नए शोध में दावा: मोबाइल-टैबलेट की स्क्रीन का बच्च्चों पर बुरा प्रभाव नहीं

न्यूज ब्रीफ: शोधकर्ताओं ने पाया कि टचस्क्रीन पर सबसे ज्यादा सक्रिय रहने वाले शिशुओं औैर बच्चों ने ऐसा कम या न करने वाले बच्चों की तुलना में तेजी से लाल सेब का पता लगा लिया. डाक्टर रचेल का बोलना है कि अध्ययन दिखाता है कि रोजमर्रा सीखने की प्रक्रिया पर ये डिवाइस भी महत्त्वपूर्ण किरदार निभाते हैं. लेकिन हमें इसके ठीक प्रयोग को लेकर सजग रहना होगा.

इंग्लैंड की बाथ यूनिवर्सिटी (University of Bath) के मनोविज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं ने हाल ही एक अध्ययन प्रकाशित किया है जो छोटे बच्चों के बीच स्क्रीन-टाइम (Screen Time) व विभिन्न डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक (Use of Digital Devices by Toddlers) उपकरणों के उपयोग के प्रभावों का परीक्षण करता है. इस समय पूरी दुनिया में छोटे बच्चों को मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, वीडियो गेम्स व ऐसे ही टचस्क्रीन वाले दूसरे उपकरणों से होने वाली स्वास्थ्य परेशानियों ने अभिभावकों की नींदें उड़ा रखी हैं. लेकिन बाथ यूनिवर्सिटी के इन शोधकर्ताओं का बोलना है कि अभिभावकों की चिंता उतनी भी जायज नहीं जैसा की अपेक्षा की जाती है. शोध के हवाले से बताते हुए टीम के प्रमुख मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर टिम स्मिथ व प्रमुख शोधकर्ता डाक्टर रचेल बेडफ़ोर्ड ने बोला कि हम दरअसल यह जानना चाहते थे कि छोटे बच्चों के शारीरिक अरौर मानािसक विकास पर Smart Phone व टैबलेट जैसे टचस्क्रीन वाले डिजिटल डिवाइस क्या असर डालते हैं. उन्होंने दोनों तरह के बच्चों को अपने परीक्षण में शामिल किया एक वो जो डिजिटल डिवाइसेज पर सक्रिय थे व दूसरे वे बच्चे जिनके माता-पिता ने उन्हें इससे दूर रखा हुआ था.
ताकि समझ सकें कैसें करें उपयोग इंग्लैंड के बर्बेक स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन (University of London) के सेंटर फॉर ब्रेन एंड कॉग्निटिव डवलपमेंट ने भी इस शोध पर कार्य किया है. उन्होंने इसे 'टैबलेट प्रोजेक्ट' or 'TABLET Project' (Toddler Attentional Behaviours and Learning with Touchscreens) नाम दिया है. शोधकर्ताओं ने अपने शोध में 12 महीने तक के छोटे बच्चों को शामिल किया था. रिसर्च का उद्देश्य माता-पिता को यह जानकारी देना था कि वे छोअे शिशुओं की परवरिश में इन डिजिटल उपकरणों का कैसे औैर क्यों उपयोग करें? परीक्षण में शामिल ये सभी टॉडलर्स टचस्क्रीन पर भिन्न-भिन्न समय बिताते थे. अध्ययन के दौरान ऐसे शिशुओं के संज्ञानात्मक, सामाजिक व व्यवहारिक विकास पर डिजिटल उपकरणों के पडऩे वाले प्रभावों की जाँच की गई. अध्ययन का उद्देश्य माता-पिता, शिशुओं के लिए प्रोग्राम व पोषण प्रोग्राम बनाने वाले निर्माताओं, वैज्ञानिकों को उनके विकास में वर्तमान पीढ़ी के मीडिया उपयोग के सह-संबंध व ऐसे उपकरणों के उपयोग के उचित मॉडरेशन को समझने के लिए डेटा व निष्कर्ष प्रदान करना था. बाथ विश्वविद्यालय के इस अध्ययन को अमरीकन मेडिकल एसोसिएशन-पीडियाट्रिक्स जर्नल में प्रकाशित किया गया है.
बच्चों में जिज्ञासा जागती है शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि ज़िंदगी के शुरुआती महीने बच्चों के लिए प्रासंगिक जानकारी पर ध्यान केंद्रित करने व अनावश्यक चीजों को अनदेखा करने की क्षमता विकसित करने के लिए बेहद जरूरी होते हैं. यह वह शुरुआती कौशल होता है जिसे बाद में शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए जरूरी माना जाता है. लेकिन अभिभावकों में अक्सर यह चिंता रहती है कि टचस्क्रीन के लगातार उपयोग से बच्चे में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां विकसित हो सकती हैं. इसलिए वे उसके जिज्ञासावश सीखने की उस प्रयास को बार-बार बाधित करते हैं. लेकिन प्रोफेसर टिम स्मिथ का बोलना है कि यह भय उचित नहीं है. डाक्टर रचेल का बोलना है कि इस अध्ययन का उद्देश्य इसी गलतफहमी को दूर करना है. हमने 12 माह तक के नवजात शिुशओं पर 6 महीने से से उनके ढाई वर्ष का होने तक निगरानी की. उन्होंने 18 महीने व 3.5 वर्ष के बच्चों को टचस्क्रीन टेस्ट में नीले सेबों के बीच लाल सेब ढूंढने को कहा. शोधकर्ताओं ने पाया कि टचस्क्रीन पर सबसे ज्यादा सक्रिय रहने वाले शिुशओं औैर बच्चों ने ऐसा कम या न करने वाले बच्चों की तुलना में तेजी से लाल सेब का पता लगा लिया. डाक्टर रचेल का बोलना है कि अध्ययन दिखाता है कि रोजमर्रा सीखने की प्रक्रिया पर ये डिवाइस भी महत्त्वपूर्ण किरदार निभाते हैं. लेकिन हमें इसके ठीक प्रयोग को लेकर सजग रहना होगा.
शोध के प्रमुख निष्कर्ष इस अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता डाक्टर एना मारिया जो कि पुर्तगाल से हैं ने निष्कर्षों के आधार पर बोला कि परीक्षण में शामिल शिशुओं के लिए नीले रंग के सेबों में से लाल सेब ढूंढने में ज्यादा परेशानी नहीं आई लेकिन लाल रंग की स्लाइस को ढूंढने में बाकी सभी ग्रुप के बच्चों के स्कोर में कोई खास फर्क नहीं था. हम अब भी यह बताने में असमर्थ हैं कि टॉडलर्स के परीक्षणों में अंतर क्यों था. क्योंकि इस अंतर के लिए सीधे तौैर पर टच स्क्रीन के उपयोग को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. अध्ययन में बोला गया है कि टॉडलर्स चमकदार व रंगीन वस्तुओं के लिए अधिक आकर्षित होते हैं जो उन्हें बेहतर प्रदर्शन करने में सहायता करता है.

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