धनंजय हांसदा और सोनी हेंब्रम अब परिचय के मोहताज नहीं. स्कूटी से क़रीब 1200 किलोमीटर का सफ़र तय कर गोड्डा (झारखंड) से ग्वालियर (मध्य प्रदेश) पहुंचे इस आदिवासी दंपति की कहानी अभी सुर्ख़ियों में है.
धनंजय ने स्कूटी से यह यात्रा इसलिए की, क्योंकि उन्हें अपनी पत्नी सोनी को डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन (डिलेड) की परीक्षा दिलाने के लिए ग्वालियर पहुंचना था.
आम दिन होता, तो वे जसीडीह (गोड्डा का नज़दीकी रेलवे स्टेशन) से दिल्ली तक की यात्रा ट्रेन से पूरी करते. वहां से दूसरी ट्रेन उन्हें ग्वालियर पहुंचा देती. लॉकडाउन के कारण यह संभव नहीं था. इस रूट पर अभी सप्ताह में सिर्फ़ एक ट्रेन चल रही है. ऐसे में ग्वालियर पहुंचने का एकमात्र ज़रिया सड़क थी.
कार या किसी दूसरी सवारी से यह सफ़र महंगा पड़ता. लिहाज़ा, धनंजय और सोनी ने स्कूटी से ग्वालियर जाने की योजना बनाई. गहने गिरवी रखकर सूद पर दस हज़ार रुपये उधार लिए और बहुचर्चित सफ़र की शुरुआत हो गई. सोनी इन दिनों सात महीने की गर्भवती हैं. ऐसे में उनका सफ़र रिस्की था.
अगर हिन्दी फ़िल्म की स्क्रिप्ट होती, तो यह कहानी बमुश्किल तीन घंटे में पूरी हो जाती. पॉपकॉर्न और ड्रिंक्स के लिए 5-10 मिनटों का एक इंटरवल भी मिलता. क्योंकि, धनंजय और सोनी फ़िल्मों के एक्टर नहीं हैं और न यह कहानी फ़िल्मी है.
ऐसे में उन्हें यह सफ़र पूरा करने में तीन दिन लगे. 28 अगस्त की सुबह गोड्डा की गंगटा बस्ती से निकला यह दंपति 30 तारीख़ की दोपहर ग्वालियर पहुंचा.
इस दौरान दो रातें सड़कों के किनारे गुज़ारी. कभी बारिश झेली, तो कहीं चिलचिलाती धूप भी मिली.
धनंजय की कहानी उन्हीं की ज़ुबानी
धनंजय हांसदा ने बताया कि उन्हें हर हाल में अपनी पत्नी की परीक्षा दिलवानी थी.
वो कहते हैं, "बस इस ज़िद से ताक़त मिली और हम सड़कों पर चलते गए. ज़िंदगी में पहली दफ़ा दो दिनों में 3500 रुपये का पेट्रोल ख़रीदा. हमलोग बातें करते रहे और स्कूटी से चलते रहे. अब सोनी परीक्षा में शामिल हो रही हैं. 1 सितंबर से शुरू यह परीक्षा 11 तारीख़ तक चलेगी. इसके बाद वे गोड्डा वापस लौट जाएंगे लेकिन यह सफ़र उन्हें ज़िंदगी भर याद रहेगा."
धनंजय हांसदा ने बीबीसी से कहा, "गोड्डा से सुबह 8 बजे चले तो भागलपुर तक की सड़क काफ़ी ख़राब थी. स्कूटी हिचकोले खा रही थी, तो डर लगा कि कहीं सोनी को कुछ न हो जाए. वह गर्भवती है. सड़क के गड्ढों मे पानी भरा हुआ था तो इसका अंदाज़ा भी नहीं था कि वहाँ कितनी गहराई है."
"हम किसी तरह भागलपुर पहुंचे. वहां बस का पता किया तो लखनऊ तक का एक आदमी का पांच हज़ार रुपये मांग रहा था. तब हमने तय कर लिया कि अब स्कूटी के अलावा कोई सहारा नहीं है. इसी से ग्वालियर तक चले जाएंगे. क्योंकि उतना पैसा नहीं था."
"मैंने अपनी पत्नी को मुंह ढक कर स्कूटी पर बैठने के लिए कहा ताकि उसे चक्कर नहीं आए. भागलपुर में सड़क के किनारे बाढ़ का पानी था. ऊपर से हल्की बारिश. सड़क पर लगातार चलने के कारण उसके पेट में दर्द भी होने लगा था. मुझे डर लगा तो 28 तारीख़ की रात मुज़फ़्फ़रपुर में एक लॉज में रुक गए. वहां उसके पेट की मालिश की तो दर्द से आराम मिला."
"अगली सुबह 4 बजे सफ़र पर निकल गए. बारिश में हमारे कपड़े भी भीग गए थे. लखनऊ पहुंचते-पहुंचते काफ़ी थक भी गए थे. तब मैंने लॉज या होटल खोजा, लेकिन हाईवे पर कुछ नहीं मिला. लखनऊ से आगरा वाले हाईवे पर कुछ दूर चलने के बाद एक टोल प्लाज़ा के पास नीम के पेड़ के नीचे रेनकोट और चादर बिछाकर अपनी दूसरी रात काटी. उस रात बारिश नहीं हुई तो हमें दिक़्क़त भी नहीं हुई. वहां कई और लोग भी सोए थे. हमारे पास कंबल भी था. वह रात किसी तरह कटी."
"अगली सुबह फिर चार बजे ही सफ़र शुरू कर दिया. तब तेज़ धूप थी. गर्मी लग रही थी. रास्ते में लाइन होटल पर रुक-रुक कर खाते-पीते चलते हुए हमलोग दोपहर दो बजे ग्वालियर पहुंचे. तब तक काफ़ी थक चुके थे लेकिन ग्वालियर पहुंचते ही मेरी पत्नी की तबीयत ख़राब हो गई. हल्का बुख़ार हो गया."
"डर लगा कि कहीं खांसी हो गई, तो परीक्षा देने ही नहीं देगा. बोलेगा कि कोरोना हुआ है. लेकिन, दवा की दुकान से दवा लेकर दिए और गरम खाना-पानी खिलाने से उसकी तबीयत ठीक हो गई. विजय सिंह राठौर नामक एक पत्रकार ने भी मदद की. अब मेरी मेहनत इसलिए सफल हो गई, क्योंकि सोनी आख़िरकार अपनी परीक्षा दे पा रही हैं."
क्या घरवालों ने नहीं रोका?
मूलतः बोकारो के रहने वाले धनंजय गोड्डा में अपनी पत्नी सोनी की मामी के घर पर रहते हैं.
गोड्डा में मौजूद उनकी मामी सुशीला किक्सू ने बीबीसी से कहा, "हम लोगों ने धनंजय को स्कूटी से जाने से मना किया था लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं मानी."
"धनंजय की दलील थी कि उनके पास गाड़ी से ग्वालियर जाने लायक पैसा नहीं है. इसलिए वे मना करने के बावजूद स्कूटी से चले गए. अब दोनों लोग सही-सलामत घर लौट आएं, तब हमें चैन मिलेगा."
क्या होता, अगर परीक्षा छूट जाती
धनंजय कहते है, "परीक्षा छोड़ने का सवाल ही नहीं था. मैंने सिर्फ़ तीसरी क्लास तक की पढ़ाई की है. पापा की नौकरी छूट गई थी. मैं पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ा था. इसलिए 14 साल की उम्र में ही घर छोड़कर कमाने चला गया. इस कारण पढ़ नहीं सका."
"पिछले साल शादी हुई, तभी मैंने तय किया कि मैं भले नहीं पढ़ सका लेकिन अपनी पत्नी की पढ़ाई पूरी कराउंगा. सोनी शिक्षक बनना चाहती हैं. इसलिए यह परीक्षा दिलानी ज़रूरी थी. डिलेड पास कर जाएगी, तो झारखंड सरकार की वैकेंसी होने पर नौकरी भी मिल जाएगी. वो (सोनी) मेरी तरह अनपढ़ क्यों रहे. उसे अपने सपने को पूरा करना है."
'मेरे सईयां सुपरस्टार'
सोनी और धनंजय की ज़िंदगी में कॉमन यह है कि इन दोनों के पिता कम उम्र में ही गुज़र गए. अब सोनी ख़ुद को सौभाग्यशाली मानती हैं क्योंकि उनके पति ने उन्हें शिक्षक बनाने के लिए इस हद तक रिस्क लिया. ऐसा सब लोग नहीं कर सकते.
सोनी हेंब्रम ने बीबीसी से कहा, "बचपन से मैं चाहती थी कि शिक्षक बनूं. शादी के बाद मैंने यह बात अपने पति को बतायी तो वे काफ़ी ख़ुश हुए. शायद उनका कम पढ़ा-लिखा होना भी मेरी पढ़ाई के प्रति उनकी ज़िद की वजह है. मुझे अपने पति पर गर्व है और उनके प्यार पर भरोसा है. इस कारण स्कूटी से निकलते वक्त मुझे कोई घबराहट नहीं हुई. हमने इस प्यार की बदौलत ही इतना लंबा और रिस्की सफ़र आसानी से तय कर लिया."
अब क्या करेंगे धनंजय?
धनंजय और सोनी ने अपने एक परिचित की मदद से ग्वालियर के डीडी नगर इलाके में 15 दिनों के लिए किराये पर एक कमरा लिया है. इसके लिए उन्हें 1500 रुपये चुकाने पड़े.
इन दिनों यही कमरा उनका आशियाना है. 26 साल के धनंजय चाहते थे कि उनकी वापसी अब ट्रेन या कार से हो. ताकि, उनकी गर्भवती पत्नी को स्कूटी के सफ़र में हुई दिक्कतें फिर से नहीं झेलनी पड़े.
इसके लिए वे झारखंड सरकार से मदद चाहते थे. लेकिन धनंजय ने बीबीसी को अब यह जानकारी दी है कि अडाणी समूह ने उनकी वापसी के लिए फ़्लाइट की टिकट का इंतज़ाम कर दिया है.
ग्वालियर के डीएम ने की मदद
इस बीच ग्वालियर प्रशासन ने भी उनकी मदद की है. ग्वालियर के कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने उन्हें पांच हज़ार रुपये की मदद की है और उनके लिए खाने का इंतज़ाम भी कराया है.
उन्होंने मीडिया से कहा, "रविवार (6 सितंबर) को सोनी की अल्ट्रासाउंड (यूएसजी) जांच करायी जाएगी, ताकि उन्हें मेडिकल सहायता दिलायी जा सके. हमने अपने अधिकारियों से उनकी देखरेख करने के लिए भी कहा है. हमारी कोशिश है कि ग्वालियर प्रवास के दौरान उन्हें कोई दिक्कत नहीं हो."
धनंजय हांसदा ने बीबीसी से बतचीत में इस मदद की तस्दीक की और बताया कि यह अभी तक की इकलौती आर्थिक मदद है. इससे हमें राहत मिली है. यह मदद नहीं मिली होती, तो दिक्कत हो जाती क्योंकि घर से लाए पैसे लगभग ख़त्म हो चुके हैं.
क्या करते हैं धनंजय?
धनंजय हांसदा लॉकडाउन से पहले तक अहमदाबाद में रसोइये की नौकरी करते थे. लॉकडाउन में यह काम छूट गया, तो वे अपनी पत्नी के साथ गोड्डा लौट आए.
उन्होंने बताया कि अब कई पत्रकार उन्हें फोन कर रहे हैं. उनके प्यार की कहानी हर कोई जानना चाह रहा है.
इस बीच उनके कॉलर ट्यून पर यह गाना बज रहा है - 'मिले हो तुम हमको बड़े नसीबों से चुराया है मैंने किस्मत की लकीरों से...'
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source: bbc.com/hindi