आप जैसा खाना खाओगे वैसा ही मन बनेगा । यदि आप शुद्ध सात्विक आहार करते हो। तो आपका मन उतना ही शुद्ध होता जायेगा । आपका मन पढ़ने मे और सकारात्मक सोचने मे लगेगा
शरीर है मन पर निर्भर
मन पर आपका शरीर भी निर्भर रहता है । क्योंकि आपका जब शरीर बीमार होता है तो मन भी बीमार होता है औऱ तब आप नकारात्मक सोचते है तो तनाव की स्थिति बनती है ।और शरीर बीमार हो जाता है ।
सात्विक आहार है जरूरी
सात्विक आहार जैसे बिना तला हुआ ,सब्जियां ,जूस, अंकुरित आदि खाने से शरीर हल्का एवं स्वथ्य रहता है ।
कहावत है
स्वास्थ्य शरीर के अंदर ही स्वथ्य मन का विकास होता है
राजसिक आहार से रखे दूरी .
यदि आप राजसिक आहार लेते हैं ।जैसे तले पदार्थ या तली हुई सब्जियां या जंक फूड, कोल्ड्रिंक आदि के सेवन से आपका मन एक जगह केंद्रित नही हो पाता और आप किसी एक विषय के बारे मे ज्यादा देर तक नही सोच पाते।
तथा अपने मार्ग से भटकते रहते हो जिससे आप किसी एक लक्ष्य पर केंद्रित नही हो पाते।
तामसिक आहार से बचें
इसी तरह यदि आप तामसिक आहार लेते है तो आपके शरीर मे भारीपन रहता है आलस्य ,निद्रा की स्थिति बनी रहती है ।
इस मे बकरी का दूध ,मांस, मदिरा, लहसुन आदि आते है।
इसे खाने से आपका मन सही दिशा मे नही सोच पायेगा। और अपने काम को सही ढंग से नही कर पायंगे।और आपका विकास रूक सकता है।