क्या आप जानते है की गणपति बप्पा मोरिया के जयकारे में 'मोरिया' क्या है? जानें



डेस्क। भगवान गणेश को हिंदू धर्म में सभी देवताओ में प्रथम पूजनीय माना जाता है। कोई भी शुभ काम करने से पहले भगवान गणेश को पूजा जाता है। इस समय चारों तरफ एक ही जयकारा गुंज रहा है गणपति बप्पा मोरिया, मोरिया रे मोरिया.... लेकिन अब सवाल यह है कि यह मोरिया आखिर है क्या ? क्या मोर से इसका कोई संबंध है ? या यह गणेशजी का ही नाम है ? आइये जानते है इसके बारे में....

मोरिया शब्द के पीछे का इतिहास बिलकुल ही अलग है। यह जानकारी आपके लिए नई ही होगी। विनायक चतुर्थी से विनायक विसर्जन तक 'मो‍रिया' गुंजन की धून हमे सुनाई देती रहती है। 'गणपति बप्पा मोरया, मंगळमूर्ती मोरया, पुढ़च्यावर्षी लवकरया' अर्थात हे मंगलकारी पिता, अगली बार और जल्दी आना। मालवा में इसी तर्ज़ पर चलता है 'गणपति बप्पा मोरिया, चार लड्डू चोरिया, एक लड्डू टूट ग्या, नि गणपति बप्पा घर अइग्या।

गणपति बप्पा से जुड़े इस शब्द के पीछे का राज एक गणेश भक्त है। माना जाता हैं कि चौदहवीं सदी में पुणे के पास चिंचवड़ में मोरया गोसावी नाम के गणेश भक्त रहते थे। चिंचवड़ में इन्होंने कठोर गणेश साधना की। माना जाता हैं कि मोरया गोसावी ने यहां जीवित समाधि ली थी। तभी से यहां का गणेश मन्दिर पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया था। और गणेशभक्तों ने गणपति के नाम के साथ मोरया के नाम का जयघोष भी आरम्भ कर दिया।
यह तो हम सब जानते हैं कि इंडिया में केवल देवता ही नहीं बल्कि भक्त भी पूजे जाते हैं। आस्था के आगे तर्क, ज्ञान, बुद्धि जैसे उपकरण काम नहीं करते है। आस्था में तर्क-बुद्धि नहीं बल्कि महिमा प्रभावी होती है। गणपति बप्पा मोरया के पीछे मोरया गोसावी ही हैं। दूसरा तथ्य यह कहता है कि 'मोरया' शब्द के पीछे मोरगांव के गणेश हैं।
इस घटना के बाद लोग यह मानने लगे कि गणपति बप्पा का कोई भक्त है तो वह सिर्फ और सिर्फ मोरया गोसावी। तभी से भक्त चिंचवाड़ गांव में मोरया गोसावी के दर्शन के लिए आने लगे। कहते हैं जब भक्त गोसावी जी के पैर छूकर मोरया कहते और संत मोरया अपने भक्तों से मंगलमूर्ति कहते थे और फिर ऐसे शुरूआत हुई मंगलमूर्ति मोरया की। जो जयकारा पुणे के पास चिंचवाड़ गांव से शुरू हुआ वह जयकारा आज गणपति बप्पा के हर भक्त की जुबान पर है लेकिन जहां तक गणपति पूजा के सार्वजनिक आयोजन का सवाल है तो इसकी शुरूआत स्वतंत्रता सेनानी बालगंगाधर लोकमान्य तिलक ने की थी।
भक्तों का मानना है कि गणपति बप्पा ने मोरया गोसावी को वरदान दिया था कि अनंत काल तक मोरया का नाम गणपति के साथ जुड़ा रहेगा और शायद यही वजह है कि लोग गणपति के साथ मोरया का नाम भी जोड़कर जयकारा लगाते हैं। पूरे महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाकों से भक्त पुणे के चिंचवाड़ में मोरया गोसावी मंदिर में माथा टेकने आते हैं। यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां आने वाले हर भक्त की यही चाहत है कि उसे मनवांछित फल की प्राप्ति हो। तभी तो यहां साल में दो बार गणेश पूजा के लिए भारी संख्या में भीड़ इकट्ठी होती है।

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