हल्के लक्षण वाले बच्चे हैं 'साइलेंट स्प्रेडर', जानिए इसके बारे में

कोरोना परिवार का सातवां व बिल्कुल नया वायरस नोवेल कोविड-19 वायरस बहुत से राष्ट्रों में एक बार फिर वापस लौटा है व पहले से ज्यादा

खतरनाक साबित हो रहा है. दुनियाभर में इस समय सबसे ज्यादा संक्रमितों की संख्या हिंदुस्तान में ही आद रही हैं. शुक्रवार को भी बीते 24 घंटो में यहां 74 हजार से ज्यादा संक्रमित आए थे. वहीं दुनियाभर में करीब 2.50 करोड़ लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. लेकिन वैज्ञानिक इस बात से दंग हैं कि आकस्मित कोरोना के इतने केसेज कैसे उभर रहे हैं. इसका जवाब शायद दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों के हालिया शोध में छिपा हुआ है. दक्षिण कोरियाई वैज्ञानिकों का बोलना है कि इस शोध में हमने पाया कि बच्चों के श्वांस नली व नाक में कोरोना वायरस की मौजूदगी लोगों में साइलेंड स्प्रेडर (Silent Spreader) के मुद्दे से जुड़ा होने कि सम्भावना है.
40 प्रतिशत वयस्कों में कोई लक्षण नहीं इस शोध की समीक्षा करने वाले चिल्ड्रंस नेशनल हॉस्पिटल, वॉशिंगटन की डाक्टर रॉबर्टा डी'बायसी व डाक्टर मेघन डेलानी का बोलना है कि इस नए शोध की तुलना वयस्कों केडेटा से करने पर हमने पाया कि 40 प्रतिशत मामलों में ऐसे बच्चों व उनसे संक्रमित हुए वयस्कों में वायरस के संक्रमण के कोई लक्षण हफ्तों बाद भी नहीं नजर आते. दोनों चिकित्सक दक्षिण कोरिया के इस शोध में शामिल नहीं थीं. अध्ययन के लेखकों का अनुमान है कि 85 संक्रमित बच्चे (करीब 93 फीसदी) बच्चों पर जब रोगियों के परीक्षण पर केंद्रित परीक्षण रणनीति का उपयोग कर संक्रमण की जाँच की गई तो वे टेस्ट में निगेटिव आए व उनमें किसी प्रकार के सामान्य या विशिष्ठ लक्षण नजर नहीं आ रहे थे.
अमरीका में हो रही सीडीसी की आलोचना यह अध्ययन ऐसे समय में सामने आया है जब अमरीका के रोग नियंत्रण व रोकथाम केन्द्र (सीडीसी) ने लक्षण न दिखाने वाले रोगियों (Asymptomatic Testing) की जाँच संबंधी गाइडलाइंस को बदलने के लिए आलोचना हो रही है. सीडीसी के इस कदम को अमरीकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने शुक्रवार को 'पीछे की ओर उठाया गया एक खतरनाक कदम' बताया है व जमकर आलोचना की है. बताते चलें कि अमरीका में कोरोना संक्रमितों की संख्या 60 लाख के पार हो गई है. बताते चलें कि सीडीसी ने जाँच केन्द्रों को यह आदेश दिए हैं कि वे बिना लक्षणों वाले लोगों का परीक्षण करने की जरूरत नहीं है, फिर भले ही वे वायरस से परिचित किसी आदमी के निकट सम्पर्क में ही क्यों न हों.
इलाज में आती है परेशानी शुक्रवार को जेएएमए बाल रोग पत्रिका ( Journal JAMA Pediatrics) में प्रकाशित इस अध्ययन में दक्षिण कोरिया भर में 22 केंद्रों पर 18 फरवरी से 31 मार्च के बीच कोविड-19 के निदान वाले 91 स्पर्शोन्मुख (एसिम्प्टोमैटिक) पूर्व-निर्धारित लक्षणों (presymptomatic) व रोगसूचक (symptomatic) लक्षणों वाले बच्चों के डेटा शामिल थे. अध्ययन मेंशामिल इन रोगियों में से 20 या 22 प्रतिशत ने कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखाए व सारे अध्ययन में स्पर्शोन्मुख बने रहे यानी जाँच में उनमें कोई लक्षण नजर नहीं आए. वहीं 91 में से 18 से 20 प्रतिशत बच्चे प्रेसीप्टोमैटिक थे, जिसका अर्थ है कि वे उस समय बीमार नहीं दिख रहे थे लेकिन बाद मेंसंक्रमित पाए गए थे. जबकि डेटा के आधे से अधिक बच्चे यानी करीब 71 से 78 प्रतिशत लक्षण दिखाते थे जिसमें बुखार, खांसी, दस्त, पेट दर्द व गंध या स्वाद न लगना जैसे लक्षण शामिल थे. वहीं प्रदर्शित हुए लक्षणों की अवधि भी तीनों समूहों के बच्चों में भिन्न-भिन्न दिखाई दी करीब 01 से 36 दिनों के बीच. जबकि संक्रमित बीमार में शुरुआती 5 दिनों से 14 दिनों के बीच लक्षण दिखाई देने लगते हैं.
इससे पता चलता है कि हल्के व मध्यम रूप से संक्रमित बच्चे लंबे समय तक लक्षण प्रदर्शित नहीं करते हैं. डेटा से पता चला कि केवल 8.5 प्रतिशत रोगियों का ही लक्षण उभरने के बाद कोविड-19 का उपचार किया जा सका था. जबकि अधिकतर 66.2 प्रतिशत लक्षणों वाले रोगियों में लक्षण जब तक उभरे नहीं थे उनका उपचार ही नहीं किया जा सका. इसी प्रकार 25.4 प्रतिशत लक्षण प्रदर्शित करने वाले बच्चों में लक्षण दिखने के बाद उनका उपचार प्रारम्भ किया गया था. शोध में यह बताने का कोशिश किया गया है कि संक्रमित बच्चों में वायरस लक्षणों के साथ या बिना लक्षण दिखाए जीवित रहने की संभावना बनी रहती है, वह भी उनकी सामान्य गतिविधियों के साथ. ऐसे बच्चे सामुदायिक रूप से वायरस के फैलने का कारण बन सकते हैं.
17.6 दिनों तक जिंदा रहता है वायरस अध्ययन में पाया गया कि कोरोना वायरस का जेनेटिक मटेरियल यानी आनुवांशिक जीन बच्चों में करीब 17.6 दिनों तक जिंदा रह सकता है. यहां तक कि जिन बच्चों में कोई लक्षण नहीं थे उनमें भी वायरस औसतन 14 दिनों तक उपस्थित था. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह भी संभव है कि वायरस बच्चों में इससे भी अधिक समय तक उनके नाक, नाक के पीछे के हिस्से, गले व श्वांस नली में उपस्थित रह सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि अध्ययन में प्रारंभिक संक्रमण की तारीख की पहचान नहीं की गई थी. हालांकि जानकार ों का यह भी बोलना है कि यह महत्वपूर्ण नहीं कि सामुदायिक ट्रांसमिशन में बच्चों का ही सहयोग हो. क्योंकि ट्रांसमिशन के लिए वायरस के आरएनए जीन के गैर-व्यवहार्य या टुकड़े भी जिम्मेदार हो सकते हैंं. हालांकि यह निर्धारित करने के लिए अभी व अधिक शोध करने की जरूरत है कि क्या दुनिया के अन्य हिस्सों में भी बच्चों के एक बड़े समूह के बीच इस शोध के समान निष्कर्ष निकलेंगे?

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