गहलोत के सामने हुआ आलाकमान पस्त, पायलट अब जनता के दरबार से जुटाएंगे खोई प्रतिष्ठा

जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok gehlot) और तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट (Sachin pilot) के बीच जुलाई में अगस्त के महीने के दौरान चली लंबी अदावत के बाद अब राज्य में राजनीतिक तौर पर शांति नजर आ रही है, किंतु वास्तविकता यह है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच शीतयुद्ध का अभी अंत नहीं हुआ है।

प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट का 7 सितंबर को 43वां जन्मदिन है। पायलट के जन्म दिवस पर प्रदेश के सभी 33 जिलों में उनके समर्थकों और साथी विधायकों के द्वारा बड़े पैमाने पर रक्तदान शिविरों का आयोजन किया जा रहा है।
पायलट के जन्मदिन के इस अवसर को लेकर पायलट समर्थक रक्तदान का विश्व रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं। सचिन पायलट के द्वारा अपने समर्थकों से अपील करते हुए कहा गया है कि कोई भी जयपुर में आकर भीड़ एकत्रित नहीं करें, बल्कि अपने जिला स्तर और तहसील स्तर पर रक्तदान शिविरों का आयोजन करें।
माना जा रहा है कि जिस तरह से सचिन पायलट समर्थकों के द्वारा प्रदेश भर में रक्तदान शिविर के जरिए अशोक गहलोत सरकार और उनके समर्थकों को सीधा सीधा यह मैसेज देने का प्रयास किया जा रहा है कि सचिन पायलट के साथ 2018 में जिस तरह से प्रदेश की जनता थी ठीक उसी तरह से आज भी जनाधार वाले नेता है।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं में चर्चा है कि भले ही अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच समझौता हो गया हो, लेकिन सचिन पायलट एक बार फिर से अशोक गहलोत और कांग्रेस आलाकमान को यह दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि 2018 में कांग्रेस को जनसमर्थन उनकी वजह से मिला था।
जिस तरह पिछले दिनों अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच लंबे समय तक राजनीतिक अदावत चली और समझौता होने के बाद सचिन पायलट के द्वारा जयपुर से टोंक तक स्वागत के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन किया गया, उसे स्पष्ट है कि सचिन पायलट अब आलाकमान के बजाए जनता के दरबार में जाएंगे।
अपने जन्म दिवस के अवसर पर समर्थकों की तरफ से मिलने वाले रेस्पॉन्स के माध्यम से सचिन पायलट यह भी आकलन करने का प्रयास करेंगे, कि कांग्रेस में अशोक गहलोत के समर्थकों को छोड़कर कितने लोग उनके साथ हैं।
अशोक गहलोत के सामने अब समस्या यह खड़ी हो गई है कि पहली बार उनको कार्यकाल के बीच में ही बड़े पैमाने पर चुनौती मिलने जा रही है। अगर सचिन पायलट जनता के दरबार के माध्यम से अपनी ताकत दिखाने में सफल रहे तो निश्चित रूप से कांग्रेस आलाकमान को सचिन पायलट के सामने झुक कर अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने पर मजबूर होना पड़ सकता है।
खुद अशोक गहलोत को भी इस चीज का अंदाजा है कि 2018 के चुनाव में विधानसभा में जो मैंडेट मिला था वह सचिन पायलट के दम पर मिला था, लेकिन अब यदि पायलट सरकार के कार्यकाल के बीच में ही अपनी ताकत दिखाने में सफल रहे तो अशोक गहलोत सरकार का आगे का कार्यकाल बेहद कठिन हो सकता है।
सचिन पायलट और उनके समर्थक भी इसी इंतजार में है कि जन्म दिवस के अवसर पर यदि उन्होंने दिसंबर 2018 की तरह जनता का समर्थन हासिल किया तो कांग्रेस आलाकमान के ऊपर दबाव बना सकते हैं और अशोक गहलोत को कुर्सी छोड़ने पर मजबूर कर सकते हैं।
जिस तरह से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच 1 महीने तक राजनीतिक लड़ाई चली और कांग्रेसी आलाकमान मूकदर्शक बैठा रहा, उसके बाद पायलट कोई अंदाजा हो गया है कि उनको अपनी ताकत के सहारे ही सत्ता हासिल हो सकती है।
दूसरी तरफ अशोक गहलोत सरकार इस बात का इंतजार कर रही है कि सचिन पायलट के जन्मदिन के मौके पर कितने लोग और किस स्तर के लोग सचिन पायलट के साथ खड़े रहते हैं। उसके बाद वह मंत्रिमंडल का विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों को अंजाम देंगे।
सचिन पायलट के पास 2023 से पहले सत्ता हासिल करने का संभव चाहिए आखरी दांव होगा। संभवत इसके बाद पायलट को कभी भी अपनी ताकत दिखाने और कांग्रेस आलाकमान को झुकाने का अवसर नहीं मिलेगा।

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