विगत दिनों में मैंने एक महिला देखी। उसकी चाल में लचक एवं आंखों में अजीब सी कशिश थी। आप सोच रहे होंगे कि वह जवानी की दहलीज पर खड़ी कोई बीस-इक्कीस वर्ष की युवती रही होगी। जी नहीं, मैं जिस महिला की बात कर रहा हूं उसके बाल सफेद थे और उम्र 70 वर्ष के आस-पास रही होगी, इस उम्र में भी उसकी स्फूर्ति और ऊर्जा देखकर मैं दंग रह गया।
समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता लेकिन कुछ ऐसे नियम तथा तरीके हैं जिन पर अमल करके अधिक उम्र के कारण होने वाली शारीरिक समस्याओं को न केवल दूर भगाया जा सकता है बल्कि अपने दिल में युवा भावना की अलख भी जलाई जा सकती है।
हमारी भोजन शैली वह प्रमुख कारण है जो हमें तेजी से बुढ़ापे की ओर अग्रसर करता है। हालांकि हमारे शरीर में स्वयं प्रकृति प्रदत्त ऐसी मशीन होती है, जो हमें स्वयं स्वस्थ रखती है। उसकी अपनी ऐसी सुरक्षा पंक्ति होती है जो शरीर के प्रतिकूल जीवाणुओं को नष्ट करती रहती है। यह व्यवस्था शरीर के 'टिशूज' को खत्म होने से भी रोकती है।
हमारा शरीर करीब 28 वर्ष की आयु में पूरी तरह परिपक्व हो जाता है। किंतु 35 वर्ष तक आते-आते शारीरिक गतिविधियों के साथ-साथ जीवन प्रक्रिया में भी धीरे-धीरे शिथिलता आने लगती है। इसलिए युवा और स्वस्थ बने रहने के लिए यह जरूरी है कि हम अपने भोजन तथा खान-पान की आदतों में कुछ बदलाव करें।
शरीर के दुश्मन जीवाणुओं से लड़ने का विटामिन 'ई' सर्वोत्तम अस्त्र है। गेंहू , चना और चने के सभी उत्पादों में यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता है। इस सूची में अगला नाम विटामिन 'सी' का है। यह शरीर की कोशिकाओं को निष्क्रिय होने से रोकता है। यह बात हम सभी भली -भांति जानते हैं कि आहार में हरी सब्जियों एवं फलों के प्रचुर उपयोग से पर्याप्त विटामिन 'सी' मिलता है।
प्रतिदिन सलाद खाएं
भोजन में प्रतिदिन सलाद खाना अतिआवश्यक है। गाजर, शकरकंद, मटर आदि में बीटा कैरोटेन प्रचुर मात्रा में होता है जो एक प्रभावी एंटी ऑक्सीडेंट है। 30 वर्ष की उम्र के बाद वसा रहित या वसा की अल्प मात्रा युक्त आहार, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स युक्त भोजन शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। इस उम्र में सफेद आटे, सफेद शक्कर और सल्फर युक्त भोजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए, क्योंकि इनसे गैस की समस्या उत्पन्न होती है।
बेहतर तो यह है कि तले हुए की बजाय रूखा, उबला, भाप में पका या बेक्ड भोजन किया जाए। प्रतिदिन सबेरे एक गिलास नींबू पानी और थोड़ा मलाई रहित दूध लेना शरीर के लिए बहुत लाभकारी है। भोजन ऐसा लेना चाहिए जिसमें प्रोटीन और खनिज प्रचुर मात्रा में हों। सोयाबीन उत्पादों, गाजर जूस, फल और मछली में यह सब मिलता है। आलू का पानी एक बेहतर क्षारीय पेय होता है जो शरीर की गंदगी को साफ करके व्यवस्था को दुरुस्त रखता है। इस प्रकार यदि भोजन शैली में थोड़ा सा बदलाव कर लिया जाए तो युवावस्था की उम्र बढ़ाई जा सकती है।
टहलिए अवश्य
इसके बाद अगला चरण है शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखने का। शरीर को चुस्त और स्वस्थ रखने का सर्वोत्तम उपाय टहलना है। यह बहुत बेहतर कसरत भी है। इसमें आपका कोई पैसा खर्च नहीं होता, मात्र थोड़ा सा समय देना होता है। टहलना प्रकृति की तरफ से एक ऐसा टॉनिक है जो बुढ़ापे पर अंकुश लगाता है और, अब तो मेडिकल शोधों से भी सिद्ध हो गया है कि प्रतिदिन कुछ समय टहलने से बेहतर दवा दूसरी कोई नहीं है।
हरदम स्मरण रखिए कि जिस तरह मनुष्य के लिए सांस लेना जरूरी है, ठीक वैसे ही टहलना भी आवश्यक है। जब हम टहलते हैं तो हमारे शरीर की समस्त मांसपेशियां एक साथ सक्रिय हो जाती हैं। कसरत का यह सबसे असरकारी रूप है और इसके लिए उम्र का कोई बंधन नहीं है। तमाम शोधों से यह भी सिद्ध हो चुका है कि सुस्त जीवन शैली अपनाने वालों की अपेक्षा नियमित टहलने वालों के फेफड़े अधिक स्वस्थ और निरोग रहते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि एक बार में कितनी तेजी से टहलना चाहिए। यह मुद्दा प्रमुख नहीं है। असली बात यह है कि हम आराम से जितनी दूर भी टहल सकते हैं, टहलें। इसमें टहलने की चाल तेज या धीमी होना मायने नहीं रखता। शुरू में आप आराम की चाल से एक से तीन किलोमीटर तक टहल सकते हैं अपनी कार्यक्षमता बढ़ाने और खासतौर से कमर व नितंबों की चर्बी कम करने के लिए चढ़ाई वाले स्थानों पर टहलना अधिक कारगर होता है।
इसके अलावा जितनी बार संभव हो, सीढ़ियां चढ़ें-उतरें, जब ज्यादा दूर तक टहलने जाएं तो कदम तेजी से बढ़ाने का प्रयास करें। टहलते समय यदि आप यह नोट कर सकें कि एक मिनट में कितने कदम चलते हैं तो गति का आकलन भी किया जा सकता है। औसतन एक घंटा रोज टहलने से आप अपने को चुस्त-दुरुस्त रख सकते हैं। अनेक लोगों की यह मान्यता है कि टहलने से भूख बढ़ती है। ऐसा नहीं है, वास्तव में जब हम टहलते हैं तो हमारे पूरे शरीर में रक्त परिवहन तीव्र होता है। जिससे शरीर की हर कोशिका को ऊर्जा मिलती है जो शरीर को स्वस्थ बनाए रखती है।
मन से युवा महसूस करें
यदि आप मन से खुद को युवा महसूस करते हैं तो समझिए आपने आधी लड़ाई ऐसे ही जीत ली। इसका एक सीधा सा सूत्र है। अपने शरीर के उस हिस्से पर एकाग्रचित कीजिए जो लगातार विकसित होता रहता है। यकीनन, वह हिस्सा दिमाग होता है। असली समस्या यह है कि शरीर के विभिन्न अंगों में विभिन्न समय पर विकास होता है। जैसे दस वर्ष की उम्र के बाद आंखों का विकास रुक जाता है। तीस वर्ष के पहले तक हमारी कार्य करने की क्षमता अपने चरम पर होती है किंतु मात्र दिमाग ऐसा अंग है जो 40 वर्ष में जाकर शैशवावस्था छोड़ता है, 60 वर्ष तक विकसित होता रहता है और फिर धीरे-धीरे 80 वर्ष की उम्र तक उसमें मामूली गिरावट आती है।
सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन भर चलती है। इस प्रक्रिया में अर्धविराम तो हो सकते हैं किंतु पूर्ण विराम कभी नहीं। बच्चों में सीखने और जानने की जो उत्सुकता होती है वही उनकी सबसे बड़ी खासियत है। यही स्थिति युवाओं में भी होनी चाहिए। मेरे एक परिचित हैं जिन्हें शुरू में पढ़ने का अवसर नहीं मिला किंतु उनमें ज्ञान प्राप्त करने की ललक थी। परिणामस्वरूप उन्होंने 50 वर्ष की आयु में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। स्मरण शक्ति घटने से रचनात्मक क्षमता की कमी होने लगती है। किसी भी नई चीज को दिमाग के खजाने में जमा करके उसे तेजी से याद करने की आदत डालिए, मानसिक रूप से परिपक्व लोग अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक युवा रहते हैं। वे कठिन से कठिन परिस्थिति तथा समस्याओं से भी हर समय कुछ न कुछ सीखते रहते हैं। यही प्रकृति उन्हें बुद्धिमान बनाती है।
कुल मिलाकर रोजाना के जीवन में यह चंद बातें अपना ली जाएं तो हमारा वादा है कि आपका शरीर, मस्तिष्क और भावना लम्बे समय तक जवान बने रहेंगे।