेहरा सामने आएगा, दो-चार साल बाद उसके सामने बड़े-बड़ों का भी टिकना मुश्किल होगा.
राधिका आप्टे जिस तरह से संवाद बोलती हैं, वह अब उनका स्टाइल बन गया है और सहज लगने लगा है. लेकिन द वेटिंग रूम में जब वे इसी तरह शब्दों को उच्चारती हैं तो उनकी आवाज बेहद बुरी लगती है. और ऐसा इसलिए नहीं है कि उनकी आवाज में कोई कमी है, दरअसल तब इस आवाज को आत्मविश्वास की कमी बुरा बनाती है. वहीं इस फिल्म में जिस अजीब सी अचकचाहट के साथ वे हिंदी बोलती हैं, वह देख-सुनकर यह कह पाना मुश्किल लगता है कि यह मराठी-बाला आने वाले वक्त में हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, मराठी, तमिल, तेलुगु और मलयालम फिल्मों तक का जाना-पहचाना चेहरा बन पाएगी. और हां, इस आवाज को कभी सेंशुअस माना जाएगा, यह तो कल्पना से भी परे लगता है. कुल मिलाकर द वेटिंग देखते हुए किसी पल भी इस बात पर खुद को सहमत करना मुश्किल होता है कि आज महज आठ साल बाद यह लड़की सिनेमा के साथ-साथ इंटरनेट के भी सबसे बड़े सितारों में शुमार हो चुकी है.

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